त्वरित टिप्पणी…उपचुनाव: जीत की बधाई लेकिन पब्लिक का नेचर सब जानते हैं आज अर्श पर तो कल फर्श पर

तेजपाल नेगी
हल्द्वानी।
यह चंपावत उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी और सीएम पुष्कार धामी की ऐतिहासिक जीत पर जश्न का वक्त है, इसलिए भाजपाई जश्न में विध्न बाधा डालने का हमारा न तो कोई अधिकार है और न ही ख्याल। बस चुनाव के नतीजों की प्रतिध्वनि जो हमें महसूस हो रही है हम वही बयान कर रहे हैं।


पहली बात तो यह भाजपा के किसी साधारण प्रत्याशी की जीत नहीं बल्कि वर्तमान सीएम की जीत है। वर्तमान व निवर्तमान और पूर्व सीएम में अंतर होता है। इसी चुनाव में निवर्तमान होते हुए धामी खटीमा से हारे थे और इसी चुनाव में पूर्व सीएम होते हुए हरीश रावत ने लालकुआं से हार का स्वाद चखा। लेकिन पद पर बैठे हुए सीएम का हारना असंभव तो नहीं लेकिन बहुत कठिन अवश्य माना जाना चाहिए और जब जीत सुनिश्चत हो जाए तो जीत का अंतर बढ़ाने के लिए ही काम किया जाता है।

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कांग्रेसियों की तरह हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठा जाता। दरअसल कांग्रेस के अंदर उत्साहहीनता का लाभ स्वत: ही उपचुनाव में भाजपा या कहें सीएम धामी को मिला। इसके वे हकदार भी थे। लेकिन चुनाव के चुनाव नतीजों का अर्थ यह लगा लेना की पूरा चंपावत भाजपामय हो गया है या फिर जिला कांग्रेस विहीन हो गया है ऐसा नहीं है। यह पब्लिक है…जो एक चुनाव में सिर आखों पर बिठाती है और अगले ही चुनाव में सड़क पर ला पटकती है।

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यह सच्चाई भी विजयी पक्ष को स्मरण रखने की आवश्यकता होनी चाहिए। इतिहास में बड़े बड़े नेता जनता से मिले वोटों के आधार पर इस ही गलतफहमी का शिकार हुए और अगले ही चुनाव में उनका नामो निशान मिट गया।

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यदि चंापवत भाजपामय था तो चुनाव के दौरान देहरादून में बैठकर सीएम को कैबिनेट में बड़े बड़े फैसले नहीं लेने चाहिए थे। आप कहेंगे कि चंपावत पर कोई फैसला नहीं लिया गया। जब आप प्रदेश के लिए कोई निर्णय लेते हैं तो चंपावत जिला प्रदेश से बाहर थोड़े ही है भाई। वैसे चुनाव में सत्ता का ‘सदुपयोग’ तो निश्चित रूप से भाजपा के नेताओं से सीखा जाना चाहिए। लगभग चार साल पहले जब गुजरात में चुनाव थे तो चुनाव प्रचार समाप्त होने सेदो दिन पहले खुफिया टिप मिली कि गुजरात में बड़े नेताओं की रैली में आतंकी हमला हो सकता है।

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इसके टिप के बाद सभी बड़े नेताओं की गुजरात में रैलियां रद कर दींगई। यानी किसी को भी चुनाव प्रचार की अंतिम बेला में कोई मौका नहीं मिला। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री ने इस समय का ‘सदुपयोग’ करने की ठानी और जल यातायात की शुभारंभ के कार्यक्रम में जाने का निर्णय लिया।

गुजरात से कोसों दूर हुए इस कार्यक्रम में मोदी जी ने वह सबकुछ किया जिससे गुजरात के लोगों को इलैक्ट्रानिक मीडिया के लाइव प्रसारण के माध्यम से संदेश दिया जा सकता था। वे सफल भी हुए।
यह समय बदल रहा है अब लोगों से बात करने के लिए उस चुनाव क्षेत्र में जाने की आवश्यकता ही नहीं बची है। आप डिजिटल रैलियां कर सकते हैं। देश के किसी भी कोने में होरहे कार्यक्रम से उस क्षेत्र की जनता से संवाद कायम कर सकते हैं। मीडिया तो बैठा ही है इस दांव को आपके पाले में ले जाने के लिए।

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खैर धामी को इस बड़ी जीत के लिए बधाई। लेकिन अब चंपावत और प्रदेश के लिए कुछ करने का समय है। इसजीत के बाद धामी अब कन्फर्म सीएम होचुके हैं। अब उन्हें जमीन पर उतर कर अब तक के मुख्यमंत्रियों के इतिहास का सबसे बड़ा मील का पत्थर रखना होगा।

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वे युवा है..कुछ कर गुजरने का समय और जज्बा दोनों उनके पास है। वे कुछ ऐसा करें कि आने वाले मुख्यमंत्रियों के लिए प्रेरणा बनें। अपनी कैबिनेट को भी संभालें वर्ना अपने पास रखे गए विभागों का कायाकल्प करके मंत्री साथियों को संकेत भेजें। वर्ना प्रापर्टी डीलिंग के लिए मंत्री तो कोई भी बन सकता है।

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