हल्द्वानी…कहिए नेता जी—1 :राष्ट्र भक्ति की राजनीति और हल्द्वानी में ही राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान से खिलवाड़, क्या कहेंगे रौतेला जी

हल्द्वानी। हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र में मतदान की तिथी नजदीक अपने के साथ मुख्य मुकाबला सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्ष कांग्रेस के बीच सिमटता जा रहा है। पिछले नगर निगम चुनाव में भाजपा के जोगेंद्र सिंह रौतेला से मात खाने वाले सुमित हृदयेश के लिए यह पिछला हिसाब किताब चुकता करने का मौका है। डा. जोगेन्द्र के लिए सत्ताधारी होने के नाते चुनौतियां ज्यादा है। इसके अलावा वे पिछले नौ साल से नगर निगम के मेयर भी रहे इसलिए उनसे सवाल ज्यादा पूछे जा रहे है। संभवत: यही वजह है कि डा. रौतेला मीडिया से दूरी भी बना रहे हैं।


कांग्रेस के सुमित का जागेंद्र रौतेला से पहली बार आमना सामना नहीं हो रहा है। इससे पहले वर्ष 2018 में नगर निगम हल्द्वानी के मेयर पद के लिए होने वाले चुनावों में मुकाबला हो चुका है। लेकिन चुनाव से ऐन पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नगर निगमों का पुर्नसीमांकन करवा दिया जिससे नगर निगम का दायरा बढ़कर ग्रामीण क्षेत्रों में फैल गया। नतीजतन सुमित को जोगेंद्र रौतेला को सरकार के इस फैसला का सीधा फायदा मिला और सुमित, जोगेंद्र से 10854 वोटों से हार गए थे।

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इस चार साल बाद दोनों ही पार्टियों के महारथी एक बार फिर आमने सामने हैं। इस बार लड़ाई उत्तराखंड की विधानसभा में जाने के लिए है। लेकिन जोगेंद्र के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि हल्द्वानी विधानसभा का दायरा नगर निगम से छोटा है। हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र में अब तक इंदिरा हृदयेश का दबदबा रहा है। उनके निधन के बाद उनके बेटे सुमित को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है। तो भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनावों की भांति ही इस बार भी जोगेंद्र रौतेला पर ही दांव खेला है।

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सुमित की मां से भी जोगेंद्र वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में मुकाबला कर चुके हैं। यह वह चुनाव था जब नरेंद्र मोदी लहर लोगों के दिलो दिमाग पर तारी थी और कांग्रेस की झोली में सिर्फ 11 सीटें ही आ सकी थी। मैदानी क्षेत्रों में तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया था। यहां तक कि कांग्रेस के पूर्व सीएम हरीश रावत दो जगहों से चुनाव लड़े और दोनों ही जगहों से हार गए थे।

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ऐसे में इंदिरा ने हल्द्वानी सीट जीतकर कांग्रेस की झोली में डाली थी। तब इंदिरा ने जोगेंद्र को 6557 वोटों से हराया था। अब इंदिरा के बेटे सुमित, जोगेंद्र के सामने हैं। डा. रौतेला नगर निगम के वर्तमान मेयर हैं और लोग इस नाते उनसे सवाल भी पूछेंगे। केंद्र, राज्य और नगर निगम में भाजपा की ट्रिपल इंजन सरकार चल रही है। सीधा सी बात है कि सरकार के खिलाफ एंटी इन्कंबेसी लहर भी होगी। मोदी लहर भी अब ढलान पर दिख रही है। राज्य सरकार की भी 3—3 मुख्यमंत्रियों के बदलने के कारण अच्छी छवि नहीं बन पाई।

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नगर निगम के खाते में भी लोगों को बताने के लिए कोई खास उपलब्धि नहीं है। राष्ट्रप्रेम के नाम पर सत्ता कब्जाने वाले भाजपा के नेता कुमाऊं के सबसे ऊंचे तिरंगे को फहराने से ही कतराने लगे थे। जबकि इस लगभग 17 लाख की लागत से लगने वाले 151 फीट के इस तिरंगे की व्यवस्था स्वयं नगर निगम देखता है। नैनीताल रोड पर लगाए गए इस तिरंगे को इस बार 26 जनवरी पर भी नहीं फहराया जा सका। सवाल यह है कि जब इसकी व्यवस्था ही नहीं संभाली जानी थी तो इस तिरंगे को लगाया ही क्यों गया था।

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2 अक्टूबर 2017 को स्थापित किए गए इस तिरंगे के मान और सम्मान को बढ़ाने के लिए रात को इस पर प्रोजेक्शन लाईट डालने की परियोजना का भी कुछ पता नहीं है। अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि राष्ट्रभक्ति के नाम पर राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान से खिलवाड़ किया ही क्यों गया था। डा. जोगेंद्र रौतेला को इस सवाल का जवाब भी देना होगा।

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