हल्द्वानी…प्रतिध्वनि : अतिक्रमण अभियान में बुराई नहीं लेकिन इसके क्रियान्वयन के समय पर उठ रहे सवाल

हल्द्वानी। नगर निगम द्वारा छेड़े गए अतिक्रमण विरोधी अभियान से शहर खुला खुला तो दिख रहा है लेकिन अभियान को चुनावी झुंझलाहट और जल्दीबाजी में उठाए गए कदम के तौर पर देखने वालों की भी कमी नहीं हैं। अब जब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी नगर निगम से मछली बाजार से बेदखल किए गए मांच व्यापारियों के पुनर्विस्थापन की योजना को लेकर निगम को नोटिस दिया है, तब अभियान की सार्थकता पर सवाल उठने लगे हैं।


दरअसल यह बात सत्य है कि मछली बाजार का अधिकांश हिस्सा अतिक्रमण करके कब्जाया गया था। उनके अवैध कब्जों को हटाना किसी भी तरह से नाजायज नहीं कहा जा सकता है लेकिन क्या मछली बाजार एक दो दिन या एक दो महीने में ही बनकर तैयार हुआ था। जब इस इलाके में सरकारी जमीन पर कब्जा हो रहा था तब नगर निगम या तत्कालीन नगर पालिका को कोई भनक क्यों नहीं लगी।

हल्द्वानी…ये क्या : दो परिवारों के बीच इस बात को लेकर हुआ झगड़ा और एक पक्ष ने फेंक दिया गर्भवती को तीसरी मंजिल से नीचे, मौत

इसके उल्टे मछली बाजार से बेदखल किए गए मांस कारोबारियों का कहना है कि वर्षों से तत्कालीन हल्द्वानी नगर पालिका और अब नगर निगम उनसे तह बाजारी शुल्क वसूलता रहा है। यदि ऐसा है तो नगर पालिका या नगर निगम भी इस मामले में उतना ही दोषी है जितने कि कारोबारी।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड न्यूज… नामांकन पत्र जमा कराने के बाद बोले वीरेंद्र रावत- सबसे पहले युवाओं को रोजगार देंगे

रूद्रपुर…वारदात : सड़क के किनारे दुकान पर सो रहा था युवक, सुबह मां आई तो खून सेलथपथ लाश मिली


नगर निगम के वर्तमान कार्यकारिणी को चार साल पूरे हो चुके हैं। पिछले चार साल से नगर निगम के किसी अधिकारी, पार्षद और मेयर को मछली बाजार खाली कराने की सुध क्यों नहीं आई। अब जब नगर निगम का अंतिम वर्षों चल रहा है और विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा तो आनन फानन में अतिक्रमण की याद नगर निगम को कैसे आई। स्मरणीय है कि विधानसभा चुनाव में मेयर डा. जोगेंद्र पाल सिंह रौतला स्वयं भाजपा के प्रत्याशी थे। इसलिए अतिक्रमण हटाओ अभियान के समय को लेकर भी सवाल उठने बाजिब हैं।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड ब्रेकिंग : भाजपा ने जगह-जगह राजनीतिक सुपारी किलर खड़े किए: हरदा

हल्द्वानी…कटाक्ष : मनचाहा खिलौना नहीं मिला तो बाकी सामान तोड़ रहा एक बच्चा — सुमित हृदयेश


न सिर्फ मछली बाजार बल्कि शहर की अन्य मुख्य सड़कों पर भी अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया गया है। इससे कोरोना के कारण बेरोजगारी का दंश झेल रहे दर्जनों लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है। यह तब है कि जब प्रदेश व केंद्र सरकार ने कोरोना के साइड इफेक्ट से उबरने के लिए छोटे बड़ उद्योगपतियों के लिए स्वयं ही श्रम कानूनों में शिथिलता प्रदान की गई है।

यानी एक ओर तो सरकार स्वयं करोड़पतियों को कानून न मानने की छूट दे रही है दूसरी ओर नगर निगम की सीमा में गरीब बेरोजगार यदि अपना छोटा मोटा रोजगार करके दो जून की रोटी का जुगाड़ करता है तो उसके धंधे को उजाड़ा जा रहा है। यहां भी साफ कर दें कि हम अतिक्रमण हटाओ अभियान के खिलाफ नहीं हैं, बस इसको क्रियान्वित करने के समय को लेकर उठ रहे सवालों से पाठकों को परिचित करा रहे हैं।

यह भी पढ़ें 👉  हिमाचल ब्रेकिंग : होली मेले में पहाड़ी से गिरे पत्थर की चपेट में आए श्रद्धालु, दो की मौत, सात घायल


दूसरे मछली बाजार या सड़कों से हटाए गए कब्जे के कारण सड़क पर आ गए बेरोजगारों के पुनर्विस्थापन के लिए नगर निगम ने पहले क्या योजना बनाई इसका कोई ब्यौरा अभी तक तो निगम की ओर से नहीं दिया गया है। अब हाईकोर्ट के सामने वह क्या योजना रखेगा देखने वाली चीज होगी। क्या ही अच्छा होता कि इन लोगों के लिए नगर निगम कोई कार्ययोजना बनाकर उनके सामने रखता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *