हल्द्वानी…विश्लेषण: …तो क्या इसलिए मोहन सिंह बिष्ट से चुनाव हार गए हरदा!

हल्द्वानी। राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता, ऐसे में कोई भी राजनैतिक व्यकित्व हर मोर्चे पर जीत हासिल करे यह भी दावे से नहीं कहा जा सकता है। ऐसा ही कुछ हुआ है कांग्रेस की चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष हरीश रावत के साथ।

कांग्रेस को दोबारा से प्रदेश में सत्तारूढ़ कराने का दम भरते हुए हरीश रावत ने जो उड़ान भरी थी उसी के बीच जनता ने उन्हें औधे मुंह जमीन पर ला पटका। पिछले आठ साल में हरीश रावत एक भी चुनाव नहीं जीत सके हैं। यह अलग बात है कि उनका कद बड़ा है। इसलिए इस चुनाव की बागडोर भी पार्टी आलाकमान ने उनके हाथों में ही सौंपी थी। लेकिन इस बार भी हरदा अपनी सीट नहीं बचा सके। अनुभवी हरदा को हार भी उस नेता से मिली जो पहली बार विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने उतरा था।


आज रात हरदा अपने भविष्य के बारे में चिंतन करेंगे तो वे समझेंगे की अस्थिर सोच उनकी जीत के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनकर उभरी। प्रदेश को कांग्रेस को चुनाव के लिए वार्मअप करने वाले हरदा अपनी सीट के के बारे में विचार करना ही भूल गए। ऐन वक्त पर उन्होंने रामनगर सीट से लड़ने की जुगत भिड़ाई तो वहां पार्टी में ही उनके राजनैतिक प्रतिद्धंद्धी रणजीत रावत मोर्चा खोलकर खड़े हो गए।

अंतत: हरीश रावत को रामनगर से विदा लेनी पड़ी, फिर वे लालकुआं पहुंचे और यहां से चुनाव लड़े। लेकिन विरोधियों ने यहां उनके खिलाफ स्थानीय और बाहरी का मुद्दा उछाल दिया। हरदा पूरे चुनाव में लोगों को इसी सवाल पर सफाई देते फिरे।


हरदा बार —बार पार्टी के भीतर से ही उनके खिलाफ साजिश रचे जाने की ओर भी इशारा करते रहे। हाईकमान सभी पक्षों को बुलाकर उनके बीच समझौते भी कराती रही, लेकिन नतीजा वही निकला जिसका हरदा को डर था। हरदा के साथ लालकुआं के कांग्रेसी नेता दिल से नहीं जुट सके। या फिर उनके आसपास रहने वले नेताओं का घेरा इतना टाइट था कि स्थानीय नेता उनके आसपास फटक भी नहीं सके…यह भी संभव है।

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अब हरदा राजनीति से संन्यास लेते हैं या फिर दोबारा से कांग्रेस को मजबूत करने में अपना समय लगाएंगे। उनकी विरासत कौन संभालेगा। इन सवालों के जवाब भी हरदा को जल्दी ही देने होंगे। उनकी ओर से राहत देने वाली बात यह है कि उनकी बेटी अनुपमा रावत हरिद्वार ग्रामीण से विधानसभा चुनाव जीत चुकी हैं। हरदा की विरासत वे ही संभालेंगी या हरदा के बेटे अब आनंद रावत सक्रिय राजनीति में उतरेंगे यह सब आने वाला समय ही बता सकेगा।

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दरअसल उत्तराखंड कांग्रेस की अपनी कलह भी पार्टी को आज उत्तराखंड में मिली हार की प्रमुख वजह रही है। इस गुटबाजी को प्रश्रय देने में हरदा स्वयं भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने अपने समर्थकों की ऐसी टीम खड़ी कर दी है जो जमीन पर कम और हवा में ज्यादा रहती है। यह भी एक कारण है कि हरदा को उम्र के इस पड़ाव में अच्छा खासा अनुभव होने के बावजूद बार बार हार का सामना करना पड़ रहा है।

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