काम की बात…आज ऐसे बोएं हरेला, इन बातों का रखें ध्यान, 16 को कटेगा हरेला

प्राकृतिक खूबसूरती से लबरेज उत्तराखंड पर प्रकृति यूं ही मेहरबान नहीं हुई है। प्रकृति के प्रति यहां के लोगों की आस्था और उसकी रक्षा की भावना भी इसके पीछे का प्रमुख कारण है। प्रकृति को समर्पित उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला त्योहार या हरेला पर्व प्रत्येक वर्ष कर्क संक्रांति को, श्रावण मास के पहले दिन यह त्योहार मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार हरेला त्योहार 16 जुलाई को मनाया जाएगा और 2022 में हरेला त्योहार के ठीक 10 दिन पहले आज यानी 07 जुलाई 2022 गुरुवार के दिन हरेला बोया जाएगा। कई लोग 11 दिन का हरेला बोते हैं। इसके हिसाब से उन्होंने कल हरेला का बीजारोपण कर दिया होगा।


उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में हरेला बड़े स्थानीय त्योहारों मेंसे एक है। यह त्योहार यहां के लेागों के प्रकृति प्रेम की गवाही तो है ही साथ ही साथ कृषि विज्ञान को भी समर्पित है। 10 दिन की प्रक्रिया में मिश्रित अनाज को देवस्थान में उगा कर, कर्क संक्रांति के दिन हरेला काट कर यह त्योहार मनाया जाता है।

सुप्रभात…आज का पंचांग, श्री हनुमान जी के आठ गुण, आज का इतिहास और आचार्य पंकज पैन्यूली से जानें अपना आज का राशिफल

जिस प्रकार मकर संक्रांति से सूर्य भगवान उत्तरायण हो जाते हैं, औऱ दिन बढ़ने लगते हैं, वैसे ही कर्क संक्रांति से सूर्य भगवान दक्षिणायन हो जाते हैं, और कहा जाता है, की इस दिन से दिन रत्ती भर घटने लगते है। और रातें बड़ी होती जाती हैं। उत्तराखंड की राज्य सरकार ने 16 जुलाई 2022 को हरेला पर्व का सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।

दुस्साहय… कार में महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म, बाद में सड़क किनारे फेंका, आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज

यह भी पढ़ें 👉  सैफ अली सिद्दीकी पर दुष्कर्म का आरोप निकला झूठा, बा-इज्जत बरी


हरेला बोने के लिए हर घर में हरेला त्यौहार से लगभग 12-15 दिन पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। शुभ दिन देख कर घर के पास शुद्ध स्थान से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है। उसे छान कर रखा जाता है। हरेले में 7 या 5 प्रकार का अनाज का मिश्रण बना कर बोया जाता है। हरेला के 10 दिन पहले,देवस्थानम में, लकड़ी की पट्टी या पीतल की परात में छानी गई मिट्टी को रखकर उसमे 7 या 5 प्रकार का मिश्रित अनाज बोए जाते हैं।

ये क्या…40 हजार रुपये रिश्वत लेता नगर परिषद का EO रंगे हाथों पकड़ा गया, विजिलेंस ने ऐसे बिछाया जाल


इनमें धान, मक्की ,उड़द ,गहत ,तिल और भट्ट आदि शामिल हैं। इन अनाजों को बोने के पीछे संभवतः मूल उदेश्य यह देखना होगा की इस वर्ष इन धान्यों की अंकुरण की स्थिति कैसी रहेगी। इसे मंदिर के कोने में सूर्य की किरणों से बचा के रखा जाता है। इनमे दो या तीन दिन बाद अंकुरण शुरू हो जाता है। सामान्यतः हरेले की देख रेख की जिम्मेदारी घर की महिलाओं की होती है। इसकी सिंचाई की जिम्मेदारी कुंवारी कन्याओं के कंधे पर आ जाती है।

चंडीगढ़…वाह पाजी : दूसरी बार शादी के बंधन में बंधेंगे पंजाब सीएम भगवंत मान

यह भी पढ़ें 👉  सोलन: रेहड़ी फड़ी प्रकोष्ठ प्रदेश संयोजक तरसेम भारती पहुंचे सोलन, सुनी रेहड़ी फड़ी धारकों की समस्याएं

घर परिवार में नातक या पातक होने की स्थिति में इसको बोने से लेकर देखभाल तक की जिम्मेदारी घर की कुंवारी कन्याओं की हो जाती है। घर में कन्याओं के अभाव में कुल पुरोहित को सौंपा जाना चाहिए।

उत्तराखंड… कार के दरवाजे से टकराए बाइक सवार युवक की मौत


कुमाऊं में कहीं कहीं हरेले के दोनों का निर्धारण उस परिवार के लोगों के आधार पर तय होता है।
आज हरेला बोया जाएगा। संभव है आप भी अपने घर पर हरेला बोएंगे तो ध्यान रहे कि मिश्रित अनाज के बीज सड़े हुए न हों। हरेले को उजाले में नहीं बोते, हरेले को सूर्य की रोशनी से बचाया जाता है। यदि मंदिर में बाहर का उजाला हो रहा, तो वहां पर्दा लगा देते हैं। प्रतिदिन सिंचाई संतुलित और आराम से की जाती है। ताकि फसल सड़े ना, और पट्टे की मिट्टी बहे ना।

कोरोना…उत्तराखंड में कोरोना के 50 नए केस,बागेश्वर में भी मिला एक केस, नैनीताल में सात मरीज मिले


हरेले की पूर्व संध्या को हरेले की गुड़ाई निराई की जाती है। बांस की तीलियों से इसकी निराई गुड़ाई की जाती है ।हरेला के पुटों को कलावा धागे या किसी अन्य धागे से बांध दिया जाता है। और गन्धाक्षत चढ़ाकर उसका नीराजन किया जाता है। इसके अलावा कुमाऊं क्षेत्र में कई स्थानों में कर्मकांडी ब्राह्मण परिवार, हरेले के अवसर पर चिकनी मिट्टी में रुई लगाकर , शिव पार्वती , गणेश भगवान के डीकरे बना कर उन्हें हरेले के बीच मे रखकर उनके हाथों में , दाड़िम या किलमोड़ा की लकड़ी गुड़ाई के निमित्त पकड़ा देते है।

यह भी पढ़ें 👉  मटौर शिमला निर्माणाधीन फोरलेन विस्थापित समिति ने सरकार की नीति और नीयत पर उठाए सवाल

नैनीताल…खाई में मिला दो दिन से लापता युवक का शव

इसके अलावा गणेश और कार्तिकेय जी के डीकरे भी बनाते हैं। इनकी विधिवत पूजा भी की जाती है। और मौसमी फलों का चढ़ावा भी चड़ाया जाता है। इस दिन छउवा या चीले बनाये जाते है। वर्तमान में यह परम्परा कम हो गयी है। हरेले के दिन पंडित जी देवस्थानम में हरेले की प्राणप्रतिष्ठा करते हैं। पकवान बनाये जाते हैं। पहाड़ों में किसी भी शुभ कार्य या त्योहार पर मास का बड़ा (उड़द की दाल के बड़े) बनाना जरूरी होता है। इस दिन प्रकृति की रक्षा के संकल्प के साथ घरेां के आसपास और जंगलों में नए पौधे लगाते हैं। अब तो प्रदेश सकरार इसके लिए विशेषअभियान भी चला रही है।

हल्द्वानी…दुस्साहस: आफिस बंद करके रात को घर पहुंचे दो बिजनेस पार्टनर, अंदर काका हाल देखकर उड़ होश…फिर क्या हुआ


कटे हुए हरेले में से दो पुड़ी या कुछ भाग छत के शीर्षतम बिंदु जिसे धुरी कहते है, वहा रख दिया जाता है। इसके बाद कुल देवताओं और गांव के सभी मंदिरों में चढ़ता है। साथ साथ मे घर मे छोटो को बड़े लोग हरेले के आशीष गीत के साथ हरेला लगाते हैं। गांव में या रिश्तेदारी में नवजात बच्चों को विशेष करके हरेला का व पकवान भेजे जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *