भाजपा का दांव : पुष्कर बने हीरो या बनेंगे बलि का बकरा

हल्द्वानी। जो 115 दिन पहले नहीं किया वो 116वें दिन करना पड़ा। लेकिन हाईकमान तो हाईकमान है। जिद है मान है प्रतिष्ठा है और इसी लिए हाईकमान है। बड़े बड़े सूरमा मैदान जोर आजमाइश कर रहे थे, लेकिन चुना गया युवा चेहरा, यह वही युवा चेहरा है जो आज से 116 दिन पहले भी हाईकमान के सामने आया था, तब उपमुख्यमंत्री के लिए उसके नाम पर विचार भी हुआ था। गढ़वाल अैर कुमाऊं को बैलेंस करने के लिए लेकिन फिर उसकी फाइल झटके से किनारे कर दी गई और तब संघ से जुड़़े वरिष्ठ भाजपाई तीरथ सिंह रावत हाईकमान की पहली और अंतिम पसंद बनकर उभरे थे। हाई कमाान ने मान लिया था कि तीरथ युवाओं के साथ कुमाऊं और गढ़वाल के बीच संतुलन भी साध लेंगे, लेकिन यहां हाईकमान यह भूल गया कि सांसद तीरथ को विधायक तीरथ बनाना काफी टेड़ा काम होगा। कहा तो यही जा रहा है कि चुनाव आयोग के फिलहाल चुनावों पर प्रतिबंध के कारण तीरथ को पद से हटने के लिए कहा गया, लेकिन पार्टी के अंदर के सूत्र ही बता रहे हें कि बहुत कम अरसे में ही पार्टी हाईकमान को समझ में आ गया कि जिन तीरथ रावत को उसने युवाओं का दिल जीतने के लिए भेजा था वह फटी जींस, अमेरिका की गुलामी और बीस बीस बच्चों वाले बयान देकर युवाओं को उलट पार्टी से दूर करने का काम कर रहे हैं। यह अलग बात है कि इन दिनों प्रदेश में नौकरियों की बाढ़ आई हुई है। लेकिन युवा यह भी जानते हैं कि यह सब चुनावी घोषणाएं हैं। चुनाव के बाद उनके आवेदन किसी रद्दी की टोकरी मतें मिलेंगे।
इसलिए इस बार पार्टी हाईकमान ने अपने पुराने फैसले को बदलते हुए युवा नेता पुष्कर धामी को प्रदेश की कमान सौंप दी। वैसे इस पूरी उठापटक में हाईकमान के फैसलों से प्रदेश में भाजपा की सेहत और खराब ही हुई। आम आदमी के मन में धारणा बैठ गई कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड को गंभीरता से नहीं लेता, चुनावी वर्ष में मुख्यमंत्री बदल कर संदेश देता है कि हम गंभीर हैं, वर्ना यदि सवा चार साल तक मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र के काम काज ठीक नहीं था तो राज्य हित में उन्हें पहले ही हटाया जाना चाहिए था लेकिन तब पार्टी आलाकमान आल इज वेल का राग अलापता रहा। इसके बाद तीरथ को लेकर आए तो वहां भी प्रयोग कर दिया।
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खैर जो भी हो सच्चाई यही है कि पुष्कर धामी प्रदेश के नए मुख्यमंत्री होंगे। और उनके पास इस सीएम —सीएम खेल से खराब हुई पार्टी की छवि को बदलने का समय बहुत ही कम है। दरअसल उनके सिर पर सीएम पद का नहीं कांटों भरा ताज रखा गया है। पार्टी ने धामी पर दांव भ्ी सोच समझ कर खेला है। यदि उत्तराखंड हाथ से फिसला तो हार का ठीकरा फोड़ने के लिए एक सिर मिल गया और यदि जीत गए तो एक नया युवा नेता पार्टी को मिल जाएगा।
लेकिन भाजपा के तमाम बड़े नेता धामी को बर्दाश्त कर पाएंगे यह सवाल भी गंभीर है। पुष्कर को ऐसे लेागों को साधने की चुनौती का सामना भी करना पड़ेगा। उनका मंत्रिमंडल कैसा होगा यह भी उन्हें कुछ ही घंटों में तय करना है। देखें आगे क्या होता है।

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