बागेश्वर… #एक्सक्लूसिव : पढ़िए सुंदरढुंगा ग्लेशियर ट्रेकिंग हादसे की अनसुनी कहानी, क्यों बिखर गयी सरकार-प्रशासन और ग्रामीणों के बीच की बांडिंग, क्यों निकले तीस ग्रामीण खिलाफ सिंह का शव लेने

तेजपाल नेगी साथ में सुष्मिता थापा
बागेश्वर।
पूरे पांच दिन बीत चुके हैं भनार नामक स्थान पर सुंदरढुंगा ग्लेशियर ट्रैकर्स और गाइड के साथ अनर्थ हुए। खुले आसमान के नीचे पड़े पांच ट्रेकर्स के शवों को देखे जाने के गवाह तो हैं लेकिन उनके साथ ही चल रहे गाइड बाछम गांव निवासी खिलाफ सिंह जिंदा हैं या मृत किसी को नहीं मालूम। यह अलग बात है कि पांच दिनों में खिलाफ सिंह के भी बचे होने की संभावना इस ग्लेशियर में पारे की तरह शून्य से भी नीचे लुढ़क गई है।

गांव वाले 21 अक्टूबर से प्रशासनिक सहायता की इंतजार करने के बाद आज यानी 23 अक्टूबर तड़के घटना स्थल के लिए कूच कर गए। इससे पहले उन्होंने बाछम गांव में अपने बुजुर्गों के सामने संकल्प लिया कि वे अपने खिलाफ सिंह का शव लेकर 24 की शाम तक वापस लौट आएंगे। पूरी तरह से फिल्मी लग रहे इस घटनाक्रम के बारे में सुनकर शायद आपकी भी आखें छलछला जाएं। इस बीच मौके के लिए कूच करने से पहले लगभग 30 ग्रामीणों के इस दल ने तहसीलदार को एक संदेश भी भेजा कि प्रशासन ने उनके साथ तीन दिनों से सिर्फ और सिर्फ धोखाधड़ी ही की है। इसलिए अब वे अपनी जान हथेली पर रखकर खिलाफ सिंह का शव लेने जा रहे है, लेकिन पश्चिम बंगाल के ट्रेकर्स के शवों को वे हाथ भी नहीं लगाएंगे, लेकिन गांव के सीधे सच्चे लोगों के इस संदेश को उनके ही बुजुर्ग गंभीरता से नहीं ले रहे उनका कहना है कि हम अपने बच्चों को जानते हैं वे शवों में अपने और परायों का अंतर नहीं करेंगे और सभी शवों को लाकर उन्हें ससम्मान अंतिम संस्कार का मौका देंगे। 23 अक्टूबर की सुबह हुए इस घटनाक्रम से एक बात तो साफ हो गई कि ऐसी घटनाओं के मय स्थानीय लोगों, प्रशासन और सरकार के बीच जो आपसी तालमेल और विश्वास की जो मजबूत बांडिंग दिखनी चाहिए थी वह दरकी अवश्य है।

जातोली से एसडीएम से वाकी टॉकी से बात करते पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण


बीस को नहीं 18 को हुआ था हादसा
सुदंरढुगा ट्रेक हादसे की कहानी शुरू करने से पहले आपकी एक गलतफहमी हम साफ कर दें कि यह हादसा कुमाऊं में आई प्राकृतिक आपदा की श्रृंखला की कोई कड़ी नहीं है। सुंदरढुंगा हादसा कुमाऊं में अतिवृष्टि की वजह से आई आपदा से दो दिन पहले घटित हो चुका था… यानी 18 तारीख को। अब शुरू करते हैं सुंदरढुंगा ग्लेशियर ट्रेक हादसे की कहानी। 11 अक्टूबर की सुबह पश्चिम बंगाल के पांच ट्रेकर्स, चार पोर्टर और एक गाइड खिलाफ सिंह के साथ कुल दस लोगों की एक टीम ग्लेशियर पर चढाई के लिए कूच करती है। पोर्टरों के नाम सुरेश सिंह दानू, तारा सिंह दानू, विनोद सिंह दानू और कैलाश सिंह दानू है। 12 तारीख को यह टीम जातोली पहुंची। रात्रि विश्राम किया। 13 को टीम कठलिया पहुंची यहां भी रात्रि विश्राम किया। 14 को मैकतोली में रात्रि विश्राम करते हुए यह टोली 15 को मैकतोली से कठलिया, 16 को यह टीम बैलूड़ी टॉप पहुंची। यहां से 17 को यह टीम भनार पहुंची। यहीं टैंट लगाकर रूकने की प्लान गाइड खिलाफ सिंह ने तय किया था। शाम चार बजे यहां बर्फवारी शुरू हो गई थी। रात होते-होते यह बर्फवारी थम गई। सब ने राहत की सांस ली और टैंटों में सो गए। सुबह उठे और आगे की ट्रेकिंग के लिए निकल पड़े। 18 का टास्क था खनाखड़ा दर्रा, लेकिन मौसम को यह कतई मंजूर नहीं था, इस दिन सुबह ही बर्फ को तूफान शुरू हो गया। कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद गाइड खिलाफ सिंह ने निर्देश दिए कि आगे बढ़ने के बजाए कठलिया की ओर वापसी की जाए। लगभग 32 वर्षीय खिलाफ सिंह जानते थे बर्फ के तूफान में जान का खतरा है।

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जातोली में तहसीलदार से उलझते ग्रामीण


बर्फ का तूफान ऐसा कि विजीबिलिटी 5 फीट से भी कम
दसों लोग कठलिया की ओर निकल पड़े। लेकिन तूफान इतना तेज था कि बिजीबिलिटी 5 छह फीट भी नहीं रह गई। थोड़ा नीचे की ओर आए होंगे कि एक ट्रेकर की तबीयत बिगड़नी शुरू हो गई। ठंड की वजह से उनका बदन जमने लगा। खून गाढ़ा हो जाने के कारण धमनियों में खून का प्रवाह कम होने लगा तो शरीर निढाल होने लगा। सुरेश नामका पोर्टर ट्रेकर को लेकर कुछ दूर तक तो चला लेकिन उसकी हिम्मत भी जवाब दे गई। इस बीच गाइड खिलाफ सिंह ने पोर्टरों को निर्देश दिए कि वे आगे चलकर कठलिया में रात ठहरने का इंतजाम करें। इसके बाद चारों पोर्टर तेज कदमों से आगे बढ़ चले। पीछे रह गए पांच ट्रेकर और एक गाईड। अंधेरा गहराता जा रहा था, पोर्टर किसी तरह कठलिया पहुंच चुके थे। काफी देर तक इंतजार किया लेकिन न तो ट्रेकर पहुंचे और न ही गाईड खिलाफ सिंह।

आप बीती सुनाता पोर्टर सुरेश सिंह दानू


जब पोर्टर वापस गए तो देखी बर्फ में पांच लाशें
19 अक्टूबर को पूरा दिन इंतजार में कटा। बीस को चारों पोर्टर बिछ़ड़े हुए ट्रेकर्स व गाइड को खोजने के लिए फिर भनार के लिए रवाना हुए। रास्ते में कोई नहीं मिला। कुछ दूर पर पहुंच कर उनकी आखें फटी की फटी रह गईं। उनके सामने लगभग तीन फीट ताजा बर्फ से झांकते पश्चिम बंगाल के पांच ट्र्रेकरों के शव थे। पोर्टर सुरेश दानू बताता है कि उन्होंने आसपास काफी तलाशा लेकिन खिलाफ सिंह नहीं मिला। इसके बाद पांचों उल्टे पैर वापस कठलिया आ गए। यहीं से उन्होंने वाकी टाकी के माध्यम से बाछम में हादसे की खबर दी थी। रात दस बजे के आसपास वे भी जातोली पहुंच गए थे। और यहां से बाछम । इस इलाके में बीएसएनएल का एक मात्र टावर है। जिस पर भी सिग्नल नहीं है। इस समस्या का समाधान ग्रामीणों वाकी टॉकी से निकाल लिया है। उनके पास पांच किमी तक क्षमता वाले वाकी टाकी हैं। इन्हीं के माध्यम से हादसे की खबर एक गांव से दूसरे गांव होते हुए कपकोट पहुंचाई। शाम लगभग चार बजे प्रशासन के पास हादसे की जानकारी पहुंची। पूरे प्रदेश ने यही समझा कि अतिवृष्टि के कारण आई आपदा की श्रृंखला में यह हादसा भी हुआ है। अब जब चारों पोर्टर दुनिया के सामने आए हैं तब पता चल रहा है कि यह हादसा तो दो दिन पहले हो चुका था।

गाइड खिलाफ सिंह का भाई अपनी पीड़ा बताते हुए


आज तक भनार में नहीं उतर सका है हेलीकाप्टर
21 अक्टूबर को प्रशासन ने सेना के एमअई 7 में एसडीआरएफ की टीम को भेजा लेकिन मौसम खराब होने के कारण हेलीकाप्टर आगे नहीं जा सका। हेलीकाप्टर एसडीआरएफ के छह जवानों को खाती गांव में उतार का वापस लौट आया। तब से ये जवान खाती में ही डेरा डले बैठे थे। 22 को सेना के दो चीता हेलीकाप्टर भनार के लिए भेजे गए, लेकिन सब कुछ व्यर्थ, लेकिन इस बीच एसडीआरएफ की टीम पैदल ही जातोली के लिए रवाना हो गई।

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22 अक्टूबर को तैयार ग्रामीणों की टीम, लेकिन इस टीम को रोक दिया गया


22 को दर्जनों ग्रमीणों ने किया था कूच लेकिन…
22 को ही दर्जनों ग्रामीण बाछम से घटना स्थल के लिए रवाना हुए, लेकिन भनार के नजदीक पहुंच कर उन्हें पटवारियों ने विश्वास दिलाया कि प्रशासन सभी शवों को कल रेस्क्यू कर लेगा। ग्रामीण लौट आए। उन्हें तहसीलदार से मिलाया गया। तहसीलदार ने बताया कि कल सुबह सेना का हेलीकाप्टर भनार जाएगा और शवों को ले आएगा। आज ग्रामीणों का धैर्य जवाब दे गया। मुंह अंधेरे ही लगभग तीस ग्रामीणों की टोली भनार के लिए कूच कर गई। इधर कपकोट के केदारेश्वर हेलीपैड से सेना के दो चीता हेलीकाप्टरों ने फिर उड़ान भरी लेकिन भनार के ऊपर मंडरा कर हेलीकाप्टर लौट आए। इस पर जतौली में ग्रामीणों का गुस्सा भड़क गया। उनका आरोप था कि प्रशासन 11 बजे के बाद हेली काप्टर भेज रहा है जबकि उस इलाके में सुबह पांच से दस तक ही मौसम साफ रहता है। इसके बाद भाप के बादल आसमान पर डेरा डाल देते हैं। प्रशासन इस स्थिति को समझ नहीं पा रहा है।

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23 अक्टूबर को उड़ान की तैयारी करता सेना का चीता हेलीकाप्टर


अब क्या है चिंता
ग्रामीणों को चिंता है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में भैंसों के आकार के गरूड़ पाए जाते हैं। जो एक इंसानी शरीर को दो घंटे में चट कर सकते हैं। यही नहीं बर्फ में रहने वाला भालू भ्ज्ञी इन दिनों प्रोटीन की तलाश में घूमते है। यदि शव खुले में पड़े हैं तो उन्हें ये जानवर नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे पूरे देश में सुदंरढुंगा ट्रेक की बदनामी होगी। इसलिए वे अपने बिना प्रशासन व सरकार की मदद के अपने लाडले गाइड खिलाफ सिंह की तलाश में निकल पड़े हैं हालांकि उन्हें भी उनके जीवित होने की उम्मीद न के बराबर ही बची है।

गाइड खिलाफ सिंह का फाइल फोटो


खिलाफ सिंह का परिवार
32 वर्षीय खिलाफ सिंह की पत्नी की कुछ साल पहले मौत होने के बाद तीन बच्चों को पालने की जिम्मेदारी उनके ही कंधो पर थी। उनकी बड़ी बेटी 13 साल की है। उससे छोटी एक बेटी है और फिर एक दिव्यांग बेटा। अब खिलाफ के इस कच्चे परिवार का क्या होगा ग्रामीणों को यह डर सता रहा है।

23 अक्टूबर प्रशासन को की एक और नाकाम कोशिश


21 साल पहले भी मारे गए थे पश्चिम बंगाल के 6 ट्रेकर
ग्रामीणों के अनुसार पहले ट्रेकर सुदंरढुंगा ग्लेशियर में ट्रेकिंग के दौरान सुखराम गुफा में रात गुजारते थे। 21 साल पहले यहां एक पत्थर गिरा और पश्चिम बंगाल के 6 ट्रेकरों की मौत के बाद यह गुफा बंद कर दी गई।
जो भी हो उम्मीद की जानी चाहिए कि किसी भी तरह आज सभी शवों को रेस्क्यू कर लिया जाए। चाहे प्रशासन या फिर ग्रामीण इस सफलता को हासिल करें। शवों को नुकसान न पहुंचे और खूबसूरत सुदंरढुंगा ग्लेशियर की बदनामी न हो। वर्ना प्रशासन, सरकार और ग्रामीणों के बीच जो अघोषित अनुबंध ऐसे हादसों के दौरान काम करता है उसके पन्ने तो बिखर ही गए हैं।

(ग्रामीण, पोर्टर व प्रशासन से बातचीत पर आधारित)

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