नालागढ़…#सवालिया निशान : काऊ सेंचुरी में 8 माह में 180 गौवंशीय पशुओं की मौत का जिम्मेदार कौन

नालागढ़। हांडा खुंडी काऊ सेंचुरी में गौवंशीय पशुओं की मौत का सिलसिला नहीं थम रहा है। विगत दिनों 3 गौवंशीय पशुओं की मौत हो गई है। 8 माह में अब तक करीब 180 गौवंशीय पशुओं की मौत हो गई है लेकिन गाय पर राजनीति करने वाले इनकी हिफाजत के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।

दरअसल, सड़कों पर आवारा घूम रहे गौवंशीय पशुओं की रक्षा के लिए इसी साल काऊ सेंचुरी का उद्घाटन किया गया था। प्रदेश सरकार ने यह करीब 3 करोड़ की लागत से बनाया गया था। इसमें करीब 500 आवारा पशुओं को रखा गया।

क्षेत्र वासियों ने पशुओं की मौत होने पर रोष व्यक्त किया है। लोगों का आरोप है कि यहां सेंचुरी में पशुओं को भरपेट चारा नहीं दिया जा रहा है और मात्र उन्हें सूखा चारा ही खिलाया जा रहा है। पशुओं की मौत होने के बाद भी उन्हें उठाकर कहीं दफनाया भी नहीं जाता है।

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जिस कारण बीमारी का खतरा भी बना हुआ है। लोगों ने सरकार की काऊ सेंचुरी प्रबंधन कमेटी पर भी सवाल उठाते हुए कहा है कि जिस हिसाब से पशुओं को चारा और मेडिकल सुविधाएं मिलनी चाहिए उस हिसाब से काऊ सेंचुरी में सुविधाएं नहीं दी जा रही है, जिसके कारण बाहर से लाए जा रहे पशुओं की एक के बाद एक मौत होनी शुरू हो चुकी है और जिस पर ना तो सरकार कोई ध्यान दे रही है और न ही प्रबंधन कमेटी कोई पुख्ता इंतजाम कर पा रही है।


इस बारे में गौ सेवा आयोग के प्रदेश उपाध्यक्ष अशोक शर्मा ने बताया कि काऊ सेंचुरी में सभी सुविधाएं पूर्ण रूप से दी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि हरा चारा भी पशुओं को दिया जाता था। लेकिन, लेबर की दिक्कत होने की वजह से आजकल कम हरा चारा पशुओं को दिया जाता है उन्होंने कहा कि आगामी दिनों में हरे चारे की भी कोई दिक्कत नहीं आएगी।

]उनका कहना है कि पशुओं की मौत होने का कारण जब पशुओं को बाहर से काऊ सेंचुरी में लाया जाता है तो पशुओं ने बाहर लिफाफे थैले अन्य रसिया खाई होती हैं।

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जिस कारण पशुओं की मौत हुई थी उनका कहना है कि कई पशुओं के शवों के पोस्टमार्टम भी करवाए गए और उनके पेट से लिफाफे रस्सी एवं अन्य चीजें निकाली गई हैं उन्होंने कहा कि काऊ सेंचुरी में पशुओं को हर संभव सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही है।

काऊ सेंचुरी कमेटी के प्रधान राम प्रताप चौधरी ने भी अशोक शर्मा जैसी बात दोहराई। इस बारे में हमने पशुपालन विभाग नालागढ़ के सीनियर वेटरनरी ऑफिसर डॉ राकेश से बात करने की कोशिश की लेकिन कई बार फोन करने के बावजूद भी उन्होंने हमारा फोन तक नहीं उठाया जिससे साफ जाहिर होता है कि एक सीनियर डॉक्टर जब पत्रकारों की फोन नहीं उठा रहे हैं तो आम लोगों की समस्याओं को लेकर कितने गंभीर होंगे।

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यहां सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि अगर सरकार और प्रशासन द्वारा इस काऊ सेंचुरी में पशुओं के रहने के लिए उचित व्यवस्था की गई है तो क्यों लगातार पशुओं की मौत हो रही है और आठ माह में करीबन 180 पशु दम तोड़ चुके हैं या फिर उन्हें जिस हिसाब से मेडिकल सुविधाएं मिलनी चाहिए उस हिसाब से सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है अब देखना यही होगा कि कब इस काऊ सेंचुरी की दशा सुधारी जाती है और कब पशुओं की मौत होने का सिनसिला रूकता है।

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