हल्द्वानी… #पूरा ही झोल : केदार धाम को राजनीति की मंडी बनाने की कोशिश!
हल्द्वानी। हमारे चार धामों में से एक केदारधाम इन दिनों सुर्खियों में है। यूं तो यह विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन, इन दिनों अलग तरह से सुर्खियों में है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां के गर्भग्रह से देश और दुनिया को संबोधित किया।
इस तरह नई की परंपरा को जन्म दिया गया है। नेताओं ने एक तरह से इस धर्म स्थल को राजनीति की मंडी बनाने की कोशिश ही नहीं की, बल्कि बना भी दिया। हो सकता है भले ही पंडा, पुरोहितों हक-हकूकधारियों को रिझाने के लिए प्रयास किया गया हो। लेकिन, यह कितना सही है कितना गलत। यह जो पीढ़ी दर पीढ़ी केदारनाथ की सेवा करते आ रहे हैं।
निष्पक्ष पंडा—पुरोहित ही बखूबी जान और समझ सकते हैं। उधर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रधानमंत्री के गर्भग्रह से लाइव प्रसारण करने पर सवालिया निशान लगाए हैं। लेकिन, वह भी पाक साफ नहीं हैं।
उन्होंने भी वहां मंदिर परिसर से पंडों को संबोधित किया था। कांग्रेस के सत्ता में आने पर देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का दावा और वायदा किया। सेना के रिटार्डर कर्नल और राजनीति का अदना सा सिपाही ‘आप’ नेता कर्नल कोडियाल भी पंडा-पुरोहितों को भड़काने केदार के दर पर पहुंच गए। उन्होंने भी देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की तान छेड़ डाली। सभी इस बात को साबित करने में तुले हुए हैं कि तेरे मुंह पर ज्यादा झोल मेरे मुंह पर कम झोल।
जबकि पूरे मामले में पूरा झोल ही झोल नजर आ रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने गर्भग्रह से लाइव प्रसारण कर ज्यादा ही मनमानी की है।
देवस्थानम बोर्ड का एक और पक्ष सामने आया है जो इतिहास के लिए नया है। सरकार और उनके अधिकारियों के साथ अब पूंजीपतियों को भी मंदिर संचालन समिति का सदस्य बनाया जा रहा है। पिछले वर्ष मुकेश अम्बानी के छोटे पुत्र अनंत अम्बानी को देवस्थानम बोर्ड का सदस्य बनाया गया है। अनंत अम्बानी न तो उत्तराखंड के स्थानीय निवासी हैं और न ही उत्तराखंड सरकार का हिस्सा हैं।
बीते दिन उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को केदारनाथ मंदिर परिसर में इसलिए नहीं घुसने दिया गया। क्योंकि उन्हें देवस्थानम बोर्ड का जनक माना जा रहा है।
सही बात है कि किसी को हक नहीं है कि वो तय करें कि कौन बाबा केदार का दर्शन करे और कौन नहीं। फिर चाहे मंदिर के पुजारी ही क्यों न हों। पर अम्बानी के बेटे को देवस्थानम बोर्ड का सदस्य बनाकर ये हक कैसे दे दिया गया कि वो तय करें कि बाबा केदार के परिसर समेत अन्य मंदिरों में क्या हो सकता है और क्या नहीं? तो ताली एक हाथ से नहीं बजती है।
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