बागेश्वर…ये क्या : किराया खर्च किया, नारे लगाए, गिड़गिड़ाए, लगाया जाम, फिर भी नहीं मिले सरकारी कंबल, रोते हुए घरों को लौटी गरीब श्रमिक महिलाएं

बागेश्वर। छोटे से जिले में कितनी अव्यवस्था और सिस्टम कितना नकारा हो गया है, यह गुरुवार को दिखा,ज़ब मजदूर महिलाएं कंबल के लिये पूरे दिन शहर के चक्कर काटती रहीं। आखिर में वे आखों में आंसू लिए हुए अपने घरों को वापस लौट गईं। कुल मिला कर बागेश्वर में गरीबी का सरकारी मशीनरी ने जमकर मखौल उड़ाया।


गुरूवार को जनपद के दूरस्थ गांवों से कई रूपये खर्च करके जिला मुख्यालय पहुंची सैकड़ों महिलाएं चली तो इस उम्मीद से थीं कि वापसी में उनके हाथों में गर्मागर्म कंबल होंगे। लेकिन बागेश्वर आते ही श्रम विभाग के कार्यालय ने जब उन्हें न कह दिया तो हारी महिलाओं ने शहर में जाम लगा दिया।

इसके बाद भी उन्हें मात्र आश्वासन मिला ही है। ठंड से ठिठुर रहे इन परिवारों को मात्र कंबल के
लिए जाम लगाने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। गुरूवार को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां अपनी व प्रदेश सरकार की उपलब्धियां गिना रहे थे वहीं बागेश्वर की गरीब महिलाएं मात्र कंबल लेने के लिए जद्दोजहद सरकरी मशीनरी से जद्दोजहद कर रही थीं।

यह भी पढ़ें 👉  नालागढ़ ब्रेकिंग : छह और 10 साल की दो बहनों के साथ जंगल में हैवानियत, आरोपी फरार

एक ओर जहां प्रशासन प्रतिदिन कंबल बांटने के समाचार मीडिया को जारी कर रहा है तथा समाजसेवी संगठन भी कंबल बांटने के समाचार प्रकाशित करवा रहे हैं। वहीं सच्चाई यह है कि गरीबों को एकमात्र कंबल के लिए जाम लगाने को मजबूर होना पड़ रहा है। वहीं कई लोग जाम की आलोचना करते हुए यह कहते देखे गए कि सरकार की मुफ्त की योजनाओं से आदमी अकर्मण्य हो गया है तथा वह मुफ्त के लिए कुछ भी कर गुजरने से परहेज नहीं कर रहा है। कहा जा रहा है कि घरों में अच्छी आर्थिक स्थिति वाले परिवार भी मुफ्त के कंबल के लिए लाइन में लग रहे हैं।

यह भी पढ़ें 👉  सोलन ब्रेकिंग : चोरों ने उड़ाई आलू, प्याज की बोरी और रेडीमेड कपड़ों के कार्टन, सीसीटीवी ने पकड़ाए दोनों सगे भाई

खास खबर… चुनाव : तय समय पर ही होंगे उत्तराखंड— उत्तर प्रदेश में चुनाव— मुख्य चुनाव आयुक्त


कोरोना के इस माहौल में एक साथ इतनी भीड़ सरकारी योजना के लिये दौड़ रही है, लेकिन प्रशासन कहीं भी नज़र नहीं आया। श्रम अधिकारी से लेकर जिलाधिकारी तक ने फ़ोन उठाने क़ी जहमत नहीं उठाई। अधिकारी दिन भर बंद कमरों में बैठकर बैठके ले रहे हैं। ऐसी बैठकों का क्या फायदा ज़ब लाभार्थी परेशान होकर सड़क पर भटकने को मजबूर हों।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *