देहरादून न्यूज : सीएम की घोषणा का स्वागत लेकिन मलिन बस्तियों का जारी रहेगा आंदोलन

देहरादून । बाबा साहेब अम्बेडकर की जयंती, 14 अप्रैल, पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत द्वारा की गई मलिन बस्तियों के नियमितीकरण सम्बन्धी घोषणा का जन हस्तक्षेप ने स्वागत किया है। संगठन का कहना है कि यह घोषणा नाकाफी है, अतः जन हस्तक्षेप का संयुक्त जन आन्दोलन जारी रहेगा।
जन हस्तक्षेप का कहना है कि कोरे आश्वासनों से मलिन बस्तियों में रहने वालों का कोई भला नहीं होने वाला है। संगठन ने कहा है कि हम सरकार को यह याद दिलाना चाहते हैं कि भाजपा सरकार की ओर से ऐसे ही आश्वासन वर्ष 2017 में और 2018 में भी मिले थे। इसके बावजूद वर्ष 2018 में ही  कई बस्तियों को उजाड़ने के लिए सरकार तैयार हो गयी थी। इसके लिये 16,000 परिवारों को नोटिस भी दे दिये गये। मगर इस बार लोग सिर्फ आश्वासनों पर विश्वास नहीं करने वाले हैं। इसीलिये उनकी माँगें मानी जाने तक वे संघर्ष जारी रखने के लिये कृत संकल्प हैं। इस मुद्दे पर 21 जनवरी से देहरादून शहर में संयुक्त रूप आंदोलन हो रहा है। इस मुद्दे पर अनगिनत लोगों ने अपनी आवाज बुलन्द की और अनेक स्थानों पर जन सम्मेलन हुए। गत 15 मार्च को हजारों लोगों ने इस मुद्दे पर सचिवालय कूच किया। लेकिन मलिन बस्ती निवासियों की मूल चिंताओं और मांगों पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया।
जन हस्तक्षेप ने कहा है कि संगठन के आंदोलन की पांच मांगे क्रमशः इस प्रकार हैं:

  1. अतिक्रमण हटाने के नाम पर किसी भी परिवार को बेघर नहीं किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार कानून बनाये।
  2. अगर किसी भी क्षेत्र से पर्यावरण, आपदा के ख़तरे या विकास कार्यों की वजह से लोगों को पुनर्वासित करने की ज़रूरत है, यह बात एक पारदर्शक प्रक्रिया द्वारा तय किया जाए और पुनर्वास लोगों की सहमति से ही होना चाहिए।
  3. उन इलाकों के आलावा अन्य इलाकों में यदि कोई एक साल से ज्यादा खुद के घर में रह रहे हैं, सूक्ष्म शुल्क देने पर उनको उस घर का पट्टा मिलना चाहिए।
  4. मज़दूरों के लिए हॉस्टल बनने चाहिए और बस्तियों के निकट कम किराये पर आवास उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
    5.  इस योजना के निर्माण का काम निर्माण मज़दूरों के सहकारी समितियों या प्रोड्यूसर कम्पनियों द्वारा किया जाना चाहिए।
    संगठन ने कहा है कि अगर सरकार इस मुद्दे पर सचमुच में गंभीर है तो पहले बिंदु पर तुरंत कार्यवाही हो सकती है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर परिवारों को बेघर करना; बच्चों और महिलाओं को तिरपाल के नीचे रहने के लिए मजबूर करना निहायत अमानवीय है और गरीब जनता के ऊपर अन्याय है। राज्य बनने के 21 साल बाद भी यदि प्रदेश में मजदूरों और गरीब लोगों के लिये एल.आई.जी. हाउजिंग की कोई योजना नहीं बनी है तो यह सरकार की असफलता है। इसके अतिरिक्त बाकी बिंदुओं पर भी वर्ष 2016 के ‘उत्तराखंड रिफामर्स, रेगुलराइजेशन, रिहैबिलीटेशन, रिसैटलमेंट एंड प्रिवेंशन ऑफ़ एनक्रोचमेंट ऑफ़ दि स्लम्स लोकेटेड इन अर्बन लोकल बाॅडीज ऑफ़ दि स्टेट एक्ट’ की धारा 4 के अन्तर्गत नियमावली बनाने का सरकार को पूरा अधिकार है।
    जन हस्तक्षेप संगठन में शंकर गोपाल और विनोद बडोनी (चेतना आंदोलन), राजीव लोचन साह, (अध्यक्ष, उत्तराखंड लोक वाहिनी ),सतीश धौलखंडी (जन संवाद समिति ), अपूर्व (नौजवान भारत सभा), किशोर उपाध्याय, (पूर्व राज्य अध्यक्ष, कांग्रेस पार्टी ), समर भंडारी, राज्य सचिव( भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी), डॉ. एसएन सचान (राज्य अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी ), राकेश पंत (राज्य संयोजक, तृणमूल कांग्रेस)और इंद्रेश मैखुरी, (गढ़वाल सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-माले) शामिल हैं।
यह भी पढ़ें 👉  हल्द्वानी ब्रेकिंग : पकड़ा गया यू ट्यूबर सौरव जोशी से फिरौती मांगने वाला 19 वर्षीय युवक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *