कालाढूंगी सीट …दांव पर साख : इस बार भाजपा के ‘दशरथ’ आ फंसे हैं कांग्रेस के ‘महेश’ और अपने ही ‘गजराज’ के बिछाए चक्रब्यूह में

हल्द्वानी। भाजपा के दशरथ इस बार अपनी ही राजधानी में अपनों और परायों से घिरे पड़े हैं। कांग्रेस ने भूल सुधार करते हुए महेश को तीर तलवार देकर उन्हें चुनैती दी है तो उनकी ही पार्टी से विद्रोह करके चुनावी रण में उतरने का दम भरने वाले गजराज भी उनके ही अस्त्र शस्त्रों से लैस होकर उनके खिलाफ ताल ठोकने के लिए उतर गए हैं।


यह स्थिति भाजपा के दशरथ यानी बंशीधर भगत के लिए सहज तो नहीं है। कांग्रेस को और बागी जितने मजबूत होते जाएंगे। अभी मतदान को 17 दिन बकाया है। ऐसे में कौन कब बाजी पलट दे कहा नहीं जा सकता है। ऐसे में बंशीघर को इस चुनाव में चैन की बंशी बजाने का मौका हाथ लगता दिखाई नहीं दे रहा है।


कांग्रेस ने महेंद्र पाल को कालाढूंगी का टिकट देकर बंशी को एक तरह से वाक ओवर दे दिया था लेकिन कांग्रेस आलाकमान को सही समय पर अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने महेंद्र पाल को को रामनगर शिफ्ट करके कालाढूंगी सीट का टिकट महेश शर्मा को टिकट थमा दिया। जाहिर है भाजपाई खेमा ऐसा कतई नहीं चाहता था। महेश शर्मा वहीं है जिन्होंने पिछले चुनाव में कांग्रेस से टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था और देश में चल रही प्रचंड मोदी लहर के बीच 100681 वोटों में से 20214 वोट हासिल करने में सफलता हासिल की थी।

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अब जब लोगों के सरि से मोदी नाम का बुखार भी ढलान पर है और प्रदेश की निवर्तमान भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इन्कंबैंसी लहर भी चल रही है। ऐसे में राजनैतिक विष्लेषक उम्मीद जता रहे हैं कि महेश शर्मा पहले से कहीं अच्छा कर सकते हैं। उस चुनाव में बंशीधर भगत को 1लाख 681 वोटों में से 45704 वोट मिले थे। पिछले चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी महेश के निर्दलीय खड़े होने के बावजूद 25 हजार से ज्यादा वोट ले आए थे। इस बार वे भूमिगत हैं कांग्रेस के वोट भी महेश के खाते में ही जुड़ने की उम्मीद है।

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वैसे बंशी कई जगह कह चुके हैं कि उनके भाग्य में राज योग लिखा है इसीलिए वे हल्द्वानी में डा. इंदिरा हृदयेश को हरा जाते हैं तो कालाढूंगी में जाकर भी जीत का डंका बजाते ​हैं। लेकिकन वे यह नहीं बताते कि उन्होंने हल्द्वानी सीट पर विजय प्राप्त करने के बाद अगले चुनाव में यह सीट क्यों छोड़ दी।


इस बार पार्टी से बगावत करके मैदान में उतरने का दम ठोक रहे गजराज बिष्ट को यदि मनाया नहीं गया तो वे भी बंशी के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। वे भाजपाई जो कालाढूंगी सीट पर बंशीघर की दावेदारी को चुनौती दे रहे थे वे भी बंशी के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। और आम आदमी पार्टी उनके गढ़ों में सेंधमारी का दम तो अलग से भर ही रही है। इस सीट पर कांग्रेस और आप के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। लेकिन भाजपा के लिए कैबिनेट मंत्री व पूर्व अध्यक्ष की साख के अलावा व्यक्तिगत भाजपा के दशरथ के लिए खोने के लिए पूरा साम्राज्य है। देखें दशरथ अपना साम्राज्य कैसे बचाते हैं।

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