अल्मोड़ा—- कार्मिकों,शिक्षकों की आवाज को दबाना अलोकतांत्रिक-बिट्टू कर्नाटक
अल्मोड़ा- प्रदेश में प्रदेश में महानिदेशक विद्यालय शिक्षा द्वारा शिक्षकों कार्मिक संगठनों को सोशल मीडिया एवं प्रेस में कोई बयान नहीं दिए जाने के आदेश का उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व दर्जा मंत्री बिट्टू कर्नाटक ने कड़े शब्दों में विरोध किया है।
यहां प्रेस को जारी एक बयान में पूर्व दर्जामंत्री बिट्टू कर्नाटक ने कहा कि महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा द्वारा जो शिक्षकों,कार्मिकों के संगठन सोशल मीडिया एवम प्रेस में कोई बयान जारी नहीं किए जाने के लिए पत्र जारी किया गया है वह पूर्ण तरीके से संविधानv लोकतंत्र के विरुद्ध है। इससे यह साफ लगता है कि महानिदेशक विद्यालय शिक्षा तानाशाही कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये आदेश संविधान,लोकतंत्र के विरुद्ध है इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए।
जहां शिक्षक,कर्मचारी दिन रात विभाग की सेवा में तत्पर रहते हैं वहीं उनके प्रतिनिधियों के अधिकार पर रोक लगाई जा रही है। यह तानाशाही फैसला है और लोकतंत्र की गरिमा के विरुद्ध है। भारत जैसे देशों में संगठन को इसलिए मान्यता दी जाती है कि वे शासन व सत्ता में लंबित मामलों के लिए संघर्षरत रहे और शासन से शासनादेश जारी करवायें।अब जब विभाग के अधिकारियों द्वारा ससमय प्रकरणों का निराकरण नहीं किया जा रहा है और प्रकरण लंबित रहते हैं ऐसे में संगठनों के पदाधिकारियों को भी मुश्किल होगी। पदोन्नति की ससमय व्यवस्था नहीं है। प्रधानाचार्य,प्रधानाध्यापक,प्रवक्ता के पदों पर पदोन्नति नहीं होना बहुत चिंताजनक स्थिति है।उत्तराखंड के इतिहास में जायज़ मांगों के लिए भी बयान जारी करने के फैसले पर रोक लगाना लोकतांत्रिक नहीं है इस फैसले को वापस लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सरकार का यह आदेश कर्मचारी संगठनों के अस्तित्व पर ही प्रहार है। कार्मिक संगठनों द्वारा मांगों के निस्तारण के लिए शासनादेश की मांग की जाती है और धरना प्रदर्शन आंदोलन हड़ताल आदि की जाती है।भारतीय लोकतंत्र में लोकतांत्रिक व्यवस्था का यही मूल आधार है। विभाग को अपना आदेश वापस लेना चाहिए। भारतीय संविधान का भी यह आदेश अवमानना करता है।भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है और अपने मांगों के समर्थन में बयान देना मांग पत्र प्रस्तुत करना संगठनों का अधिकार है।