हल्द्वानी विधानसभा सीट : कांग्रेस के सामने इंदिरा की विरासत बचाने की चुनौती, भाजपा में प्रत्याशी का टोटा और आप की चुप्पी
तेजपाल नेगी
हल्द्वानी। सदन में नेता प्रतिपक्ष और हल्द्वानी की विधायक डा. इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद खाली हुई उनकी सीट पर उनके उत्तराधिकारी को लेकर बहस शुरू हो गई है। आज अमूमन हरीश रावत के अंग संग रहने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने इस मामले में पहला बयान देकर इस बहस को और हवा दे दी है। हालांकि कुंजवाल का बयान सुमित हृदयेश के पक्ष में गया है। इंदिरा के उत्तराधिकारी को लेकर कुंजवाल के बयान बाद फिलहाल कहा जा सकता है कि कांग्रेस सुमित हृदयेश को इंदिरा के सिंहासन पर बैठा देखना चाहती है लेकिन इससे सत्ताधरी दल की बेचैनी बढ़ गई होगी।
दरअसल कुमाऊं ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड में भाजपा के लिए हल्द्वानी सीट एक बड़ी चुनौती रही है। भाजपा इस सीट को इंदिरा हृदयेश से छीनने में सिर्फ एक बार ही सफल हो सकी है। वह भी बंशीधर भगत के सहारे। इसके बाद और इससे पहले इंदिरा ने हल्द्वानी पर एक छत्र राज किया। यही कारण है कि हल्द्वानी में कांग्रेस और भाजपा का कोई कद्दावर नेता पैदा ही नहीं हो सका। पिछले कुछ वर्षों से इंदिरा अपने सबसे छोटे बेटे सुमित को राजनीति में प्रवेश कराने में सफल रही। उन्हें मंडी समिति का सभापति बनाया गया। जहां उन्होंने सफलता पूर्वक अपना कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद नगर निगम चुनाव में भाजपा के ड.जोगेंद्र रौतेला ने उन्हें हरा दिया था, लेकिन विधानसभा चुनाव में स्थिति नगर निगम से अलग होगी। सुमित के प्रति लोगों के मन में उनकी मां के आकस्मिक निधन से सिंपेथी की जो लहर पनपी है वह विधानसभा चुनाव के छह महीनों के अंतराल में कम तो नहीं होगी।
अब सवाल यह है कि कांग्रेस के गोविंद सिंह कुंजवाल ने सुमित के अलावा किसी दूसरे प्रत्याशीके बारे नहीं में सोचने की बात कह तो दी लेकिन क्या कांग्रेस चाहेगी कि हल्द्वानी सीट पर इंदिरा के बाद भी इंदिरा का वर्चसव यूं ही बना रहे। यहां से चुनाव लड़ने के इच्छुक कई बड़े नेता क्या अपना हल्द्वानी मोह त्याग पाएंगे। या फिी उनमें सुमित को लेकर एकता बनी रहेगी। यह आाने वाले समय में साफ हो सकेगा। वैसे एक बार सुमित ने मुझसे एक साक्षात्कार में कहा था कि वे चाहते हैं कि कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता एक मंच पर आकर यवा पीढ़ी का मार्ग दर्शन करें। उन्हें शायद तब अहसास भी नहीं था कि यह बात उन पर ही लागू होने जा रही है। देखना होगा कि सुमित के नाम पर हमेशा एक दूसरे की ओर पीठ करके बैठने वाले कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता एक साथ एक मंच पर आ पाते हैं या नहीं।
अब बात हल्द्वानी में इंदिरा का सबसे सशक्त विरोध करने वाले भाजपा नेताओं की। यदि सुमित को कांग्रेेस का टिकट मिलता है तो भाजपा की अगली रणनीति क्या होगी इस पर भी बात होनी चाहिए। भाजपा की ओर से पिछला चुनाव यहां डा. जागेंद्र सिंह रौतेला ने लड़ा था और इंदिरा ने उन्हें अंत समय में पटखनी दे दी थी। अब रौतेला नगर निगम के मेयर हैं, क्या वे अब सुमित के खिलाफ नगर निगम का मेयर पद छोड़ कर विधानसभा चुनाव में उतरने का साहस करेंगे।
इंदिरा को एक बार पछाड़ चुके वर्तमान केबिनेट मिनिस्टर बंशीधर भगत को भी सुमित के मुकाबले चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है, लेकिन भाजपा की उम्र सीमा की नीति के कारण वे इस प्रतिस्पर्धा से बाहर नजर आ रहे हैं, और वे अब तक अपने लिए काफी सुरक्षित समझी जाने वाली कालाढूंगी सीट को हल्द्वानी आने का रिस्क क्यों लेंगे। लेकिन यदि भाजपा प्रदेश महामंत्री सुरेश भट्ट को चुनाव लड़वाना चाहती है तो ऐसे में या तो भगत को घर बिठाया जाएगा या फिर उन्हें हल्द्वानी सीट से चुनाव लड़वाया जाएगा।
भाजपा से ही एक और नाम सामने आ रहा है वह है भाजपा के जिला अध्यक्ष प्रदीप बिष्ट का। हालांकि पिछले एक अरसे से प्रदीप हल्द्वानी की अपेक्षा लालकुआं विधानसभा सीट पर ज्यादा सक्रिए दिखाई पड़े हैं। उनका घर हल्द्वानी में ही है इसके बावजूद उनकी सक्रियता लालकुआं में अधिक होने के कारण राजनीतिक हल्कों में चर्चाएं हैं कि वे विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए अपनी दावेदारी करेंगे। यह अलग बात है कि लालकुआं में पहले से ही कई कद्दावर नेता हैं जो अपने अपने स्तर से टिकट के लिए प्रयासरत है। उनकी बात फिर कभी।
अब बात आम अदमी पार्टी की। आप के लिए हल्द्वानी नया प्रयोग बनने जा रही है। वह यहां से पहली बर ही चुनाव लड़ेगी। उसका प्रत्याशी कौन होगा यह अभी तय नहीं है लेकिन पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी समित टिक्कू यहां लगातार सक्रिय हैं। अब जब इंदिरा नहीं हें और बात उनके उत्तराधिकारी को चुनाव लड़ाने की होने लगी है तो समित टिक्कू की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।