विश्व ड्रग दिवस पर एम्स ऋषिकेश करेगा लोगों को नशावृत्ति के खिलाफ जागरुक

ऋषिकेश। “वर्ल्ड ड्रग डे” 26 जून 2021 को मनाया जाता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हरवर्ष की भांति इस वर्ष भी वर्ल्ड ड्रग डे के अवसर पर शनिवार को नशावृत्ति की रोकथाम के लिए जनजागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा,जिसके माध्यम से मरीजों व उनके तीमारदारों को नशावृत्ति से होने वाले शारीरिक, मानसिक व सामाजिक क्षति को लेकर जागरुक किया जाएगा। गौरतलब है कि यह दिवस पूरी दुनिया में वर्ष- 1989 से 26 जून को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। यह दिन “नशीले पदार्थों के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस” के नाम से भी जाना जाता है अथवा यह नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध नशीली दवाओं के व्यापार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र का एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। दुनियाभर में विभिन्न संगठनों द्वारा प्रत्येक वर्ष, इस वैश्विक दिवस को मनाने का उद्देश्य अवैध ड्रग्स की समस्या के बाबत आम जनमानस में जागरुकता बढ़ाना है। इस दिवस पर इस वर्ष का विषय “शेयर फैक्ट्स ऑन ड्रग्स, सेव लाइव्स” रखा गया है। एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि संस्थान में नशावृत्ति के शिकार लोगों के समुचित उपचार के लिए एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी (एटीएफ) की सुविधा शुरू की गई है।

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जिसमें मरीजों को अस्पताल में एडमिशन और OPD सेवाएं निशुल्क प्रदान की जा रही हैं। लिहाजा कोई भी नशाग्रस्त रोगी एम्स ऋषिकेश में आकर चिकित्सकीय परामर्श से निशुल्क और उच्चस्तरीय उपचार ले सकता है। निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि इस दिवस को मनाने का उद्देश्य यही है कि हम मादक द्रव्यों, पदार्थों के इस्तेमाल के बारे में और उससे होने वाली हानि का ज्ञान और तथ्य प्राप्त करके स्वयं और दूसरों के जीवन को बेहतर तरीके से बचा सकते हैं। एम्स ऋषिकेश के मनोचिकित्सक और एटीएफ (एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी) के नोडल अधिकारी डॉ. विशाल धीमान ने बताया कि वर्ष- 2020 की विश्व ड्रग रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में कैनाबिस (भांग/ चरस/ आदि) सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला पदार्थ है, हालांकि ओपिओइड (स्मैक/हेरोइन/कोडीन/आदि) सबसे हानिकारक हैं। यूनाइटेड नेशंस की इस रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में अनुमानित 19.2 करोड़ लोगों ने कैनाबिस का इस्तेमाल किया, जिससे यह विश्व स्तर पर सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला नशा बन गया।

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उन्होंने बताया कि नशीली दवाओं का उपयोग करने से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हर साल 1.18 करोड़ मौतें हो जाती हैं। धूम्रपान, शराब और नशीली दवाओं का प्रयोग शीघ्र मृत्यु के लिए एक महत्वपूर्ण कारण है और इसके परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्ष लगभग 114 लाख लोगों की समय से पहले ही मृत्यु हो जाती है। इनमें शराब या नशीली दवाओं से मरने वालों में आधे से अधिक लोग 50 साल से कम उम्र के होते हैं। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार की रिपोर्ट (2019) के अनुसार शराब भारतीयों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे आम नशा है। राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 14.6 प्रतिशत (10 से 75 वर्ष के आयु वर्ग के बीच) की जनसंख्या शराब का नशा करती है। यह संख्या लगभग 16 करोड़ व्यक्तियों की है, जो देश में शराब का सेवन करते हैं। शराब का उपयोग महिलाओं की तुलना में (1.6%) पुरुषों में (27.3%) काफी अधिक है। देश में, शराब के बाद, सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थ हैं कैनाबिस और ओपिओइडस। डॉ. विशाल धीमान ने जानकारी दी कि नशे के रोगियों को जो उपचार अत्यंत आवश्यक चाहिए तथा जो उन्हें मिल पाता है, उसमें करीब 80 से 83 प्रतिशत का एक बड़ा अंतर होता है। नशावृत्ति के इलाज के इस अंतर को कम करने की जल्द से जल्द आवश्यकता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए एम्स ऋषिकेश में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग और एन.डी.डी.टी.सी NDDTC, एम्स दिल्ली के समन्वय से एटीएफ (एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी) शुरू की गई है। मनोचिकित्सा विभागाध्यक्ष डॉ. रवि गुप्ता ने बताया कि कोविड 19 ने भी विश्व स्तर पर स्वास्थ्य प्रणाली को बेहद प्रभावित किया है और इसका दुष्प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में देखा जाने लगा है। नशा बाजारों एवं नशा करने वालों के बीच COVID-19 महामारी का प्रभाव अज्ञात है और इसके प्रभाव की भविष्यवाणी करना कठिन है।

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