कोविड पॉजिटिव हैं तो घबराएं नहीं, उपचार में प्लाज्मा थैरेपी है कारगर
यदि आप कोविड पॉजिटिव हैं तो घबराएं नहीं। इसके लक्षण पता लगने पर पहले सप्ताह के दौरान यदि प्लाज्मा थैरेपी से उपचार किया जाए तो कोविड संक्रमण में उपचार की यह तकनीक विशेष लाभकारी होती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में प्लाज्मा थैरेपी पद्धति से अब तक 146 कोविड संक्रमित मरीजों का इलाज किया जा चुका है।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कान्त ने इस बाबत बताया कि कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा एंटीबॉडी प्रदान करने का काम करता है। इसके उपयोग से संक्रमित व्यक्तियों में वायरस बेअसर हो जाता है। उन्होंने बताया कि जब कोई व्यक्ति किसी सूक्ष्म जीव से संक्रमित हो जाता है, तो उसके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसके खिलाफ लड़ने के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन करने का काम करती है। यह एंटीबॉडीज रक्त के प्लाज्मा में मौजूद होती है और बीमारी से उबरने की दिशा में अपनी संख्याओं में वृद्धि करती है। इससे वायरस जल्दी समाप्त होने लगते हैं। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया से रिकवरी तेज होने पर पेशेंट जल्दी स्वस्थ हो जाता है।
निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कान्त ने बताया कि संस्थान में प्लाज्मा थैरेपी की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। लिहाजा कोरोना से स्वस्थ हो चुके लोगों को दूसरों का जीवन बचाने के लिए प्लाज्मा अवश्य डोनेट करना चाहिए।
ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक (एम्स) की विभागाध्यक्ष डा. गीता नेगी जी ने बताया कि एम्स में अब तक 146 कोविड मरीजों को प्लाज्मा थैरेपी दी जा चुकी है। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति पूरी तरह ठीक होने के बाद प्लाज्मा दान कर सकता है। डोनर के शरीर से एफेरेसिस तकनीक से ब्लड निकालने के बाद प्लाज्मा एकत्रित किया जाता है। ऐफेरेसिस की सुविधा नहीं होने पर सामान्य रक्तदान से भी प्लाज्मा लिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि प्लाज्मा थैरेपी एक ऑफ लेवल थैरेपी है। यदि कोरोना के लक्षण आने के 7 दिनों के दौरान ही इस थैरेपी का उपयोग किया जाए, तो इलाज उपयोगी होता है। उन्होंने बताया कि स्वस्थ्य व्यक्ति के रक्त में 55 प्रतिशत प्लाज्मा मौजूद रहता है। एम्स ऋषिकेश में प्लाज्मा थैरेपी के लिए सभी संसाधन, उपकरण और प्रशिक्षित स्टाफ उपलब्ध है।
कौन कर सकता है प्लाज्मा दान
कोई भी 18 से 65 आयु वर्ग का कोरोना संक्रमित व्यक्ति संक्रमण के 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। इस प्रक्रिया में एंटीबॉडी टेस्ट कर एंटीबॉडी का लेवल देखा जाता है। ’एबी’ ब्ल्ड ग्रुप वाला डोनर किसी को भी प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। जबकि ’ओ’ ग्रुप वाला रोगी अन्य किसी भी ग्रुप वाले डोनर का प्लाज्मा ले सकता है। इस थैरेपी को इस्तेमाल करने से पहले डोनर का एंटीबॉडी टेस्ट किया जाता है। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक विभाग एम्स के डॉ. आशीष जैन और डॉ. दलजीत कौर ने बताया कि डोनर के रक्त में एंटीबॉडी का पर्याप्त मात्रा में होना जरूरी है। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में लगभग 2 घंटे लगते हैं और यह तकनीक पूरी तरह से सुरक्षित है। इससे प्लाज्मा डोनेट करने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है।