जरा सोचिए : चुनावी बांड नाटक का पटाक्षेप और गोदी मीडिया में क्यों पसरा है सन्नाटा
तनवीर जाफ़री
लोकसभा चुनावों से ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर आख़िरकार भारतीय स्टेट बैंक ने चुनावी बॉन्ड ख़रीद का विस्तृत डेटा अदालत को पेश कर ही दिया। साथ ही यह भी सार्वजनिक कर दिया कि इन इलेक्टोरल बांड के माध्यम से किस राजनैतिक दल को कितने पैसे प्राप्त हुये। जैसा कि पहले भी होता आया है कि सत्तारूढ़ दल को ही प्रायः सर्वाधिक चंदा मिला करता है । इस बार भी सत्तारूढ़ दल यानी भारतीय जनता पार्टी को ही सबसे अधिक चुनावी चंदा हासिल हुआ।
परन्तु बात केवल सर्वाधिक चंदा प्राप्त करने तक ही सीमित नहीं है। बल्कि इस लेनदेन के और भी कई ऐसे संदिग्ध पहलू हैं जिनके आधार पर विपक्ष भारतीय जनता पार्टी पर यह कहकर हमलावर है कि भाजपा द्वारा चुनावी बॉन्ड ख़रीद के नाम पर न केवल ‘चंदे का धंधा ‘ यानी चंदा देदो -धंधा ले लो का अनैतिक खेल खेला गया है बल्कि कई ऐसी कंपनियों से भी चंदे ऐंठे गए हैं जिनपर पहले तो ई डी,आई टी या सी बी आई द्वारा छापेमारी की गयी उसके फ़ौरन बाद ही इन्हीं कंपनियों ने इलेक्टोरल बांड ख़रीद लिये।
और इलेक्टोरल बांड की ख़रीद होते ही इन पर की गयी ई डी,आई टी या सी बी आई की कार्रवाही ठन्डे बास्ते में चली गयी। विपक्ष का यह भी आरोप है कि इलेक्टोरल बांड ख़रीदने वाली कई कम्पनियाँ भी फ़र्ज़ी हैं। जबकि कई ऐसी कंपनियों ने भी चुनावी बॉन्ड ख़रीदे हैं जिनकी कमाई तो बहुत ही कम है परन्तु उन्होंने अपनी कमाई से कई गुना अधिक के बांड ख़रीदे। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा चंदा दो, धंधा लो, हफ़्ता वसूली,ठेका लो, रिश्वत दो, मनी लॉन्ड्रिंग के लिए फर्ज़ी कंपनियां जैसी भ्रष्ट नीतियां अपना रही है।
भारतीय स्टेट बैंक द्वारा उपलब्ध कराये गये डेटा के अनुसार जिन कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे हैं उनमें फ़्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज़ ,मेघा इंजीनियरिंग इंफ़्रा स्ट्रक्चर लिमिटेड,वेदांता लिमिटेड,लक्ष्मी मित्तल, भारती एयरटेल, डीएलएफ़ कामर्शियल डेवलपर्स,ग्रासिम इंडस्ट्रीज़, पीरामल एंटरप्राइज़ेज़ , टोरेंट पावर, अपोलो टायर्स, एडलवाइस, पीवीआर, केवेंटर, सुला वाइन, वेलस्पन, और सन फ़ार्मा जैसी अनेक कंपनियां शामिल हैं।
सबसे ज़्यादा क़ीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड फ़्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज़ और मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ़्रास्ट्रक्चर लिमिटेड द्वारा ख़रीदे गये हैं। फ़्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज़ ने 1,368 करोड़ रुपये के बांड ख़रीदे हैं जबकि मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड द्वारा 966 करोड़ रुपये के चुनावी बांड ख़रीदे गये।
न खाऊंगा न खाने दूंगा का दंभ भरने वाली वर्तमान भाजपा सरकार 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से इस चुनावी बांड योजना को लाई थी जिसे 2018 में लागू कर दिया गया था। हालांकि बीजेपी सहित कांग्रेस, एआईएडीएमके, बीआरएस, शिवसेना, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके, जेडीएस, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी, आप और समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राशि प्राप्त की है। परन्तु अप्रैल 2019 और जनवरी 2024 के बीच चुनावी बॉन्ड के माध्यम से भाजपा को 6,060.51 करोड़ रुपये का सबसे अधिक चंदा हासिल हुआ है।
सबसे अधिक धनराशि का बांड ख़रीदने वाली तमिलनाडु की कंपनी फ़्यूचर गेमिंग को 2019 में जितना लाभ हुआ था,इस कंपनी ने उसका छह गुना अधिक इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा दिया। एक रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 में इस कंपनी को टैक्स देने के पहले 82 करोड़ का मुनाफ़ा हुआ था और इसने 328 करोड़ का चंदा दिया था। इसी कंपनी ने चार साल में 1368 करोड़ के बॉन्ड ख़रीदे हैं।
इसी तरह मेघा इंजीनियरिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर लिमिटेड एमईसीएल ने भी 966 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे हैं। विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि ‘मेघा इंजीनियरिंग ने कलेश्वर लिफ़्ट इरिगेशन योजना के अंतर्गत मेड गुडा बराज का निर्माण किया जिसके कई खंभों में दरारें पड़ गई हैं क्योंकि इसमें घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया है।
और इस कम्पनी ने तेलंगाना की जनता का 1,00,000 करोड़ रुपया चोरी किया गया है’। इलेक्टोरल बांड ख़रीद के माध्यम से हुये भ्रष्टाचार के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्टेट बैंक के प्रति बरती गयी सख़्ती का नतीजा यह हुआ था कि 11 मार्च को ही स्टेट बैंक से निवेशकों का भरोसा टूटने लगा था तभी स्टेट बैंक के शेयर्स में दो प्रतिशत की गिरावट भी दर्ज की गयी थी।
सवाल यह है कि चुनावी चंदे के धंधे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद स्टेट बैंक इंडिया के घुटनों पर आने,विपक्ष द्वारा इस विषय पर हमलावर होने और पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी से कराने और इसे दुनिया का सबसे बड़ा चुनावी चंदा घोटाला बताने के बावजूद इसी मुद्दे पर आख़िर भारतीय मीडिया को क्यों सांप सूंघ गया है ?
देश का सबसे बड़ा घोटाला और उसपर मीडिया की ख़ामोशी, क्या इस बात का संकेत नहीं कि जो भारतीय मीडिया जहाँ सत्ता का गुणगान करने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ता वही उसकी कमियों,अनियमितताओं,अनैतिक आचरण तथा आर्थिक घोटाले पर भी पर्दा डालने में खुलकर सत्ता का साथ दे रहा है ? कहना ग़लत नहीं होगा कि भारतीय मीडिया इस समय ह्रास,पतन और बेशर्मी के उत्कर्ष के दौर से गुज़र रहा है।
क्या लोकतंत्र का स्वयंभू चौथा स्तंभ धराशायी हो चुका है ? सत्ता के लिए दर्पण रुपी भूमिका अदा करने वाली पत्रकारिता आज ‘सत्ता के ग़ुलाम’ की भूमिका निभा रही है। यही वजह है कि सत्ता को आइना दिखने वाले अनेक कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार अपनी नौकरी गंवा चुके हैं और अपने विभिन्न निजी सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर अपना कर्तव्य पूरी ज़िम्मेदारी से निभा रहे हैं। इलेक्टोरल बांड सम्बन्धी विस्तृत जानकारियां भी देश को मुख्य धारा के मीडिया से नहीं बल्कि सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर सक्रिय अनेक कर्तव्यनिष्ठ पत्रकारों की ही देन है।
यह पत्रकारिता के इसी ‘अंधकार मय युग ‘ की ही देन है कि अनेक टी वी एंकर पार्टी प्रवक्ता की भूमिका अदा करते नज़र आ रहे हैं। आउट डोर रिपोर्टिंग में ‘पत्थरकारों ‘ द्वारा नागिन डांस किया जा रहा है। विपक्ष की ख़बरों को न केवल ब्लैक आउट कर दिया गया है बल्कि सवाल भी विपक्ष से ही पूछे जा रहे हैं। एक पत्रकार की आवाज़ को दबाने के लिये पूरा का पूरा मीडिया हाउस ख़रीदा जा रहा है। न जाने कितने बाज़मीर पत्रकारों ने ग़ुलाम मीडिया हॉउस के साथ काम कर अपना ज़मीर बेचने से इंकार कर दिया है।
पार्टी विशेष के कई लोग व उनके शुभचिंतक उद्योगपति अपने अपने मीडिया हॉउस चलाकर सत्ता का गुणगान कर रहे हैं। करण थापर और विजय त्रिवेदी जैसे पत्रकारों ने एक दशक पूर्व ‘साहब ‘ को ऐसा दर्पण दिखाया कि साहब ने दर्पण देखना ही बंद कर दिया है ।
गोया सत्ता केवल अपने ‘मन की बात’ कर इकतरफ़ा संवाद पर भरोसा कर रही है। और मुख्य धारा का मीडिया सत्ता के कवच की भूमिका निभा रहा है। यही वजह है कि मणिपुर की घटना की ही तरह चुनावी बांड घोटाले पर भी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद हुये पटाक्षेप पर ‘ग़ुलाम मीडिया’ में पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है।