अलविदा राजा साहब : उनका बात- बात पर हाथ थामना और मकड़झंडू शब्द का इस्तेमाल करना उन्हें अपना सा बनाता था, देखिए उनकी अनदेखी 25 तस्वीरें
तेजपाल नेगी
शिमला। छह बार मुख्यमंत्री रहे हिमाचल के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह आज अंतिम यात्रा पर निकल पड़े हैं। उनकी जिंदगी की शुरूआत जिस तरह से शाही अंदाज में हुई। रामपुर बुशहर रियासत के राजा पदम सिंह के घर जन्म लेने के बाद जब वे सार्वजनिक जीवन में उतरे तो एक आम आदमी की तरह। राजनीति में उनकी यही खासियत अच्छे अच्छों को जमीन पर ला देती थी।
मेरा उनसे परिचय उस वक्त हुआ जब मैं अमर उजाला के शुरूआती दिनों में रोहड़ू में तैनात किया गया। वे उन दिनों मुख्यमंत्री थे और रोहड़ू से ही विधायक चुनकर गए थे। चिड़गांव में प्राकृतिक आपदा के बाद उनका पीड़ितों से मिलने का कार्यक्रम बना। हम भी एक कांग्रेसी नेता के साथ उनके काफिले के पीछे हो लिए। पूरा दिन आपदा प्रभावित इलाकों में घूमने के बाद उनका रात्रि कार्यक्रम लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह में रूकने का बना। हम भी वहीं थे। बस राजा साहब भोजन कर लें तो जिनके साथ गए थे वे भी वापस रोहड़ू लौट चले। मेरे साथ देहरादून के अरविंद भी थे।
इस बीच एक कार्यकर्ता ने बताया कि राजा साहब भोजन के बाद आप दोनों से मिलना चाहते हैं। यह सुनकर सच मानिए मेरी सिट्टी पिट्टी गुम थी। हिम्मत करके पूछा क्या कारण है। कार्यकर्ता ने बताया कुछ नहीं थोड़ी जान पहचान की बाते ही करेंगे।
रात लगभग नौ बजे राजा साहब ने कार्यकर्ताओं के साथ डाइनिंग टेबल पर खाना खाया। हम भी साथ ही थे। इसके बाद जब वे सोने के लिए अपने कमरे में गए तो कुछ देर बाद हमें बुलावा आ गया। हम दोनों डरे—डरे से अंदर जाकर बैठ गए। राजा साहब ने कुछ ही देर में ऐसी बातें शुरू कीं कि हमारी हिचक मिनटों में काफूर हो गई। वे उत्तराखंड की राजनीति से लेकर हिमाचल तक की राजनीति पर बातें करते रहे। उत्तराखंड के तमाम नेताओं के बारे में उन्होंने अपने ख्याल व्यक्त किए। बातें करते करते कब रात के दो बज गए हमें पता ही नहीं चला।
उधर बाहर हमें वापस लेकर जानो के लिए बैठे कार्यकर्ता परेशान। खैर उनके साथ बिताए वे छह सात घंटों के बीच जितना उन्हें समझ सका वे जमीन से जुड़े नेता थे, राजाओं वाली या वरिष्ठ नेताओं वाली ठसक मुझे तो नहीं दिखाई पड़ी। उस दिन उन्होंंने बताया था कि गढ़वाल की कौन कौन सी परंपराएं हिमाचल से मिलती हैं और क्यों, गढ़वाल के नेगी और हिमाचल के किन्नौर और लाहुल स्पीति के नेगियों में क्या जैविक संबंध हैं।
इसके बाद रामपुर में तैनाती के दौरान उनसे मुलाकात हुई। उन्होंने अपने चिर परिचत अंदाज में मेरा हाथ पकड़ लिया। पत्रकार वार्ता के बाद भी उन्होंने हाथ नहीं छोड़ा तो साथी पत्रकारों को कुछ अजीब सा लगा।
राजा सहब उनके मन की बात ताड़ गए और बोले— इनसे रोहड़ू के बारे में कुछ बात करनी है… पत्रकारों ने इसके बाद हमें छोड़ दिया। वे घर परिवार की बातें करने के बाद इधर उधर की बातें करते रहे बस। हां उनसे बातचीत के बाद एक खबर भी मैंने लिखी थी जिसने खूब चर्चा बटोरी। वे बात बात में किसी को भी मकड़झंडू कह देते और लेाग हंसने लगते। वे किसी भी जन सभा में मुझे देखते तो लोगों को माइक से बताना न भूलते कि ये पत्रकार हैं, उत्तराखंड से हैं यह भी हमारी सरकार के काम काज को देख रहे हैं।
आज राजा साहब नहीं है लेकिन उनकी स्टाइल हमेशा हमेशा मेरे दिलो दिमाग में बनी रहेगी। अलविदा राजा साहब…