जय हिंद @ हल्द्वानी : 1971 युद्ध के हीरो कर्नल चौहान ने अपने कोर्स की स्वर्णिम जयंती मनाते हुए रोपे अमलताश के 50 पौधे, बोले- हमने धूप झेली ताकि तुम्हें छाया मिले
हल्द्वानी। इन दिनों संपूर्ण भारत दिसंबर 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर विजय की स्वर्णिम
जयंती मना रहा है। ऐसे में अपने वीर साथियों को स्मरण करते हुए इस युद्ध में भाग लेने वाले और उसके बाद सेना में रहकर देश के र्अन्य हिस्सों में भी अपनी बहादुरी का झंडा गाढ़ने वाले हल्द्वानी निवासी कर्नल (रि.)मनोहर सिंह चौहान ने अपने बहादुर साथियों के सम्मान में ईसीएचएस पॉलीक्लिनिक, हल्द्वानी में अमलताश के 50 पौधे रोपे हैं। उनका कहना है कि यह पौधे आने वाली पीढ़ी को देश की रक्षा करने वाले सेना के जवानों का तो स्मरण कराएंगे ही हमारे नागरिकों व मरीजों को जिंदगी की धूप में छाया भी प्रदान करेंगे।
कर्नल चौहान स्मरण करते हुए बताते हैं कि 1971 के युद्ध से केवल 4 महीने पहले ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल, मद्रास (जिसको अभी ऑफीसर्स ट्रेंनिंग अकेडमी ,चेन्नई ) के नाम से जाना जाता है, को 21/ 22 अगस्त की रात को 148 जैंटलमैन कैडेट को सफल प्रशिक्षण के पश्चात सेकंड लेफ्टिनेंट और लेफ्टिनेंट के पद पर कमीशन प्राप्त किया। वे इसी ग्रुप का हिस्सा थे। वे कहते हैं हर सिपाही का एक सपना होता है कि उसे युद्ध में लड़ने का अवसर मिले । सौभाग्य से इन 148 ऑफिसर्स को वॉर जोन में ही अपनी यूनिट में रिपोर्ट करते समय “लाइव बैटल इनॉक्यूलेशन” करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
तब उनकी उम्र यही कोई 22 —23 साल रही होगी। सभी साथियों की उम्र 21 से 23 के बीच ही थी। दिसंबर 1971 की हाड कपाने वाली सर्दी में इन रणबाकुरों का उच्च हिमालयी क्षेत्रों, दुर्गम पहाड़ियों, बीहड रेगिस्तान और पंजाब की नदियों के किनारे स्थित इनकी यूनिट में स्वागत हुआ।
उन्होंने तब प्रशिक्षण के दौरान सीखे हुए सिद्धांत ,”आपके अपने देश की सुरक्षा, सम्मान और कल्याण हमेशा और हर बार प्रथम है। फिर आपके सैनिकों का सम्मान ,कल्याण और सुविधा। आपकी अपनी सुविधा, आराम और सुरक्षा हमेशा और हर बार आखिर में आते हैं ” का अपनी आखिरी खून की बूंद तक बनाए रखा ।
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कर्नल चौहान बताते हैं कि 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। इन 148 रणबांकुरों को इस युद्ध में सम्मिलित हो अपना कौशल दिखाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस समय इन सब में इतना हौसला और उत्साह था कि यह वीर योद्धा कुछ भी कर सकने व मर मिटने को तैयार थे । अपने कमांडिंग ऑफिसर्स और सीनियर्स की देखरेख में उन्होंने 3 दिसंबर से 16 दिसंबर 1971 तक चले भारत- पाकिस्तान युद्ध में अपनी-अपनी प्लाटून व टुकड़ियों का सफल व कुशल नेतृत्व किया।
वे स्मरण करते हुए बताते हैं कि इस युद्ध में कुछ ने तो अपने प्राण गवाएं, कुछ के अंग भंग हुए और कुछ बुरी तरह से घायल हो गए। दो ऑफिसर्स को प्रिजनर ऑफ वार बनना पड़ा । डबल फस्ट के नाम से पहचाने जाने वाले इस कोर्स के रणबांकुरो को दो वीर चक्र,1 शौर्य चक्र और 8 सेना मेडल और मेनशन इन डिस्पैचजज से अलंकृत किया गया। इस कोर्स ने देश को दो लेफ्टिनेंट जनरल, दो मेजर जनरल, 8 ब्रिगेडियर और अधिकतर कर्नल और मेजर दिए ।
वे बताते हैं कि 1971 की लड़ाई के बाद इन शूरवीरों को श्रीलंका ,नागालैंड और कारगिल में भी अपना युद्ध कौशल दिखाने का गौरव प्राप्त हुआ। इस दौरान इनके आफिसर दो परम विशिष्ट सेवा मेडल, दो अति विशिष्ट सेवा मेडल और एक विशिष्ट सेवा मेडल से अलंकृत किया गया। जिन को परमानेंट कमिशन नहीं मिल पाया उन्होंने बाहर आकर आईजी,डीआईजी, यूनिवर्सिटी के डीन, कॉर्पोरेट सेक्टर के सीईओ और बैंक के एजीएम पद में रहकर देश की सेवा की।
रि. कर्नल मनोहर सिंह चौहान,वीर चक्र ,सेना मेडल भी हैं। जिला पिथौरागढ़ के ग्राम दंतोली के इस वीर सेनानी को 1971 के युद्ध में पुंछ क्षेत्र में अलग-थलग पड़ी हुई अपनी प्लाटून का नेतृत्व करने का गौरव प्राप्त हुआ। दुश्मन के लगातार हमले में यह बुरी तरह घायल हो गए फिर भी इनके कुशल नेतृत्व से इनकी प्लाटून ने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए और उसके सभी हमले विफल कर दिए। भारी मात्रा में मारे जाने और घायल हो जाने के कारण दुश्मन का हौसला टूट गया और उसे बौखला कर पीछे भागना पड़ा। चौहान के कुशल नेतृत्व, पराक्रम और कर्तव्य परायणता के लिए इनको “वीर चक्र” से अलंकृत किया गया। आगे की सर्विस में नागालैंड में कमांड करते हुए इन्हें सेना मेडल (बहादुरी) से अलंकृत किया गया ।
अपने वीर साथियों की स्मृति में 22 अगस्त 2021 को कर्नल चौहान ने पहले स्मृति स्थल पर रीथ ( श्रद्धा सुमन) चढ़ाये और उसके बाद ईसीएचएस पॉलीक्लिनिक, हल्द्वानी में छायादार अमलतास के 50 पौधे लगाए ताकि भविष्य में यह वृक्ष मरीजों को छाया दे सके।