काम की बात…परीक्षा पे चर्चा…इन बातों का रखें ध्यान, मिलेगी सफलता

कक्षा दस व बारह की बोर्ड परीक्षा निकट आते ही छात्रों के व्यवहार में अनेक प्रकार के परिवर्तन दिखने लगते हैं। कुछ बच्चों को लगता है कि उनको विषय अच्छी तरह याद है, परीक्षाएं ठीक से निपट जाएंगी लेकिन ऐसा सबके साथ नहीं होता।

कुछ बच्चे तनावग्रस्त होने लगते हैं। रातभर पढ़ने के बावजूद उन्हें लगता है कि वे पेपर में क्या लिखेंगे? दूसरी तरफ परीक्षाओं में अधिक अंक लाने के दबाव के चलते बच्चे ठीक से परीक्षा नही दे पाते हैं। खाने-पीने पर कम ध्यान देते हैं। लगातार पढ़ाई में जुटे रहने से सिर दर्द, थकान होना लाजमी है।

मेरा बच्चों को सुझाव है कि उन्हें पढ़ाई के दौरान कुछ-कुछ अन्तराल पर आराम भी करना चाहिये व संगीत सुनने का वक्त भी निकालना चाहिये तथा टहलने के लिये घर से बाहर भी जाना चाहिये ताकि मन पुनः ताजा हो सके। ऐसा करने से पढ़ी गयी विषयवस्तु याद भी रहती है।

परीक्षा के दौरान स्वास्थ्य पर विषेष ध्यान देना चाहिये। बोर्ड परीक्षा के दौरान खान-पान पर भी विषेष ध्यान देना आवश्यक है। अक्सर होली के त्योहार के दौरान परीक्षाऐं रहती है। बच्चों से मेरा कहना है कि मौजमस्ती खूब करो लेकिन भीगने-भिगाने से बचना चाहिये। माता-पिता को चाहिये कि वे परीक्षाओं के दौरान घर में शांतिपूर्ण माहौल बनाये रखने का प्रयास करें।

इस दौरान यदि बिजली नहीं रहती है तो छात्रों को बड़ी परेशानी होती है। पास-पड़ोस में होने वाले विवाह समारोहों में जोर-जोर से बज रहे लाउडस्पीकर की वजह से भी परीक्षाओं में खलल पड़ता है। अतः समाज के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वे बोर्ड परीक्षा दे रहे छात्रों की सुविधा का ध्यान रखें।
पहली बार बोर्ड परीक्षा दे रहे छात्र उत्साह से लबरेज रहते हैं।

मेरा सुझाव है कि छात्रों को प्रश्नपत्र अच्छी तरह पढ़ने के बाद ही उत्तर लिखना चाहिये। यदि कोई प्रश्न गलत भी कर दिया तो भी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। उसे एक तिरछी लकीर देकर काट दें व आगे बढ़ें। जो प्रश्न अच्छी तरह आते हैं, उन्हें ही पहले हल करना चाहिये और कठिन को बाद में। यदि कोई प्रश्न पत्र खराब भी चला गया तो भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिये। उम्मीद करनी चाहिये कि अगला प्रश्नपत्र अच्छा जायेगा।

परीक्षा के दौरान कक्ष निरीक्षक या उड़नदस्ते द्वारा तलाशी लेना आम बात है। इससे घबराना नहीं चाहिये। अपनी बारी आने पर शालीनता से तलाशी लेने देना चाहिये। अनुचित सामग्री का सहारा लेने की कदापि न सोचें।

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परीक्षाएं ठीक-ठाक निपट जाने पर छात्रों के साथ-साथ माता-पिता व अध्यापक भी राहत महसूस करते हैं। माता-पिता को चाहिये कि वे परीक्षा हो जाने के बाद वे बच्चों को कहीं घुमाने ले जाएं ताकि वे परीक्षाओं की थकान से उबर सकें। बार-बार बच्चों को ये अहसास नहीं कराना चाहिये कि वे जिन्दगी में कुछ खास नहीं कर सकेंगे। अपने को साबित करने के लिये बच्चों के पास आगे लम्बी जिंदगी पड़ी है। भविष्य में अनेक अवसर आएंगे।


और फिर बेसब्री से सबको उस दिन का इन्तजार रहता है जब परीक्षाफल घोषित होना होता है। कुछ को मेरिट में स्थान पाने की उम्मीद होती है तो कुछ को अच्छे परीक्षाफल की। लेकिन मेरा मानना है। अंक कम या अधिक जितने भी आएं, माता-पिता व बच्चों ने तनाव नहीं पालना चाहिये। कम अंक लाने वाले छात्र भी भविष्य में सफलता की बुलंदियों को छूते देखे गये हैं। यदि दसवीं में अपेक्षित परीक्षाफल नहीं आता है तो छात्रों ने और अधिक परिश्रम कर बारहवी में अच्छा परीक्षाफल हासिल करने की ठाननी चाहिये।

दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिये कि वह एक दिन उन सबका मुँह बंद करा देंगें, जो उसे कमजोर छात्र समझते हैं। इसी तरह, यदि बारहवीं में अपेक्षित परीक्षा परिणाम नहीं आता है तो छात्रों ने स्नातक स्तर पर अच्छा परीक्षाफल हासिल करने की ठाननी चाहिये न कि हार मान लेनी चाहिये। जो छात्र एक बार यह ठान लेता कि उसे अगली बार अच्छा करना है। विश्वास करो,एक न एक दिन वह कामयाब इंसान बन जाएगा।


यदि बच्चा गुमसुम रहता है, कम बोलता है, दोस्तों के साथ नहीं जाता है, खाने में दिलचस्पी नहीं लेता है तो सम्भव है। वह परीक्षा परिणाम के बारे में चिंतित हो। ऐसे में परिजनों ने उससे बात करनी चाहिये। उसे हिम्मत दिलानी चाहिये। बच्चों की परेशानी को कमतर नहीं आंकना चाहिये। कम अंक पाने अथवा फेल होने पर बच्चों को प्रताड़ित नहीं करना चाहिये और न ही खराब परीक्षाफल को परिचितों में चर्चा का विषय बनाना चाहिये। ऐसा करने से बच्चे कुंठा का शिकार हो सकते हैं।


बोर्ड परीक्षाओं के ही दौरान बच्चे इंजीनियरिंग, मेडिकल साइंस व दूसरी प्रवेश परीक्षाओं के परिणामों के बारे में भी चिंतित रहते हैं। परीक्षाओं से पूर्व व पश्चात उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिये ताकि वे परीक्षाओं के भय से मुक्त हो सकें। अनुत्तीर्ण होने पर जो छात्र पुनः स्कूल जाते हैं वे साहसी होते हैं। उनके साथ सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिये। कोई मनुष्य कभी भी खुद के लिये ’फेल’शब्द का प्रयोग किया जाना पसंद नहीं करेगा। इसलिये अनुत्तीर्ण छात्रों को ’फेलियर बच्चे’ कहकर उनकी हिम्मत नहीं तोड़नी चाहिये।

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दसवीं में उत्तीर्ण छात्रों को इण्टरमीडिएट स्तर पर वाणिज्य, विज्ञान या कला में से कोई एक शाखा चुनने में दुविधा हो सकती है। बच्चों की क्षमता व रूचि का आंकलन किये बगैर माता-पिता ने उन्हें कोई भी विषय वर्ग चुनने का का दबाव नहीं डालना चाहिये अन्यथा वह उसे बोझ समझने लगेगा। मेरिट के कारण यदि स्नातक स्तर पर मन माफिक कालेज व विषय वर्ग नहीं मिल पाते हैं, तो भी निराश नहीं होना चाहिये क्योंकि प्रत्येक विषय वर्ग में भविष्य निर्माण की समान संभावना होती है। बस यह बच्चों के अपने परिश्रम के स्तर पर निर्भर होता है।


हाईस्कूल व इण्टर का बोर्ड परीक्षाफल क्या किसी की जान भी ले सकते हैं? नहीं, बिल्कुल नहीं। जान का खतरा तो हिंसक जानवरों, डाकुओं, लुटेरों से होता है। फिर उन मासूम बच्चों को किस बात का खतरा जो अभी तक इस दुनिया को ठीक से समझ भी नहीं सके हैं। बामुश्किल पन्द्रह-सोलह साल के हुए हैं। अगर परीक्षाफल किसी की मौत का कारण बनता हैं तो यह भयावह है।

इसे रोका जाना चाहिये। परीक्षा परीणाम आने के बाद सभी समाचार पत्र, टीवी व सोशल मीडिया पेज टॉपर बच्चों की कवरेज से पट जाते हैं। हर तरफ खुशियां मनाते हुए बच्चे व उनके माता-पिता देखे जा सकते हैं। लेकिन इन सबसे दूर जो बच्चे अनुत्तीर्ण होे जाते हैं, उनके लिये बोर्ड परीक्षाफल भयंकर सुनामी जैसा व समाचार पत्र किसी डरावने कार्टून जैसे होते हैं। असफल होने पर उन्हें लगता है कि जैसे उन्होंने कोई भयंकर अपराध कर लिया है। वे खुद को शर्मसार महसूस करते हैं और उससे बचने का एकमात्र तरीका, जो उन्हें सूझता है, वो आत्मघाती कदम होता है। लेकिन ऐसा आत्मघाती कदम तो वो अपराधी भी नहीं उठाते हैं जिनके पीछे पुलिस पड़ी रहती है।

वह भी जान बचाने के लिये भागे-भागे फिरते हैं और फिर अदालत में समर्पण कर देते हैं तथा उम्मीद लगाये रहते हैं कि वो किसी तरह कानून के दंड से बच जायें। मेरा मानना है, बच्चों के सम्मुख आगे लम्बी जिंदगी पड़ी है। बड़ों ने उन्हें समझाना होगा कि कई ऐसे लोगों को सफलता की बुलंदियों को छूते देखा गया है जो कभी स्कूल गये ही नहीं! गये भी तो बार-बार अनुत्तीर्ण होने के बाद बामुश्किल तृतीय श्रेणी में पास हुए।

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एक शिक्षक के रूप में मेरा मानना है कि परीक्षाफल घोषित करने से पहले शिक्षा विभाग समाचार पत्रों व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से बच्चों व उनके माता-पिता को जागरूक करें ताकि कोई अप्रिय घटना सुनने को न मिले। बच्चा ही नहीं रहेगा तो कौन पास होगा-कौन फेल होगा? अतः बच्चों को परीक्षा के तनाव से समय रहते बाहर निकाला जाना चाहिये। कहा भी गया है ’वीर भोग्या बसुन्धरा’। जीवन में बोर्ड परीक्षा से भी बढ़कर ऐडवेंचर होते हैं। जीवन बहुत मजेदार होता है।


कुछ वर्ष पहले राजमिस्त्रिी का काम करने वाले चौखुटिया, अल्मोड़ा निवासी जीवन राम ने अपने पुत्र के लगातार तीसरी बार बारहवी कक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर जहर गटक दिया था व कुछ अन्य छात्रों के नादानी भरे कदमों के कारण उनकी स्थिति नाजुक हो पड़ी। मूल्यांकनकर्ता शिक्षक को यह पता नहीं रहता है कि जिस छात्र की उत्तरपुस्तिका वह जांच रहा है, वह कितनी दफा बोर्ड परीक्षा में फेल हो चुका है, वह कितनी विकट परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए वह बार-बार परीक्षा देने का साहस जुटा रहा होता है, उनके माता-पिता किस तरह अपने बच्चे की पढ़ाई का खर्च उठा रहे होते हैं।

मूल्यांकनकर्ता यह मान लेते हैं कि जो छात्र अनुत्तीर्ण हो रहा है वह मेहनती नहीं रहा होगा अन्यथा साल दर साल एक-दो अंकों से अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों की उत्तरपुस्तिकाओं का उदारतापूर्वक मूल्यांकन किया जा सकता था।अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों को दूसरे स्कूलों में भी आसानी से प्रवेश नहीं मिलता है। उत्तर प्रदेश परीक्षा बोर्ड में पूर्व मेें कला वर्ग के छात्रों के लिये विज्ञान एक व गणित एक तथा विज्ञान वर्ग के छात्रों के लिये विज्ञान दो व गणित दो होता था।

मेरी राय में पढ़ाई में कमजोर छात्रों के लिये कोर्स सरल होना चाहिये, ऐसा करने से अधिकांश छात्र पास हो सकते हैं तथा छात्रों द्वारा आत्मघाती कदम उठाये जाने सम्बन्धी घटनाएं घटित नही हो पाएंगी। इसके अलावा छात्रों को अनुत्तीर्ण घोषित करने के बजाय कुछ समय बाद उन्हें पुनः परीक्षा में बैठाकर परीक्षा उत्तीर्ण करने का मौका दिया जाना बेहतर होगा।

लाल सिंह वाणी
अध्यापक
राजकीय इंटर कॉलेज राजपुरा, हल्द्वानी

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