सितारगंज… #राजस्व को चूना : कैलाश नदी का सीना छलनी कर रहे खनन माफिया
नारायण सिंह रावत
सितारगंज। खनन माफियाओं ने कैलाश नदी के सीने को छलनी कर कर दिया है। लेकिन, पुलिस और स्थानीय प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। यहां माफिया राज कायम है। लाखों के राजस्व को चूना लगाते हुए खनन माफिया काले धंधे को अंजाम दे रहे हैं। नदी का सीना छलनी कर प्रतिदिन बड़े पैमाने पर अवैध मिट्टी खनन का गोरखधंधा चल रहा है।
हैरत की बात यह है कि सुबह 10 से 5 शाम बजे तक जिम्मेदारी अधिकारियों के नाक के नीचे खनन हो रहा है। लेकिन अधिकारी कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठा रहे हैं। पुलिस की बात की जाए तो उसका गैर जिम्मेदाराना रवैया भी किसी को भी गहरी सोच में डाल सकता है। दरअसल, कैलाश नदी सितारगंज विधानसभा क्षेत्र के बड़े हिस्से में कृषि संबंधी जरूरतों को पूरा करती है। इस नदी के किनारे चीकाघाट व तुर्कतिसौर जैसे कई गांव हैं, जो सीधे तौर पर इससे जुड़े हुए हैं।
इस नदी के वजूद के साथ ही उनका भी अस्तित्व जुड़ा हुआ है। पिछले करीब दो दशक से सितारगंज विधानसभा क्षेत्र लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। यहां पर सिडकुल के रूप में लघु, मझौले एवं बड़े उद्योग समूहों ने सिडकुल में अपने उद्योग स्थापित किए हैं। साथ ही शहरीकरण की प्रक्रिया बढ़ने के बाद यहां पर आबादी का ग्राफ भी लगातार बढ़ रहा है।
इसका फायदा उठाकर प्रॉपर्टी डीलर्स वाह कॉलोनाइजर नई नई आवासीय कालोनियों का निर्माण कर रहे हैं। नतीजतन बड़े पैमाने पर नए आवासीय भवनों का निर्माण भी हो रहा है। आबादी के बढ़ने का यह सिलसिला लगातार जारी है। नए बन रहे छोटे एवं बड़े भवनों के निर्माण के लिए पहली आवश्यकता उस भूमि पर मिट्टी भरान की होती है।
जाहिर तौर पर निचले स्थानों पर मिट्टी भराई के लिए मिट्टी की उपयोगिता एवं मांग बढ़ना भी स्वाभाविक है। ऐसे में मिट्टी से जुड़े कारोबार का बढ़ना भी लाजमी है। नियमानुसार यह सब कानून के दायरे में रहकर होना चाहिए। पर अफसोस की बात यह है कि यहां पर ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। जो कुछ भी हो रहा है वह नियमों को पूरी तरह ताक पर रखकर किया जा रहा है। कैलाश नदी में होने वाले अवैध मिट्टी खनन का मामला इसकी एक बानगी भर है। दरअसल आबादी क्षेत्र से आच्छादित है गांवों के मध्य में स्थित है कैलाश नदी इन दिनों मिट्टी खनन माफियाओं के निशाने पर है।
आलम यह है कि पोपट ने के साथ ही नदी के सीने पर अवैध खनन माफियाओं का राज कायम हो जाता है। नदी से अवैध ढंग से ट्रैक्टर ट्रालियों,डंपरों एवं ट्रकों के माध्यम से मिट्टी की अवैध निकासी का काला धंधा शुरू हो जाता है। 24 घंटे अलर्ट रहने का दावा करने वाली पुलिस इस अवधि में कहीं भी नजर नहीं आती। लिहाजा नदी की बेशकीमती संपदा का अवैध दोहन होना तो लाजिमी है। कैलाश नदी से उठाई जाने वाली मिट्टी निर्धारित ठिकानों पर बड़ी कीमतों पर पहुंचाई जा रही है।
इतना सब होने के बावजूद प्रशासन एवं पुलिस का रवैया ऑल इज वेल यानी सब कुछ ठीक है वाला ही है। खनन माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण मिले होने की बात भी गाहे-बगाहे उठती रही हैं। सूरते हाल को देखते हुए ऐसी संभावनाओं से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि इन्हें किसी का वरदहस्त प्राप्त है।
परमिशन की आड़ में भी हो रहा खेल
अवैध मिट्टी खनन के इस पूरे गोरखधंधे के पीछे परमिशन की आड़ का भी एक खेल खेला जा रहा है। दरअसल, अवैध खनन कर्ता अपनी राजनीतिक पहुंच का फायदा उठाकर मिट्टी खनन कि प्रशासन से अनुमति लिखित तौर पर ले लेते हैं। इसके बाद असल खेल शुरू होता है। दस्तावेजों में मिट्टी खनन की परमिशन किसी अन्य स्थान की होती है। जबकि वास्तविक खनन कैलाश नदी का सीना चीर कर किया जा रहा है।
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