अयोध्या में मुसलमानों ने सहयोग दिया काशी और मथुरा के लिए भी पूरा सहयोग देंगे : गीता सिंह
सुमन डोगरा, बिलासपुर(हिमाचल प्रदेश )।
दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर प्रोफेशनल डेवलपमेंट इन हायर एजुकेशन की निदेशक प्रोफेसर गीता सिंह वह अपने हिमाचल दौरे के दौरान बिलासपुर में पत्रकारों से मुखातिब हुई।
उन्होंने कहा कि शाश्वत शाश्वत, सत्य शाश्वत सत्य न तो पराजित हो सकता है, न परेशान हो सकता है, न निराश हो सकता है, न बूढ़ा हो सकता है।
यह संभव हो सकता है, लेकिन सत्य की उम्र लगातार बढ़ती रहती है। सत्य जितना पुराना होगा, उतना ही अधिक होगा। वह मजबूत हो जाता है और न्याय पाने की उसकी इच्छा भी उतनी ही तीव्र हो जाती है। यह बात सिद्ध हो गई है, ऐसा हुआ भी है और वर्तमान में इसकी अभिव्यक्ति भी हमारे सामने मौजूद हैं। इन तथ्यों की चिंता अयोध्या, काशी और मथुरा को लेकर है। अयोध्या में श्री राम का भव्य मंदिर है। इसी क्रम में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वैज्ञानिक सर्वेक्षण में
यह सिद्ध हो चुका है कि ज्ञानवापी मस्जिद को मंदिर के ऊपर बनाया गया था, इसका ऐतिहासिक प्रमाण भी प्राप्त हुए जिसके आधार पर न्यायालय द्वारा वहां पूजा करने की अनुमति दी गई है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि मथुरा में वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराया जाए तो इसके मंदिर होने के भी पर्याप्त प्रमाण मिलने की पूरी संभावना है। उन्होंने कहा कि हमारी धार्मिक व्यवस्था कोई भी हो, हमारी सांस्कृतिक जड़ें सदैव सनातनी ही हैं। और हिंदू पौराणिक कथाएं हर भारतीय का परिचय हैं। ऐतिहासिक रूप से यदि हमारे वंशज की जांच होगी तो वह सनातनी निकलेगा। तो इतिहास में किसी कारण से हम सपनों की व्यवस्था भले ही बदल गई हो, धर्म बदल गया हो लेकिन हम सपनों को नहीं बदल सकते। दोनों सनातनी थे। इसीलिए हमारे प्राचीन पूर्वजों का खून भी हमारी रगों में बह रहा है, राम और कृष्ण का खून बह रहा है. हम सब खून और पूर्वजों से सनातनी हैं। भारतीय मुसलमानों का प्यार अलग हो सकता है, इबादत का तरीका भी अलग हो सकता है लेकिन चूँकि स्वभाव से वह सनातनी हैं।
वास्तव में हम सभी की जड़ें शाश्वत हैं। इसलिए हमें अपने सपनों से जुड़ने का प्रयास करना चाहिए। यह भी सच है कि विदेशी क्रांतिकारियों ने इस देश की संपत्ति यूं ही नहीं छीनी बल्कि इस देश की अतीत और वर्तमान परंपराओं को भी कलंकित करने का प्रयास किया गया। लेकिन दुर्भाग्य से वोट बैंक की राजनीति की खातिर आजादी के बाद उन्हीं क्रांतिकारियों का जश्न मनाया गया।
किया गया। लेकिन इस देश को विदेशी क्रांतिकारियों का जश्न कतई मंजूर नहीं है ! कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी याद भी सार्वजनिक मंच से इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि उनके पूर्वज भी हिंदू हैं। इस्लाम सिर्फ 1500 साल पहले का है, हिंदू धर्म इससे भी पुराना है। 600 वर्ष पहले सभी कश्मीरी पंडित थे, सभी मुसलमान बन गये लेकिन सभी इसी (हिन्दू) धर्म में पैदा हुए थे।
इसी तरह जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला खुद भी कई बार ऐसा कह चुके हैं कि उनके पूर्ववर्ती कश्मीरी पंडित थे। फारूक अब्दुल्ला के बेटे शेख अब्दुल्ला ने भी कहा है कि उनके पूर्ववर्ती कश्मीरी पंडित थे।
उनके परदादा का नाम बालमुकुंद कौल था। उनके पूर्वज मूलतः सप्रू गोत्र के कश्मीरी थे जो ब्राह्मण था। यह सभी तथ्य सिद्ध करते हैं कि हमारा पाठ सनातनी है, हिन्दू संस्कृतिकरण है।
इसलिए हम सभी को अपने सपनों की जड़ों से जुड़ना चाहिए। यह भी एक तथ्य है कि विदेशी आतंकवादियों ने लगभग 5 हजार मंदिरों को ध्वस्त कर दिया था लेकिन अयोध्या, काशी और मथुरा शाश्वत मूल्यों पर आधारित नहीं हैं। ये न केवल प्रतीक हैं बल्कि भारतीय संस्कृति की आधारशिला भी हैं। इसलिए देश के मुसलमानों उदारता दिखाते हुए काशी और मथुरा को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के लिए भी ऐसा ही हो सकता है और पूरा भरोसा है मुसलमानों ने सहयोग दिया है, उसी प्रकार काशी और मथुरा के लिए भी पूरा सहयोग देंगे।