त्वरित टिप्पणी : हल्द्वानी, अल्मोड़ा, खटीमा और चंपावत एबीवीपी नहीं उसका अतिआत्मविश्वास हारा

तेजपाल नेगी
हल्द्वानी।
कुमाऊं के सबसे बड़े महाविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का यूं हारना रश्मि लमगड़िया के आत्मविश्वास को दर्शाता है तो मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र खटीमा, उनके निर्वाचन क्षेत्र चंपावत और एसएसजे विश्व विद्यालय अल्मोड़ा में एबीवीपी की पराजय परिषद के नीति निर्धारकों के अतिआत्मविश्वास की हार ही कहा जाएगा। दरअसल ये चारों कालेज परिषद के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बने हुए थे। कुमाऊं में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का सारा ध्यान इन चारों कालेजों पर ही था लेकिन नतीजा उलटा ही आया।


दरअसल चार दिन पहले तक एबीवीपी की कार्यकर्ता रही रश्मि ने टिकट न मिलने पर बगावत की और एक ही झटके में उन्होंने इतिहास रच दिया। रश्मि को सहानुभूति वोट तो मिले ही उन्होंने चार दिन के भीतर जिस तरह से माहौल को अपने पक्ष में किया उसे देखकर राजनीति के विशेषज्ञ भी हैरान हैं। हल्द्वानी के एमबीपीजी कालेज में इतिहास पहली छात्रा अध्यक्ष होने का गैरव हासिल करने वाली रश्मि की कार्यशैली अब दुनिया के सामने आएगी। वे राजनीति की चतुर खिलाड़ी बनकर उबरेंगी या फिर उन्हें राजनीति निगल जाएगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन चार बड़े लक्ष्यों पर पर भाजपा की प्रदेश सरकार के नेतृत्व में परिषद के किले का यूं ढह जाना उसके नीति निर्धारकों को सोचने के लिए अवश्य मजबूर कर गया है।


मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र खटीमा से पहला अशुभ समाचार भगवा खेमे को मिला। इसके बाद मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र चंपावत से भी हार का समाचार आया तो परिषद के खेमें में सन्नाटा पसरना स्वाभाविक था।अब नजरें गढी थीं अल्मोड़ा और हल्द्वानी के एमबीपीजी कालेज पर तो शाम ढलते ढलते अल्मोड़ा से भी परिषद के नेताओं के लिए दिल तोड़ने वाला समाचार आ गया और कलैंडर में तारीख् बदलती इससे पहले ही इसी तारीख के आखिरी समाचार ने परिषद के नेताओें को झकझोर कर रख दिया।

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वैसे देखा जाए तो इन चारों क्षेत्रों से इस विधानसभा कार्यकाल में कांग्रेस का ही बोलबाला है। सिर्फ चंपावत में मुख्यमंत्री उपचुनाव जीते हैं। खटीमा की जनता ने पहले ही उन्हें नकार दिया था। हल्द्वानी में भाजपा की घुसपैठ नहीं हो सकी अैर अल्मोड़ा में कांग्रेस के मनोज तिवारी बाजी मार ले गए थे। लेकिन क्या भाजपाके अनुसांगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को वस्तु स्थिति की जानकारी नहीं थी। या फिर उनका अति आत्मविश्वास ही उन्हें ले डूबा।​

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अल्मोड़ा और हल्द्वानी में विशुद्ध रूप से परिषद के अंदर अंतिम दिनों हुई बगावत ने उसे हराया। लेकिन यह सि्थति क्यों आई। वह भी तब जब प्रदेश में भाजपा की सरकार है। सोशल मीडिया से लेकर प्रशासन तक सब भाजपा की मुटठी में थे। तो फिर परिषद ने हारने वाले घोड़ों पर दांव क्यों लगाया। क्या जमीनी हकीकत से नेता अंजान थे या फिर विधानसभा चुनावों में जीत के बाद उनका कान्फीडेंश इतना हाई हो चुका था कि मोदी और धामी के नाम पर वे युवाओं को अपने पाले में खींच लाने का दंभ पाल गए थे।
जो भी हो सच्चाई यही है कि इन चारों प्रतिष्ठित कालेजों से फिलहाल परिषद हार चुकी है और इसका संकेत अच्छा नहीं गया है।

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