यह क्या…मृत्यु से एक दिन पहले कोरोना पाजीटिव और अगले ही दिन मृत्युपरांत निगेटिव हो गए बचदा
हल्द्वानी। पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री बच्ची सिंह रावत का मृत्यु पूर्व कोरोना पाजीटिव आना और कुछ ही घंटों बाद मृत्युपरांत लिए गए सैंपल में निगेटिव आना चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों को भी समझ नहीं आ रहा है। कुछ ही घंटों के उपचार के बाद मृत्यु का शिकार हुआ व्यक्ति मृत्युपरांत कोरोना निगेटिव कैसे आया यह पहेली सुलझाने में चिकित्सकों को भी परेशानी हो रही है।
दरअसल बचदा को उपचार के लिए एसटीएच हल्द्वानी में भर्ती कराया गया था, यहां उनका कोरोना टेस्ट किया गया तो उनकी रिपोर्ट कोरोना निगेटिव आई। लेकिन जांचों में पता चला कि उनके फेफड़ों में बड़ी मत्रा में संक्रमण है। हालात बिगड़ने पर शनिवार दोपहर बाद उन्हें एयर लिफ्ट करके एम्स ऋषिकेश ले जाया गया जहां चिकित्सकों ने उन्हें भर्ती करने के साथ उनका कोरोना टेस्ट कराया। इसकी रिपोर्ट अगले ही दिन यानी रविवार की सुबह ही आई जिसमें वे कोरोना के स्रकमण की गंभीर गिरफ्त में पाए गए। इसके बाद उनका उपचार शुरू किया गया, लेकिन बचदा कोरोना से जिंदगी की जंग नहीं जीत सके और एम्स के अनुसार रविवार की रात 8.47 पर चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
लेकिन इसके बाद एम्स ने उनका दोबारा सैंपल लिया। और जांच को भेज दिया। विदित रहे कि यह पूरा घटनाक्रम 30 घंटे के भीतर का है। आज सुबह उस सैंपल की रिपोर्ट भी आई लेकिन वह निगेटिव थी।
अमूमन एक बार कोरोना संक्रमित पाए गए व्यक्ति की उपचार के दौरान तीसरे या चौथे दिन दूसरी सैंपलिंग की जाती है। इस बीच यदि पेशेंट की मृत्यु हो जाती है तो उसे कोरोना पाजीटिव मानते हुए ही उसका महामारी अधिनियम के तहत अंतिम संस्कार किया जाता है। लेकिन एम्स प्रशासन ने बचदा के का तीस घंटे के भीतर दूसरा सैंपल वह भी मृत्यु के उपरांत लिया, यह कुछ जंच सा नहीं रहा है।
खैर जो भी हो आज हल्द्वानी में बचदा का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। तमाम बड़े भाजपा नेता और मुख्यमंत्री इस मौके पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे। उनका अंतिम संस्कार में महामारी अधिनियम के तहत नहीं किया गया। इसकी वजह साफ थी कि मृत्युपरांत उनकी कारेाना रिपोर्ट निगेटिव आई थी।
बचदा के निधन से हम भी स्तब्ध हैं और इस तरह की खबर देकर हम उनके परिजनों का दिल नहीं दुखाना चाहते लेकिन एक सवाल जो आम जनता के बीच महामारी को लेकर उठ रहा है, उसका समाधान निकालना चिकित्साजगत और सरकार का काम तो है ही। क्योकि जनता का विश्वास यदि किसी व्यवस्था से उठता है तो फिर स्थिति बद से बदतर हो सकती है।