मथुरा न्यूज: श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद, मुस्लिम पक्ष की 1600 पेज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज

मथुरा। श्रीकृष्ण जन्मभूमि ईदगाह प्रकरण में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। हाईकोर्ट द्वारा हिंदू पक्ष के दावों को सुनवाई योग्य मानने के बाद इस मामले में मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। लगभग 1600 पेज की याचिका को अब सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा।

एक अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही मस्जिद ईदगाह विवाद को सुनवाई योग्य माना था। कोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन के स्वामित्व को लेकर हिंदू पक्षकारों की ओर से दाखिल सभी 15 सिविल वादों को सुनने योग्य मानते हुए मुस्लिम पक्ष की पांचों आपत्तियां खारिज कर दीं। ईदगाह कमेटी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

अपील दाखिल कर कहा गया है कि हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष के दावों को जो सुनवाई योग्य माना है वह गलत है। मुस्लिम पक्ष के इस प्रार्थना पत्र पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की जाएगी। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि मुस्लिम पक्ष की इस अपील पर हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट लगाई है। हम भी अपना पक्ष रखेंगे। बताया कि सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट संख्या 2 में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार इस पूरे मामले की सुनवाई करेंगे।

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शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के सचिव एडवोकेट तनवीर अहमद के मुताबिक 1600 पन्नों की रिट दाखिल की गई है। हाईकोर्ट ने उपासना अधिनियम, परिसीमा अधिनियम, वक्फ एक्ट के प्रावधानों को नजरअंदाज किया है। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से अपना पेश करेंगे।

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हिंदू पक्षकारों की दलीलें
ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ क्षेत्र श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है, वह हिस्सा भी जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद है।
शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
श्रीकृष्ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया है।
बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है।

मुस्लिम पक्ष की दलील
जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ है। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं है। लिहाजा, मुकदमा चलने योग्य नहीं है।
उपासना स्थल अधिनियम 1991 के तहत भी मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।
15 अगस्त, 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी। उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती है।

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