हिमाचल ब्रेकिंग : निर्दलीय विधायकों के मामले में फैसला अब तीसरे जज के हाथ में, दो सदस्यीय खंडपीठ की राय थी जुदा-जुदा

शिमला। हिमाचल प्रदेश के तीन निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे का मामला एक बार फिर लटक गया है। प्रदेश हाईकोर्ट इस मामले में अपना अंतिम फैसला नहीं सुना पाया है। न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ की इस मामले पर अलग-अलग राय है, जिसके बाद मामले को तीसरे जज को सौंपने की सिफारिश की गई है।

अब न्यायालय का तीसरा जज मामले की सुनवाई कर अंतिम फैसला सुनाएगा। हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए बीते 30 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया। तभी से निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे पर न्यायालय के फैसले का इंतजार किया जा रहा था। बुधवार को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की, लेकिन इस मामले में दोनों जजों की राय अलग-अलग है। ऐसे में तीसरे जज की राय के बाद इस पर फैसला आएगा।

हाईकोर्ट के महाधिवक्ता अनूप रत्न ने बताया कि निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे के मामले में बुधवार को न्यायालय में सुनवाई हुई लेकिन मामले की सुनवाई कर रहे दोनों जजों का अलग-अलग मत था। न्यायमूर्ति राव ने फैसले के दौरान कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का संवैधानिक पद है और न्यायालय किसी भी संवैधानिक संस्था को निर्देश नहीं दे सकता कि अध्यक्ष इस मामले पर फैसला कैसे ले। दूसरी तरफ न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवल दुआ का मत है कि निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे को स्वीकार करने की शक्ति अध्यक्ष के पास है। न्यायालय अध्यक्ष को इस मामले में निर्देश दे सकता है कि वह इस मामले का दो हफ्ते में निपटारा करें।

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महाधिवक्ता ने बताया कि किसी मामले में जजों का दोहरा मत आने के कारण खंडपीठ उस मामले को तीसरे जज के समक्ष रखती है। ऐसे में प्रशासनिक स्तर पर इस मामले को अब मुख्य न्यायाधीश तीसरे जज के सामने रखेंगे और वह इस मामले की पुनः सुनवाई के बाद जो भी निर्णय देंगे, वह अंतिम फैसला माना जाएगा।

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आपको स्मरण ही है कि तीन निर्दलीय विधायकों हमीरपुर से आशीष शर्मा, नालागढ़ से केएल ठाकुर और देहरा से होशियार सिंह ने इस्तीफे मंजूर न करने और उन्हें अध्यक्ष द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी करने के खिलाफ याचिका दायर की है।

न्यायालय में सुनवाई के दौरान निर्दलीय विधायकों की ओर से कोर्ट को बताया गया कि इस मामले में उन्होंने खुद जाकर अध्यक्ष के समक्ष इस्तीफे दिए, राज्यपाल को इस्तीफे की प्रतिलिपियां सौंपी, विधानसभा के बाहर इस्तीफे मंजूर न करने को लेकर धरने दिए और न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाया तो उन पर दबाव में आकर इस्तीफे देने का प्रश्न उठाना किसी भी तरह से तार्किक नहीं लगता तथा इसलिए इससे बढ़कर उनकी स्वतंत्र इच्छा से बड़ा क्या सबूत हो सकता है।

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गौरतलब है कि तीनों निर्दलीय विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से 22 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष तथा सचिव को अपने इस्तीफे सौंपे थे। इस्तीफों की एक-एक प्रति राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल को भी दी थी। राज्यपाल ने भी इस्तीफों की प्रतियां विधानसभा अध्यक्ष को भेज दी थीं।

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