बिलासपुर न्यूज: ओपीएस देना तो दूर, वेतन और पेंशन के भुगतान के लिए भी खड़े कर दिए सरकार ने हाथ : त्रिलोक जमवाल
सुमन डोगरा,बिलासपुर। सदर के विधायक त्रिलोक जमवाल ने कर्मचारियों के वेतन और पेंशन को लेकर प्रदेश सरकार पर तीखा हमला किया है। उन्होंने कहा कि अन्य चुनावी गारंटियों की तरह ओपीएस देना तो दूर, आर्थिक संकट का रोना रोकर यह सरकार कर्मचारियों और पेंशनर्स को वेतन और पेंशन तक नहीं दे रही है। बोर्डों-निगमों के कर्मचारियों को तो 4-4 माह से वेतन नहीं मिल पाया है। प्रदेश में आर्थिक संकट के लिए सरकार का कुप्रबंधन जिम्मेदार है। एक ओर ‘मित्रों’ का वेतन 30 हजार से बढ़ाकर सीधे 1.30 लाख रुपये किया जा रहा है, जबकि दूसरी ओर कर्मचारियों और पेंशनर्स को उनके हक से वंचित रखा जा रहा है।
त्रिलोक जमवाल ने कहा कि व्यवस्था परिवर्तन का नारा लगाने वाली कांग्रेस सरकार के कुप्रबंधन के कारण चारों ओर अव्यवस्था का बोलबाला है। जनहित के कार्यों के लिए शुरू से ही आर्थिक तंगी का रोना रोने वाली ‘सुख’ की इस सरकार से प्रदेश की जनता को केवल दुख ही मिल रहे हैं। पहले भाजपा कार्यकाल में जनहित में खोले गए 1000 से अधिक संस्थान बंद कर दिए। उसके बाद कई जनहितैषी योजनाएं बंद करने के साथ ही सैकड़ों स्कूल बंद करके नौनिहालों का भविष्य भी अंधकारमय बना दिया गया। अब बात कर्मचारियों और पेंशनर्स को उनके हक से वंचित करने तक पहंुच गई है। ओपीएस देना तो दूर, प्रदेश के इतिहास में संभवयता ऐसा पहली बार हुआ है कि कर्मचारियों व पेंशनर्स को पहली तारीख को वेतन व पेंशन नहीं मिले हों। बोर्डों-निगमों के कर्मचारी तो 4-4 माह से वेतन को तरस रहे हैं। इसी तरह बीते डेढ़ साल के एरियर का भुगतान भी लंबित है।
त्रिलोक जमवाल ने कहा कि वेतन और पेंशन मिलने में हो रही देरी से कर्मचारियों और पेंशनर्स के सामने हाथ खड़े करने जैसे हालात पैदा हो गए हैं। घर चलाने के साथ ही बच्चों की पढ़ाई, ट्रेनिंग व अन्य सामाजिक दायित्व निभाना उनके लिए मुश्किल हो गया है। वृद्धावस्था में कई तरह की बीमारियों से जूझ रहे पेंशनर भी पेंशन नहीं मिलने से इलाज करवाने और दवाई खरीदने में असमर्थ हो रहे हैं। अपने कुप्रबंधन से प्रदेश को आर्थिक संकट में झोंकने वाली सुक्खू सरकार एक ओर अभी भी कई और कड़े फैसले लेने की बात कर रही है, लेकिन दूसरी ओर चहेतों को मालामाल करने में कोई कमी नहीं छोड़ रही है। एक ‘मित्र’ का वेतन 30 हजार से बढ़ाकर 1.30 लाख रुपये कर देना इसका ताजा उदाहरण है। बेहतर होगा कि सरकारी खजाने से ‘मित्रता’ का धर्म निभाने के बजाए सरकार प्रदेश की जनता के प्रति अपना दायित्व ईमानदारी से निभाने को प्राथमिकता दे।