ब्रेकिंग न्यूज : 13 साल में 40 प्रतिशत तक बढ़ा ग्लेशियर झीलों का आकार, उत्तराखंड-हिमाचल समेत 5 राज्यों में बड़ा खतरा

देहरादून। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। ग्लेशियर झीलों का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर झीलों में 13 साल के अंतराल में 33.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में हालात और चिंताजनक नजर आ रहे हैं। यहां ग्लेशियर झीलों का आकार 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है।

केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 67 ऐसी झीलों की पहचान की गई है, जिनके सतही क्षेत्रफल में 40 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी देखी गई है। ऐसी स्थिति उत्तराखंड समेत लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में सर्वाधिक है। ऐसी झील से ग्लेशियल लेक आउटब‌र्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) का खतरा सर्वाधिक है और इनकी गहन निगरानी की संस्तुति की गई है।


यह खुलासा केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की ताजा रिपोर्ट में हुआ है। केंद्रीय जल आयोग ने हिमालयी ग्लेशियर झीलों के क्षेत्रफल में बदलाव के आकलन के लिए वर्ष 2011 से सितंबर 2024 तक की स्थिति का अध्ययन किया। इसमें पता चला कि भारत में ग्लेशियर झीलों का क्षेत्रफल 1,962 हेक्टेयर था, जो सितंबर 2024 में बढक़र 2,623 हेक्टेयर हो गया है। यह बढ़ोतरी 33.7 प्रतिशत दर्ज की गई।

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रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्लेशियर झीलों का दायरा बढऩे के साथ ही दूसरे जल निकायों में भी पानी की मात्रा बढ़ रही है। वर्ष 2011 में ग्लेशियर झीलों समेत अन्य जल निकायों का कुल क्षेत्रफल 4.33 लाख हेक्टेयर था, जो अब बढक़र 10.81 प्रतिशत बढक़र 5.91 लाख हेक्टेयर हो गया है। उच्च जोखिम वाली ग्लेशियर झीलों से निचले क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। बाढ़ का खतरा सीमा पार भूटान, नेपाल और चीन जैसे पड़ोसी देशों में भी नजर आता है।

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पिछले साल इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ने एक रिपोर्ट में अहम खुलासा किया था। इसमें यह सामने आया कि 2011 से 2020 तक ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार 2000 से 2010 की तुलना में 65प्रतिशत अधिक रही है। ग्लेशियर पिघलने की यह रफ्तार बेहद चिंताजनक है। इसकी वजह यह है कि हिमालय लगभग 165 करोड़ लोगों के लिए अहम जल स्रोत है। अगर यही रफ्तार रही तो सदी के अंत तक ग्लेशियर 80 प्रतिशत तक खत्म हो सकते हैं।


पिछले साल इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) ने अपनी एक रिपोर्ट में अहम खुलासा किया था। इसमें यह सामने आया कि 2011 से 2020 तक ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार 2000 से 2010 की तुलना में 65% अधिक रही है। ग्लेशियर पिघलने की यह रफ्तार बेहद चिंताजनक है। इसकी वजह यह है कि हिमालय लगभग 165 करोड़ लोगों के लिए अहम जल स्रोत है। अगर यही रफ्तार रही तो सदी के अंत तक ग्लेशियर 80 प्रतिशत तक खत्म हो सकते हैं।

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