वर्षों से चली आ रही बग्वाल की पंरपरा इस बार भी पूरे रस्मो रिवाज के साथ मनायी गयी इस गांव में कई लोग जख्मी 

अल्मोड़ा।  ऐतिहासिक गांव पाटिया में इस बार भी बग्वाल खेली गई। गौरतलब है कि विकासखण्ड के पाटिया गांव में सैकड़ो वर्षो से बग्वाल खेलने की पंरपरा चली आ रही है। इस बार भी बग्वाल खेलने की प्रथा इस बार भी पूरे रस्मो रिवाज के साथ मनायी गयी।

 आज आयोजित बग्वाल में चार गांव के योद्धाओं ने हिस्सा लिया। और सदियों पुरानी परम्परा को कायम रखते हुए पत्थर युद्ध खेला । बग्वाल कुछ अन्तराल तक चली यह युद्ध किसी एक ग्राामीण द्वारा नदी में पानी तक पहुंचने के बाद शांत हो गया। kotyuda की ओर से विकी बिष्ट के पचघटिया में पानी पीने के साथ ही बग्वाल का समापन हो गया। 

इसके बाद पाटिया के राजा पिलखवाल ने पचघटिया में पानी पीया। और दोनो पक्षों द्वारा एक दूसरे पर पानी छिड़कने के साथ ही बग्वाल का समापन हो गया। पाटिया क्षेत्र के पचघटिया में खेले गये इस बग्वाल में पाटिया, भटगांव , जाखसौड़ा कोटयूड़ा और कसून के ग्रामवासियो ने भाग लिया जबकि क्षेत्र के दर्जनो गांवो से आये सैकड़ो लोग इस पत्थर युद्ध के गवाह बने। पाटिया और कोट्यूड़ा के बीच मूलतः खेले जाने वाले इस पत्थर युद्ध में कोटयूड़ा के साथ कसून जबकि पाटिया के साथ जाखसौड़ा और भटगांव के योद्धाओं ने शि्रकत की। पत्थर युद्ध का आगाज पाटिया गांव के अगेरा मैदान के गाय खेत में गाय की पूजा के साथ शुरू हुआ।

मान्यता के अनुसार पिलख्वाल खाम के लोगो ने चीड़ की टहनी खेत मे गाड़कर बग्वाल की अनुमति मांगी । इसके बाद मैदान को पार करके पचघटिया (नदी का नाम ) तक पहुंच कर पाटिया खाम के महेन्द्र पिलख्वाल के पानी पीने की रस्म के बाद यह युद्ध समाप्त हो गया इसके बाद लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी और अगली बार मिलने का वादा कर विदा ली। प्राचीन समय में केवल ठाकुर (क्षत्रिय) लोगों द्वारा इस बग्वाल को खेला जाता था लेकिन अब समय बीतने के साथ ही हर जाति का व्यक्ति और युवा इस पत्थर युद्ध में पूरे जोशो खरोश् के साथ षिरकत करता है।

यह पत्थर युद्ध कबसे और क्यों खेला जा रहा है इस बारे में नयी और कुछ पुरानी पीढ़ी को भी बहुत अधिक पता नहीं है लेकिन पुरखों की इस परम्परा को निभाने के लिए आज भी लोग पूरा समय देते हैं। सम्बन्धित क्षेत्र के युवाओं में पिछले कई दिन से इस युद्ध के आयोजन के लिए तैयारी षुरू हो जाती है। मान्यता है कि वर्षो पूर्व किसी आतताई को भगाने के लिए देानो गावों के लोगों ने एकजुट होकर उसे पत्थरों से भगाया था। और बाद में उसके भाग जाने और पानी पीने की मोहलत देने के अनुरोध पर ही गांव वासियों ने उसे छोड़ा था।

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हालाकिं नई पीढी इस कहानी के बारे में भी ज्यादा नहीं जानती है। पत्थर युद्ध नदी के दोनों छोरों से खेला जाता है और जिस टीम का व्यक्ति सबसे पहली पानी पीने पहुंच जाता है वही टीम विजयी घोशित हो जाती है। इसके साथ ही युद्ध का समापन हो जाता है। इस युद्ध की सबसे बढ़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल हो जाने वाला योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि बिच्छू घास के उबटन को घाव पर लगाया जाता है।

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पूर्वजों के दौर से चली आ रही यह परिपाटी जारी है। लेकिन युद्ध का आगाज कब से और किस कारण हुआ इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यहा पर यह भी बताना जरूरी है कि सदियों से आपसी आयोजन से चल रही इस परम्परा को उभारने और चम्पावत के देवीधूरा की तर्ज पर इसका प्रचार प्रसार करने के लिये प्रशासन द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है इसीलिए यह आयोजन प्रसिद्धि नहीं पा सकी है।

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  इस अनूठे पत्थर युद्ध में कई योद्धा चोटिल हुए।कोट्यूडा की ओर से विकी बिष्ट,पाटिया खाम की ओर से राजा पिलख्वाल ने अगुवाई की।इस मौके पर पाटिया के ग्राम प्रधान  हेमंत कुमार,कोट्यदा के ग्राम प्रधान भुवन चंद्र आर्य, कसून के ग्राम प्रधान सुंदर मटियानी,भट्टगांव के ग्राम प्रधान सुनीता भट्ट,बंशीलाल,सरपंच देवेंद्र सिंह बिष्ट,सामाजिक कार्यकर्ता हेम चन्द्र पांडे, पूरन चंद्र पांडे, पनी राम,दयाल राम आदि मौजूद रहे।

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