लोकसभा चुनाव: इस बार किसके साथ है मुस्लिम समुदाय, जानें क्या है वोटिंग पैटर्न
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव की रैलियों और भाषणों में एक शब्द जो सबसे ज्यादा गूंज रहा है वह है मुस्लिम और अल्पसंख्यक। पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से राजस्थान में 21 अप्रैल को अल्पसंख्यकों को लेकर दिए गए बयान ने चुनावी प्रचार की धारा में बदलाव कर दिया। इसके बाद आरोप और प्रत्यारोप का सिलसिला चल पड़ा।
कांग्रेस ने पीएम पर अपने घोषणापत्र को लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया। हालांकि, बाद में पीएम ने कहा कि वह हिंदू मुसलमान की राजनीति नहीं करते हैं। चुनाव में मुस्लिम समुदाय पर सबकी नजरें लगी हुई हैं कि इस बार क्या उसका चुनावी पैटर्न क्या होगा? क्या मुसलमान एक यूनिफाइड सेकुलर पैटर्न पर वोटिंग करेंगे? माना जाता है कि 543 सीटों में से 86 सीटों पर अल्पसंख्यकों का प्रभाव है। ऐसी सीटें उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में ज्यादा हैं।
बंगाल में टीएमसी को समर्थन
लोकनीति प्रोग्राम फॉर कंपरेटिव डेमोक्रेसी (CSDS) का डेटा बताता है कि अल्पसंखयकों की अच्छी आबादी वाले पश्चिम बंगाल में साल 2021 के विधानसभा चुनाव में 75 फीसदी मुस्लिमों ने तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया था। उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों में 79 फीसदी मुसलमानों ने महागठबंधन के लिए वोट किया और बिहार विधानसभा चुनाव में 77 फीसदी मुसलमानों ने महागठबंधन के लिए वोट किया था।
ऐसे में कई जानकार यह मान रहे हैं कि 2019 के बाद हुए विधानसभा चुनावों के मद्देनजर देश की 14 फीसदी आबादी के इस वोटिंग पैटर्न में बदलाव शायद ही दिखे। यानी कम्युनिटी अपनी वोटिंग की इस अप्रोच को कायम रखेगी। हालांकि, टिकट बंटवारे में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व पहले से कम हुआ है। इस बार I.N.D.I.A. के कुल 78 मुस्लिम उम्मीदवार ही मैदान में हैं, जबकि पिछली बार यह संख्या 115 थी। उनमें से 26 जीतकर लोकसभा भी पहुंचे थे।
सबसे ज्यादा टिकट BSP ने दिए
मुस्लिम समुदाय को टिकट बंटवारे को देखें तो सबसे ज्यादा 35 उम्मीदवार BSP ने खड़े किए हैं। इसके बाद 19 उम्मीदवारों के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर पर है। तीसरे नंबर पर TMC आती है। BSP ने 35 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट भले ही दिया हो, लेकिन इस रणनीति ने अतीत में सेकुलर वोट ही काटे हैं। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में BSP में 99 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था।
इससे मुस्लिम वोट बंट गया था। उस वक्त 403 विधानसभा सीटों में से 313 पर BJP ने जीत हासिल की थी। UP की राजनीति में में यादव-मुस्लिम गणित पर चुनाव लड़ने वाली समाजवादी पार्टी ने भी इस बार OBC और दलित समीकरण को साधने के लिहाज से महज 4 मुसलमानों को टिकट दिया है। बंगाल की राजनीति पर विश्लेषक जयंत घोषाल का कहना है कि फिलहाल 30% मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस, CPM और मुस्लिम सेकुलर फ्रंट जैसे दलों में बिखरा है। जिस तरह से TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी CAA के मुद्दे पर BJP के खिलाफ प्रचार कर रही हैं ऐसे में यह समुदाय तृणमूल के खाते में चला गया तो BJP को दिक्कत हो सकती है।
पसमांदा वोटर्स पर BJP की नजर
राजनीतिक दल भले ही मुस्लिम उम्मीदवारों को खुले हाथ से टिकट देने में हिचकते हों, लेकिन मुस्लिम वोटों की दरकार सबको है। BJP समुदाय के 15 फीसदी वोट को लक्ष्य बना कर चल रही है और इसके लिए बीते कुछ समय में पसमांदा मुसलमानों को लेकर पार्टी का खास फोकस रहा है। मुस्लिम तबके में 57 फीसदी पसमांदा मुसलमान हैं।
BJP की ओर से आक्रामक तौर पर चलाई गई मोदी मित्र योजना भी इसी सिलसिले की एक कड़ी रही है। इसके तहत पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे ने लगातार मुस्लिम समाज के साथ संवाद की रणनीति बनाई। हालांकि कई जानकार यह भी कहते हैं कि 2014 के बाद हिंदुत्वादी नीतियों की वजह से हिंदू वोटर एकजुट हुआ है और यही पैटर्न आगे बढ़ा और 2019 में 40 फीसदी से ज्यादा हिंदू वोटर्स ने BJP को वोट दिया था। मुस्लिम वोट कई जगह बंट गया था।