शिमला सीट : इतना सन्नाटा क्यों है भाई…मीडिया से भाग रहे प्रत्याशी-नेता, सवालों के जवाब नहीं या पोल खुलने का डर
सोलन। हिमाचल प्रदेश की शिमला लोकसभा सीट पर आमने सामने का मुकाबला तो है लेकिन स्थानीय नेताओं की ओर से अमूमन ऐसे चुनावों में दिखने वाली सक्रियता सिरे से गायब है। केंद्र में काबिज भाजपा हो या प्रदेश की सत्ता के घोड़े पर सवार कांग्रेस हर ओर घनघोर सन्नाटा ही दिखाई पड़ रहा है। हालांकि इस सीट पर अब तक भाजपा के राष्ट्रीय प्रमुख जेपी नड्डा कुछ दिन पूर्व ही सोलन के कुनिहार में रैली करके जा चुके हैं और आज स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नाहन में रैली करने पहुंच रहे हैं।
इसके बावजूद भाजपा के स्थानीय नेताओं और जिम्मेदार पदाधिकारियों में वो जोश दिखाई नहीं पड़ रहा है जिसकी उम्मीद लगाई जा रही थी। दूसरी ओर कांग्रेस भी पिछले दस वर्षों की सुसुप्तावस्था से निकल नहीं पा रही है। पार्टी के नेता न तो अभी तक राष्ट्रीय स्तर के किसी स्टार प्रचारक की रैली तय कर सके हैं और न ही पार्टी के कार्यकर्ता लोगों तक पहुंचने की प्रयोगात्मक कार्रवाई में लगे दिख रहे हैं।
हां नालागढ़ व बद्दी में सीएम सुखविंद्र सुक्खू की एक एक रैलियां अवश्य हो चुकी है। दोनों पार्टियों के स्थानीय नेताओं की लापरवाही कहें या चुनाव के प्रति उनकी निराशा कि अब तक सोलन जैसे शहर में उनके प्रत्याशी एक भी पत्रकारवार्ता नहीं कर सके हैं।
पहले बात केंद्रीय सत्ताधारी भाजपा की। तीन दिन पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. राजीव बिंदल ने सोलन के चंबाघाट में एक पत्रकारवार्ता आयोजित की थी। इस वार्ता में उन्होंने लाहुल स्पीति के काजा में ठीक उसी दिन भाजपा की सांसद प्रत्याशी कंगना रणौत और उनकी टोली के खिलाफ लगाए गए नारों को लेकर अपनी नाराजगी जताते हुए सारा आरोप कांग्रेस के सिर मढ़ दिया। उन्होंने काफी लंबी प्रेस वार्ता में घटनाक्रम को लेकर सोलन के मीडिया जगत को बहुत कुछ बताया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते यह आवश्यक भी था, लेकिन जब पत्रकार अपने माइक उठाने लगे तो उन्हें स्मरण आया कि एक बड़ी जानकारी तो मीडिया को देनी बाकी ही रह गई।
शिमला सीट : इतना सन्नाटा क्यों है भाई…मीडिया से भाग रहे प्रत्याशी—नेता, सवालों के जवाब नहीं या पोल खुलने का डर
इसके बाद दोबारा से बैठकर बाकायदा माफी मांगते हुए उन्होंने बताया कि 24 मई को नाहन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम तय हो गया है। उन्होंने यह नहीं बताया कि इस कार्यक्रम को कवर करने के इच्छुक मीडियाकर्मियों के लिए पार्टी अपने स्तर पर क्या सहूलियत प्रदान करने जा रहे हैं।
इस तरह के बड़े प्रोग्राम में अमूमन मीडिया गैलरी में स्थानीय पत्रकारों के प्रवेश को लेकर सुरक्षा के दृष्टिगत समस्या होती है, लेकिन डा. बिंदल के लगा कि दिल्ली से प्रधानमंत्री के साथ आने वाला मीडिया मोर्चा संभाल ही लेगा। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते वे मीडिया को इस कार्यक्रम में आमंत्रण देना भी भूल गए।
खैर जब वे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम बताना ही भूल गए थे तो बाकी की अपेक्षा तो उनसे की नहीं जा सकती थी। वैसे मतदाताओं को स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट पर यकीन होता है वर्षों से सरकारों की चरणवंदना कर रहे तथाकथित मेन स्ट्रीम मीडिया पर नहीं। इस तथ्य को शायद भाजपा के तमाम नेता भूल गए।
हालात यह हैं कि गुरुवार को भाजपा के बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ का एक कार्यक्रम सोलन में आयोजित किया गया। चुनाव की इस बेला में राजनैतिक कार्यक्रमों को गुप्त रूप से आयोजित करना कहां की बुद्धिजीविता है। इस कार्यक्रम के बारे में शाम के समय मीडियाकर्मियों को पता चला। इस कार्यक्रम से सोलन जिला व प्रदेश स्तर के कई बड़े नेता नदारद रहे। तो क्या बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ का यह कार्यक्रम गुप्त था या फिर अपने ही तथाकथित बुद्धिजीवियों से भाजपा को खतरा पैदा हो गया इसलिए उन्हें एकांत में बिठा कर मनाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। यह अपने आप में बड़ा सवाल पैदा हो गया है।
सबसे बड़ी बात यह कि कुछ दिन पहले भाजपा के प्रत्याशी सुरेश कश्यप ने नौणी से लेकर शामती तक का दौरा किया। सब जानते हैं कि लोकसभा चुनावों में घर घर चुनाव प्रचार करने की दुरुह जिम्मेदारी प्रत्याशी पर होती है। लेकिन शाम के समय तो वे सोलन में मीडिया से मुखातिब हो सकते थे। उन्होंने वन टू वन का समय तो निकाला लेकिन पूरे मीडिया समुदाय को एक बार में संतुष्ट करने का समय शायद उन्हें नहीं मिल सका। जबकि सोलन में होने वाली भाजपा की हर पत्रकारवार्ता में मीडिया प्रत्याशी की कॉन्फ्रेंस को लेकर सवाल उठाता है।
पार्टी के नेताओं का तर्क है कि प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक्स मीडिया और डिजीटल मीडिया के दौर में इतने बड़े समुदाय को एक मंच पर लाना मुश्किल काम है।लेकिन ऐसा तर्क देने वाले नेता शायद भूल जाते हैंं कि मीडिया से जुड़े अधिकांश लोग इसी सीट के मतदाता भी हैं, और हर मतदाता का दायित्व है कि वे अपनी हर शंका का समाधान होने के बाद ही अपने पंसदीदा प्रत्याशी को वोट डाले। इसके अलावा वे प्रत्याशाी की बात को हजारों लाखों लोगों तक पहुंचाने की क्षमता रखते हैं और यही लोकतंत्र की मांग भी है। संभवत: वे ऐसी बात कहकर पत्रकारों में गुटबाजी को हवा देना चाह रहे होंगे।
और अब बात पिछले दस वर्षों से केंद्र की सत्ता से बेदखदल चल रही कांग्रेस की। भले ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है लेकिन दिल्ली अभी कांग्रेस से दूर ही है। इसी बीच भाजपा के नेताओं के चार जून के बाद प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के दावे कांग्रेसी नेताओं की आखों से नींद अवश्य उड़ा रहे होंगे। इसके बावजूद कम से कम सोलन में उनमें न तो कोई तनाव है और न ही कोई सक्रियता का भाव। वे अपनी ही चाल से चल रहे हैं। कांग्रेस भवन में आने वाले कांग्रेसी कार्यकर्ता या चापलूसों की टोली उन्हें ग्राम पंचायतवार कांग्रेस की जीत का नया आंकड़ा दिखा जाती है और वे उससे निहाल हो जाते हैं।
कसौली विधानसभा क्षेत्र के सुल्तानपुर के रहने वाले कांग्रेस प्रत्याशी विनोद सुल्तानपुरी को अभी तक सोलन जिला मुख्यालय के मीडिया के सामने आने की सुध नहीं आई है। संभवत: उन्हें भी भाजपा प्रत्याशी व नेताओं की तरह गुमान है कि वे इस सीट को आसानी से निकाल लेंगे, लेकिन मीडिया से मिलना और औपचारिकतावश उन्हें चाय पिलाने का गणित उन्हें अभी समझ नहीं आया है। संभवत: वे भूल चुके हैं कि वे कसौली विधानसभा का नहीं बल्कि शिमला संसदीय क्षेत्र के प्रत्याशी हैं। यहां तीन जिलों के मुख्यालय हैं। सब जगहों पर हजारों मतदाता निवास करते हैं। जो किसी न किसी माध्यम ये मीडिया से जुड़े हैं।
संभव है कि कांग्रेस के पास राष्ट्रीय प्रचारक ही न हो या फिर स्थानीय कांग्रेस को किसी पर विश्वास ही न हो। लेकिन स्थानीय स्तर पर भी उन्हें इस सीट पर विक्टरी मार्क ठोकने के लिए काफी कुछ करना होगा। हिमाचल में मतदान को भरपूर समय मिला है, इसलिए भाजपा या कांग्रेस कोई भी समय सीमा वाला कुतर्क पेश नहीं कर सकते हैं।
आत्माभिमान के मद में चूर केंद्र में काबिज भाजपा और प्रदेश की कुर्सी पर बैठी कांग्रेस शायद भूल रही है कि गोदी मीडिया के नाम से कुख्यात अधिकांश मेन स्ट्रीम मीडिया के इतर भी देश में बहुत कुछ हो रहा है जिसका नतीजा आने वाली चार जून को दिखाई पड़ेगा। तब न कहा जाए कि एक छोटी से गलती उन्हें भारी पड़ गई।
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