जरूर देखें : प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के नाम तो खुले पत्र बहुत देखें होंगे आज पढ़िये आम आदमी के नाम एक पत्रकार का खुला पत्र
तेजपाल नेगी
प्रिय पाठकों
कोरोना की दूसरी लहर के कम होने के संकेतों को देख कर लग रहा था कि उत्तराखंड में भी क्रमवार ढंग से कोविड कर्फ्यू समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू होगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नियमानुसार बाजार आज भी बंद हैं, और आने वाले सप्ताह भी ऐसा ही रहने वाला है। उसके बाद यदि बाजार खुलता है तो एक दो महीने पटरी से उतरी अर्थ व्यवस्था को ट्रेक पर आने में लगेगा। सचमुच में यह कष्टदायी काल है। उनके लिए जो कोरोना के कारण बीमार पड़े और उनके लिए भी जो कोरोना से अछूते ही रह गए।
आज मैं आपको समाज के उस वर्ग की कहानी सुनाने जा रहा हूं, जो सबको सबकी कहानी सुनाता है और खुद की बात कभी कर भी नहीं पाता। जी हां मीडिया! यहां अपने बहाने मीडिया का दर्द आपके सामने रख रहा हूं…क्योकि मेरे बारे में मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता होगा और मेरा व्यक्तिगत मानना है कि आदमी स्वयं जैसा होता है उसे दुनिया भी वैसी ही दिखती है। इसलिए मीडिया पर लगने वाले तमाम आरोप—प्रत्योरोपों के बीच मैं पूरे मीडिया जगत को निर्दोष मानते हुए अपनी बात आपके सामने रखने का प्रयास कर रहा हूं। यहां अपने उन गुरूजनों से एक बार क्षमा प्रार्थना के साथ अपनी बात कहने की चेष्टा कर रहा हूं जिन्होंने कभी सिखाया था कि पत्रकार को स्वयं के लिए कभी समाचार नहीं लिखना चाहिए।
पिछले लगभग 30 वर्षों से मीडिया का अभिन्न अंग रहा। नौ साल हल्द्वानी से अपने समाज की सेवा में तत्पर हूं। अपने गुरूओं की शिक्षा परिणाम रहा कि मुफ्त के धन पर कभी नजर नहीं पड़ी। 12 अप्रैल को विधिवत अपना ही प्रकल्प ‘सत्यमेव जयते डॉट काम‘ शुरू किया और सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने वाली कहावत सार्थक हो गई। कोरोना ने कार्यालय परिसर पर हमला बोल दिया। 14 दिन में कंटेनमेंट जोन से बाहर निकले और अब आपकी तरह हम भी कोविड कर्फ्यू की पीड़ा झेलने को विवश है। साथियों को वर्क फ्राम होम के तहत घर से ही कार्य करने का आग्रह किया और आपकी सेवा में लगातार ताजे समाचारों को प्रेषित कर पत्रकारिता का दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।
लेकिन आप अवगत होने चाहिए कि मीडिया का पूरा अर्थशास्त्र बाजार पर निर्भर है और जब बाजार ही अनिश्चितकाल के लिए बंद हों तब कैसी स्थिति पैदा होगी यह सभी लोग जान सकते हैं। ऐसे में महत्वपूर्ण समाचारों की संख्या अधिक हो जाती है और विज्ञापन के नाम पर ठन ठन गोपाल…
एक दो दिन या एक सप्ताह के लिए ऐसी स्थिति होती तो झेली जा सकती थी, लेकिन एक महीना और फिर भी उसके बाद का भी कोई ठिकाना नहीं। ऐसे में साथियों को उनका वेतन, कार्यालयी खर्चें, परिवार की जिम्मेदारियां और संस्थान की अनेकाने देनदारियां हम जैसे लोगों को अब सोने नहीं दे रही है। मैं नहीं जानता कि समाज में मेरे जैसे कितने मीडियाकर्मी होंगे। लेकिन यह जानता हूं कि कई ऐसे बंधू होंगे जो आज तक अपनी कलम के माध्यम से समाज की मदद कर रहे थे आज उन्हें समाज की मदद की आवश्यकता है। लेकिन खुद्दारी के कारण उनकी जुबान खुल नहीं रही है। कई रातों विचार के बाद मैंने तो यह निर्णय लिया कि अपना दिल अपने पाठकों के सामने खोलना चाहिए, क्योंकि सरकारों को आम आदमी के सरोकारों से कोई वास्ता नहीं होता और सरकारों की मदद से पत्रकारिता हम जैसों के बस की बात भी नहीं।
दोस्तों यदि हालात यही रहे तो हममे से कितने ही पत्रकार होंगे जो अपनी आने वाली पीढियों के लिए वसीयत के नाम पर ‘इस पेेशे में न उतरना’ जैसी एक पंक्ति लिख छोड़ जाएंगे। मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे कई पत्रकारों को जानता हूं जिन्होंने पत्रकारिता को ऐसे ही हालातों में अलविदा कह दिया, लेकिन जो हैं उन्हें भी क्या ऐसी ही रूखसती देगा हमारा समाज। बार—बार सवाल उठता है कि मीडिया में भी भ्रष्टाचार आ घुसा है… इसकी वजह भी हम और हमारा समाज है। जरा सोचिए आपकी गली, मोहल्ले, गांव, और शहर से पूरा दिन घूम कर खबरों को एकत्र करने वाले पत्रकार के घर जाकर हमने कितनी बार देखा कि वह वहां किन समस्याओं से दो चार हो रहा हैै। दरअसल हम टीवी के सतरंगी पर्दे पर बैठकर खबरे पढ़ने वाले उन लोगों को पत्रकार समझ बैठे हैं जो सरकारों के इशारे पर मुंह खोलते हैं और सरकारों के लिए ही मंच निर्माण काम करते हैं। ऐसे में आज असली पत्रकारों को चाहिए अपने उस समाज की मदद जिसके लिए वह काम कर रहे हैं। बढ़ती महंगाई, पारीवारिक जिम्मेदारियों के लिए पत्रकार व गैर पत्रकार सब एक समान हैं।
ऐसे में हम पत्रकारों को अब आवश्यकता है अपने पाठकों से मिलने वाली मदद की। चाहे वह मानसिक हो या फिर आर्थिक। हां यह अवश्य है कि छोटी बड़ी हर मदद की एवज में हम आपके विज्ञापनों के माध्यम से आपका कर्ज उतरने का प्रयास करेंगे या फिर समाचार माध्यम को सब्सक्राइब करके भी आप हमारी मदद कर सकते हैं। हमें आपसे मिलने वाली मदद की राशि से नहीं आपके द्वारा मिलने वाले उस स्वावलंबन की लाठी से सरोकार है जो इस बुरे वक्त में आप हमारे हाथों को मजबूत करने के लिए हमें थमाएंगे।
तो दोस्तों अपने समाज और आम आदमी की लड़ाई के लिए अपना जीवन सौंपने वाले हम मीडियाकर्मियों की परेशानी आपके सामने है, कोरोना से जंग के साथ जिंदगी की जंग भी जरूरी है। क्योकि कोरोना काल आज नहीं तो कल समाप्त होगा ही लेकिन तब यह न कहा जाए कि देश और प्रदेश का आम नागरिक उसके लिए दिन रात एक करने वाले वर्ग की मदद के लिए मुसीबत के समय आगे नहीं आया।
आशा है मानसिक स्वस्थता का परिचय देंगे।
तेजपाल नेगी
795783639