कोरोना की मार, चालान से धन जुटाए सरकार!

देहरादून से राजेश मधुकांत
दो साल से लगातार चल रही करोना की मार के चलते जहां जनता पाई-पाई को मोहताज है वहीं सूबे में वाहनों का चालान काटकर खजाना भरने का लक्ष्य दिया गया है।
आज किसी कारणवश ऋषिकेश जाना हुआ वापसी पर एआरटीओ ऋषिकेश ने जंगल में रोक लिया सब कागज दुरुस्त होने के बावजूद नम्बर प्लेट को लेकर चालान काट दिया।
मैंने उन्हें बताया कि इस करोना काल में इतनी सी बात पर चालान काटना उचित नहीं है तो उन्होंने अपनी व्यथा सुना डाली-परिवहन सचिव रंजीत सिन्हा के आदेश है कि वाहनों की जांच करो और चालान काटो हम आदेश के आगे मजबूर हैं। हमें भी चालान काटना अच्छा नहीं लग रहा। मुख्यमंत्री पोर्टल पर विरोध करो।
अब सवाल ये उठता है कि महीनों से जनता के काम जिस विभाग में बंद पड़े हो वहां दो गज दूरी कैसे रख पाएंगे? साथ ही इस उमस भरी गर्मी में मास्क पहनकर लाइन में लगकर घंटों कोई कैसे खड़ा रह पाएगा?
महत्वपूर्ण बात अब नम्बर प्लेट लगवाने के बाद गाड़ी की आर सी लेने एआरटीओ साहब से मिलने ऋषिकेश जाना होगा। कुल अस्सी किलोमीटर आना-जाना पड़ेगा। गाडी खरीदते समय पूरा रोड टैक्स भरा होने के बावजूद लच्छीवाला टोल ब्रिज पर भी लुटना होगा।
कहने का तात्पर्य यह है कि एक छोटी सी कमी के कारण इतना शारीरिक , मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न क्या ठीक है?
अब आते हैं समाधान पर- सरकार बहादुर ने जितनी तत्परता चालान काटने में दिखलाई यदि उससे दस फीसदी भी समाधान पर सोचा होता तो हमें आज इतनी जिल्लत नहीं झेलनी पड़ती।खैर-सरकार बहादुर ठैरे-सरकारी दामाद।वो इस दिशा में सोचे भी तो क्यों? उन्हें तो अपने बॉस को हर हालत में खुश रखना है। अपने राजनीतिक आकाओं की कृपा दृष्टि अपने ऊपर बनाये रखनी है।तभी तो देवभूमि के प्रवेश द्वार-जहां हर चीज की है भरमार ,पर अंगद की तरह पांव जमाये खड़े रहना है।
खैर हम भुगत भोगी हैं-बिना वेतन भोगी हैं, इसलिए सूबे के हित में सुझाव देना अपना कर्तव्य समझते हैं। वैसे चक्कर कटाओ संस्कृति के आगे ये माने जाएंगे ऐसी उम्मीद मुझे तो बिल्कुल भी नहीं है। फिर भी बताना मैं अपना फर्ज समझता हूं।-
-साहब बहादुर को चालान काटकर धनराशि जमा कर रसीद मौके पर ही देनी चाहिए थी।
-नई नम्बर प्लेट की धनराशि भी मौके पर ही जमा कर रसीद दे दी जानी चाहिए थी।

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-आर सी अपने पास नहीं रखनी थी।
-नम्बर प्लेट लग जाने पर विभाग को स्वयं उन्हें सूचित करने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए थी।
अब सवाल यह उठाया जा सकता है कि विभाग ये सब क्यों करे ये तो सब जिसकी गाड़ी है उसका काम है।
तो मित्रो! ये जो साहब बहादुर बने घूम रहे हैं ,ये लोक सेवक हैं। हमारे भरे टैक्स से प्राप्त वेतन से इनके घर का चूल्हा जलता है। हमारी सुविधा के लिए हैं मगर क्या इन्हें इस बात का भान है?शायद नहीं। मैं तो कामना करता हूं देवभूमि के इन चलते फिरते कलयुगी देवताओं को सद्बुद्धि प्रदान करें।

लेखक उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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