हल्द्वानी… #चुनाव : इतना सन्नाटा क्यों है भाई, लोग आशंकाओं व अफवाहों के सहारे गढ़ रहे कयास

हल्द्वानी। चुनाव सिर पर हैं और यहां के राजनैतिक गलियारों में सन्नाटा पसरा हुआ है। लोग टिकट को लेकर अपने—अपने हिसाब से कयास लगा रहे हैं। सत्ताधारी भाजपा हो या उत्तराखंड विधानसभा में मुख्य विपक्षी कांग्रेस,पहली बार चुनावी मैदान में कूदने की तैयारी कर रही आम आदमी पार्टी हो या उत्तराखंडीयत के ख्वाबों को लेकर बुनी गई उत्तराखंड क्रांति दल। उत्तराखंड के मैदानी विधानसभा चुनावों में अपनी धमक छोड़ने वाली बसपा हो या फिर साइकिल के सहारे उत्तराखंड में अपना वजूद तलाशने में लगी समाजवादी पार्टी सभी ओर सन्नाटा है। इक्का दुक्का बड़ी रैलियां यहां हफ्ते में एक दो बार सन्नाटे को चीरती हैं और फिर स्थानीय सेनापति अपने अपने शिविरों में जाकर टिकट किसे मिलेगा इस चिंतन में व्यस्त हो जाते हैं।

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दीपावली से पहले तक जहां नेताओं के ये शिविर कार्यकर्ताओं से आबाद थे वहां अब रहस्मयी शांति है। ऐसा नहीं है कि धरातल के नीचे भी यही खामोशी छाई है। टिकट के दावेदारों की धड़कने बड़ी हुई हैं। वे अपने—अपने नेताओं के संपर्क में हैं। हर हलचल पर नजर गढ़ाए हैं लेकिन धरातल पर सबकुछ शांत है। तूफान से ठीक पहले की शांति…

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यह असमंजस वाला माहौल बना है राजनैतिक दलों के हाईकमान की चुप्पी के कारण। हाईकमान अभी यह तय करने की कोशिश करने में लगा है कि उनके दल को विजय दिलाने वाला दावेदार कौन हो सकता है। भीतरी रर्वे कराए जा चुके हैं। रिपोर्टों पर नजरे दौड़ाई जा रही हैं। पन्ने पलटे जा रहे हैं। नामों पर टि मार्क किए जा रहे हैं लेकिन तय अभी ​कुछ भी नहीं हुआ है।

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इधर टिकट की दावेदारी और उसके कुछ दिन बाद तक जमीन पर अपना दमखम दिखा चुके नेता अब खर्च के डर से मुट्ठी भींच कर बैठ गए हैं। उन्हें मालूम है कि टिकट मिलने पर उन्हें तूफानी प्रचार शुरू करना होगा और यदि इस संक्रमण काल में भी प्रचार जारी रखा औरपार्टी ने टिकट किसी और को दे दिया तो पैसा और ऊर्जा दोनों ही बर्बाद हो जाएंगे। संभवत: यही वजह है कि तमाम टिकट के दावेदार चुप होने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं।

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सत्ताधारी भाजपा के नेता पूरे नैनीताल जिले में जुबानी खामोशी की चादर ओढ़े बैठे हैं। नैनीताल में संजीव आर्या के कांग्रेस में जाने के बाद अब कौन नेता आगे आएगा। नहीं कहा जा सकता। भीमताल में तय माना जा रहा है कि निर्दलीय से भाजपा में आए राम सिंह कैड़ा को ही टिकट दिया जाएगा। लेकिन उनके भाजपा में आने से पुराने भाजपाई खुश नहीं है। वे खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। राम सिंह कैड़ा के लिए यही समस्या प्रमुख है।

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कालाढूंगी में भाजपा खेमे में अभूतपूर्व शांति बनी हुई है। यहां वर्तमान विधायक और कैबिनेट मंत्री बंसीधर भगत की प्रतिष्ठा दांव पर है। लेकिन संघ से आए सुरेश भट्ट, मनोज पाठक आदि उनकी राह के रोड़ा बने हुए हैं। रामनगर में भी कमोबेश यही हालत बनी हुई है। लालकुआं में विधायक नवीन दुम्का का टिकट भी कुछ ऐसे ही पशोपेश में फंसा है। यहां उन्हें भाजपा के कई बड़े नाम टक्कर दे रहे हैं। इनमें हेमंत द्विवेदी, प्रदीप बिष्ट, पवन चौहान और ऐसे ही कुछ और नाम शामिल हैं। हल्द्वानी सीट पर भी हालात कुछ अलग ही हैं। यहां मेयर डा. जोगेंद्र रौतेला के अलावा भी कुछ और दावेदार मैदान में हैं।

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कांग्रेस में भी इस समय जिले की अधिकांश सीटों पर असमंजस ही दिखाई पड़ रहा है। नैनीताल सीट महिला कांग्रेस की सरिता आर्या और पूर्व प्रत्याशी हेम आर्या संजीव आर्या को चुनौती दे रहे हैं। कालाढूंगी में महेश शर्मा के सामने कब कौन आ डटे कहा नहीं जा सकता। लालकुआं में भी पूर्व कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता हरीशचंद्र दुर्गापाल को हरेंद्र बोरा, संध्या डालाकोटी, जैसे नेताओंं की चुनौती मिल रही है। टिकट किसे मिलेगा कहा नहीं जा सकता है।

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हल्द्वानी में पूर्व विधायक व विपक्ष में नेता प्रतिपक्ष स्व. इंदिरा हृदयेश के बेटे सुमित की दावेदारी को दीपक बल्यूटिया, खजान पांडे, ललित जोशी, शशि वर्मा जैसे कई नाम चुनौती दे रहे हैं। शायद यही वजह है कि सभी दावेदार अब टिकट के ऐलान की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
यही वजह है कि नैनीताल जिले में प्रचार गतिविधियां एक दम शांत हो गई है।

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