देहरादून…राजनीति : भाजपा की सरकार आई तो ऐसे लागू होगा “यूनिफॉर्म सिविल कोड”
देहरादून। चुनाव से ठीक पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का चुनावी शिगूफा छोड़ा था। जिसे लेकर उनसे लगातार सवाल पूछा जा रहा है। इतना ही नहीं मतदान के बाद भी इस पर बहस जारी है।
एक बार फिर आज मुख्यमंत्री धामी ने बताया कि कैसे यूनिफॉर्म सिविल कोड को उत्तराखंड में लागू किया जाएगा? दरअसल, आज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से यह सवाल किया गया कि यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर जो बयान उन्होंने दिया था, क्या वह एक चुनावी जुमला था या फिर वाकई में सरकार ऐसा सोच रही है?
जिस पर सीएम पुष्कर धामी ने अपने बयान पर कायम रहते हुए कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात बिल्कुल सही है। उत्तराखंड में एक बार फिर से अगर बीजेपी की सरकार आती है तो यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू किया जाएगा। यह कैसे लागू किया जाएगा, यह भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह हमारा संकल्प है। चुनाव परिणाम के बाद सरकार गठन होते ही प्रदेश के सभी प्रबुद्धजनों, स्टेक होल्डर्स के अलावा विधि विशेषज्ञों की एक हाई पावर कमेटी बनाई जाएगी।
जिसकी संस्तुति से एक ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा और उस ड्राफ्ट को प्रदेश में लागू किया जाएगा। सीएम धामी ने कहा कि इस ड्राफ्ट के बाद प्रदेश में सभी के लिए एक कानून होगा। ऐसा करने वाला देश में उत्तराखंड पहला राज्य होगा। गोवा भी एक इस तरह का उदाहरण है।
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उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय की ओर से भी इस संबंध में राज्यों को बार-बार निर्देश दिए गए हैं। जल्द ही इसे प्रदेश में लागू किया जाएगा।
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समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना।
चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन जायजाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होता है। यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है।
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अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी। अदालतों में सालों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्दी होंगे।
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शादी, तलाक, गोद लेना और जायजाद के बंटवारे में सबसे लिए एक जैसा कानून होगा। फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानून के तहत करते हैं।
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