चंडीगढ़…खोज:पैक के शोध कर्ता ने बॉक्साइट अवशेष से बनाया मिश्रित धातु
चंडीगढ (गुरदयाल दयाली) । भारत मे तेजी से हो रहे उद्योगीकरण उद्योगिक क्रांति तो ला रहा है। परन्तु अयस्क (ore) निष्कर्षण एवं मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज के अवशेष का पर्यावरण पर बहुत गहरा असर पड़ रहा है। पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज चण्डीगढ़ के प्रोडक्शन एवं इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के पूर्व शोधकर्ता एवं प्रोफेसर डॉ अजय सिंह वर्मा ने अपने शोध में पाया के बॉक्साइट अयस्क के निष्कर्षण से हर वर्ष बॉक्साइट अवशेष से जहरीले तत्व जैसे आर्सेनिक(As) एवं लैड (Pb) पानी के घुल कर भूमि की उपजाऊ शक्ति पर असर डालते है और धरती के पानी को भी दूषित करते है।
इसकी उच्च एल्कलाइन एवं कास्टिक मात्रा चमड़े के रोग और आंखों के जलन जैसी समस्याओं को जन्म देते है।
शोध में ये भी पाया गया के विश्व में भारत बॉक्साइट से एल्युमीनियम बनाने में चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर है और बॉक्साइट को प्रोसेस करने में जो अवशेष बचता है उसको नष्ट करने को बहुत बड़े क्षेत्र की जरूरत पड़ती है जबकि इसको नष्ट करने का अभी तक कोई ठोस उपाय पूरे विश्व मे नही है।
इस अवशेष को या तो छोटे छोटे तालाब बना कर उसमें डाल दिया जाता है या फिर समुन्द्र में इसको बहा दिया जाता है। परन्तु समुन्द्र में बहाने से वहाँ के एक्वेटिक लाइफ पर भी बुरा प्रभाव देखने को मिला है।
उपरोक्त कारणों को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण हेतु इस अवशेष को मिश्रित धातू बनाने हेतु उपयोग में लाया गया। जिससे इस खतरनाक अवशेष का प्रभाव कम किया जा सके। शोध के साथ जुड़े प्रोफेसर सुमनकान्त एवं नरेंद्र मोहन सूरी ने बताया के इस मिश्रित धातु को बनाने में काफी विफलताओं के बाद इसपर कामयाबी मिल पाई और इस शोध को पेटेंट करवाया गया।
अभी तक इस अवशेष को पूर्ण रूप से नष्ट करने और इस इस्तेमाल के विकल्पों पर शोध चल रही है जिससे इस अवशेष के दुष्प्रभावों से निजात मिल सके।