स्टारडम + मोदी = मंडी फतह, फार्मूला लेकर राजनीति के मैदान में उतरीं कंगना

तेजपाल नेगी
मंडी (हिमाचल प्रदेश)।
रूपहले पर्दे से राजनीति में पदार्पण करने वाली कंगना रणौत हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट पर भाजपा के टिकट से अपनी किस्मत आजमाने आज विधिवत मैदान में उतर गईं। उनके मंडी पहुंचते ही भाजपा ने उनका रोड शो करा कर संकेत दे दिए हैं कि इस लड़ाई को पूरी गंभीरता से अपनी ही स्टाइल में लड़ने के लिए तैयार है।

कंगना की अनुपस्थिति में कांग्रेस नेत्री सुप्रीया श्रीनेत की एक कथित अशिष्ट टिप्पणी को लेकर बबाल करने वाली भाजपा आज के बाद इस मुद्दे को हासिये पर रख कर नई रणनीति पर काम करना शुरू करेगी। श्रीनेत ने इस टिप्पणी पर अपनी सफाई भी दे दी थी और माफी भी मांग ली थी, लेकिन भाजपा इस मुद्दे को हिमाचल और मंडी की प्रतिष्ठा से जोड़कर अभी तक जगह जगह प्रदर्शन करके माहौल गर्माए हुए थी।

दरअसल फिल्मी कलाकारों के राजनीति की उबड़ खाबड़ जमीन पर उतरने के लिए माहौल ऐसे ही तैयार करवाया जाता है और भाजपा इस तरह की राजनीति की एक्सपर्ट है। लेकिन इन तिकड़मों से जुटाए गए वोटों से लोकसभा क्षेत्र की जनता को लाभ नहीं होता। इसके उदाहरण इतिहास में खोजेंगे तो आसानी से मिल जाएंगे। लंबे समय तक कांग्रेस की राजनीति करने वाले राज बब्बर, अमिताभ बच्चन, गोविंदा गत विधानसभा चुनावों में भाजपा के दामन थामने वाले मिथुन चक्रवर्ती जैसे नाम इसके बड़े उदाहरण हैं।

अपने विवादित बयानों के लिए चर्चाओं में रहने की शौकीन कंगना कभी अभिनेत्री उर्मिला मार्तोडकर को साफ्ट पोर्न स्टार कह कर बुलाती हैं तो उन्हें महिला अपमान की याद नहीं आई। जब उन्होंने देश को बताया कि असली आजादी तो वर्ष 2014 में ही मिली है और 1947 में मिली आजादी तो बस भीख में मिली थी। तब आजादी के लिए प्राण व अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान का अपमान नहीं होता लेकिन बात जब स्वयं पर आती है तो कंगना बौखलाने लगती हैं। अपनी ही सह अभिनेत्री तापसी पन्नू से उनकी तीखी नोक झोंक को लोग अभी भूले नहीं हैं। हालांकि सुप्रिया श्रीनेत की उस टिप्पणी की जितनी भी निंदा की जाए उतनी कम है तो लेकिन इसका अर्थ यह कतई भी नहीं हो सकता कि कंगना को कुछ भी बोलने की आजादी दी जा सकती है। खैर अब कंगना राजनीति के मैदान में उतर आई हैं तो इस तरह के विवादों से उनका पीछा छूट जाने की उम्मीद ही की जा सकती है।

यह भी पढ़ें 👉  ब्रेकिंग न्यूज : रोहड़ू के चिड़गांव में कार खाई में गिरी, दो की मौत

यह तो दावा नहीं किया जा सकता है कि सतरंगी पर्दे से राजनीति में आए शत प्रतिशत लोग असफल ही रहे हैं। लेकिन ट्रेक रिकार्ड की बात करें तो यह अनुभव जनता के लिए बहुत असरकारी नहीं रहा है। कंगना ने दिल्ली में दिए गए एक साक्षात्कार में उनकी बातों से साफ हो गया था कि मंडी संसदीय सीट के लिए उनके पास कोई योजना नहीं है अ​लबत्ता वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विकास के खाके को ही अपनाएंगी। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के हाथ मजबूत करेंगी। इससे उनकी राजनीतिक अप्रोच का पता लग ही जाता है। अब वे मंडी पहुंच गई हैं और चुनाव प्रचार में उतर पड़ी हैं। ऐसे में मंडी के लिए उनके मन में क्या योजनाएं हैं इसका आगे खुलासा हो ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।

मंडी लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास
मंडी लोकसभा सीट अमूमन ब्राह्मण —राजपूत के कब्जे में ही रही है। इसमें से अधिकांश समय कांग्रेस ने ही यहां अपना परचम लहराया है। अनुसूचित जाति के एक मात्र गोपीराम ने ही यहां सबसे पहले और आखिरी बार विजय हासिल की। 1952 में गोपीराम ने यह सीट कांग्रेस के चुनाव चिहृन पर कब्जाई थी। 1962 और 1967 में कांग्रेस के ही ललित सेन ने दो बार यहां से चुनाव जीता।इसके बाद 1971 में वीरभद्र सिंह ने यहां से चुनाव जीता। इसके बाद 1977 में हुए आम चुनाव में भारतीय लोकदल के गंगा सिंह यहां से सांसद चुने गए। तब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने थे। 1980 में वीरभद्र सिंह दोबारा यहां से सांसद बने। वर्ष 1984 में पंडित सुखराम इस सीट से जीते और इसके बाद इस सीट पर भाजपा की एंट्री हुई। 1989 में महाराजा महेश्वर सिंह भाजपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीते। लेकिन 1991 के आम चुनाव में पंडित सुखराम ने कांग्रेस के लिए यह सीट भाजपा से छीन ली। 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने तब भी पंडित सुखराम ने अपनी जीत बरकरार रखते हुए इस सीट को कांग्रेस की झोली में डाला।

यह भी पढ़ें 👉  सोलन न्यूज : गुलदाउदी के मनमोहक रंगों ने जीता सबका दिल, नौणी विश्वविद्यालय में मनाया गया गुलदाउदी दिवस

इसके बाद 1998 और 1999 के चुनावों में महाराजा महेश्वर सिंह ने भाजपा के लिए यह सीट जीती। 2004 में रानी प्रतिभा सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए यह सीट भाजपा से छीन ली। 2009 में वीरभद्र सिंह ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाया। उनकी प्रत्नी के स्थान पर इस बार कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया था।

यह भी पढ़ें 👉  नालागढ़ ब्रेकिंग : छह और 10 साल की दो बहनों के साथ जंगल में हैवानियत, आरोपी फरार

इसके बाद 2013 के उपचुनाव में प्रतिभा सिंह कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव जीतीं। लेकिन 2014 के उप चुनाव में रामस्वरूप शर्मा ने भाजपा के लिए उनसे सीट छीनी। 2019 में रामस्वरूप शर्मा फिर से चुनाव जीते। लेकिन 2021 में रानी प्रतिभा सिंह ने एक बार चुनाव जीत कर इस सीट पर कब्जा जमा लिया।

और अंत में
इतिहास पर नजर डालें तो हिमाचल की इस सीट पर राजा रानी और महाराजा की चकाचौंध के साथ आम आदमी की चमक तो दिखती रही है, लेकिन रुपहले पर्दे की चकाचौंध पहली बार मंडी लोकसभा सीट की जनता देखेगी। कंगना मंडी जिले की ही रहने वाली हैं वे यहां यदा कदा आती जाती भी रही है। लेकिन उनका राजनीतिक अवतार जनता कितना स्वीकार करेगी यह तो चार जून को ही पता चलेगा। चुनाव परिणाम बताएंगे कि ग्लैमर और राजनीति के बीच होने वाले इस मुकाबले में जनता ने किस को चुना।

फिलहाल तो कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की नजरें हाईकमान की ओर से होने वाली टिकट की घोषणा पर ही टिकी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *