विश्व पर्यावरण दिवस: खतरे में हिमाचल का हरा सोना, धूं-धूं कर जल रहे जंगल,खतरा बनी वनों की आग
शिमला। दुनिया भर में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस यानी वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे (World Environment Day) सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन को इसलिए मनाया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रकृति और पर्यावरण (Nature and Environment) से जुड़ी समस्याओं के बारे में जागरूक किया जा सके। इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण (Environment Protection) के लिए कोई ठोस कदम उठाया जा सके। इस दिवस को मनाने का फैसला सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्टॉकहोम सम्मेलन में किया गया था, तब से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया और पहली बार 5 जून 1974 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था, जिसकी थीम ‘एक पृथ्वी’ थी।
इस साल यानी 2024 के लिए Land Restoration, Desertification And Drought Resilience थीम निर्धारित की गई है। जो ‘हमारी भूमि’ नारे के तहत भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे पर केंद्रित है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई और लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण प्रकृति व पर्यावरण को तेजी से नुकसान पहुंच रहा है। ऐसे में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
धूं-धूं कर जल रहे हिमाचल के जंगल
इसके बाद से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस सेलिब्रेट करने का फैसला लिया गया। इसके बाद से हर साल पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन चिंता ये भी है कि एक तरफ तो पर्यावरण को बचाने के लिए कई तरह के आयोजन किए जा रहे हैं। वहीं, हिमाचल में इन दिनों धूं-धूं कर जल रहे जंगलों से वन संपदा सहित धरती पर पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी हजारों जीव जंतु और वन्य प्राणियों का अस्तित्व ही समाप्त हो रहा है।
इस साल 1318 आग की घटनाएं दर्ज
पर्यावरण को बचाने के लिए वनों की सबसे अधिक भूमिका है, लेकिन मानवीय भूल की वजह से आज धरती पर वनों का अस्तित्व संकट में है। हिमाचल प्रदेश में इन दिनों पड़ रही भीषण गर्मी के साथ जंगलों में आग लगने की इस साल 1318 घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं। आग लगने की इन घटनाओं से 2,789 हेक्टेयर हरित क्षेत्र सहित 12,718 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई है। जिसमें अब तक 4.61 करोड़ रुपये का प्रारंभिक वित्तीय नुकसान आंका जा चुका है। पर्यावरण प्रेमियों के मुताबिक वनों को बचाने की दिशा में अगर समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में पर्यावरण और अधिक खतरे में पड़ सकता है। सामूहिक प्रयासों से ही पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सकता है। हिमाचल के जंगलों में लगी आग से न सिर्फ हजारों जानवर आग की भेंट चढ़े हैं, बल्कि करोड़ों रुपए की दुलर्भ वन संपदा और जड़ी-बूटियां भी जलकर राख हो गई हैं।
37 हजार किलोमीटर से ज्यादा वन क्षेत्र
हिमाचल प्रदेश में वन राज्य के कुल राजस्व में 1/3 का योगदान देने के साथ एक बड़ी आबादी को रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं। वर्तमान में प्रदेश का हरित आवरण 27 फीसदी से अधिक है। वहीं, कुल वन क्षेत्र 66 फीसदी है। राज्य सरकार ने 2030 तक हरित आवरण 30 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। जिसे हासिल करने के लिए प्रदेश भर में 10 हजार से अधिक नए पौधे रोपे जाएंगे, ताकि इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। हिमाचल में 31 फीसदी क्षेत्र ट्री लाइन से ऊपर है, जिसमें पेड़ नहीं उग सकते हैं। इसके अलावा प्रदेश में 37 हजार से अधिक किलोमीटर क्षेत्र वनों से लदा है। इसलिए इसे वनों का हरा सोना कहा जाता है।
हिमाचल में इन प्रजातियों के वन
हिमाचल प्रदेश में बान, देवदार, चीड़, राई, पाइन, खैर, सैंबल, ऑक, चिलगोजा आदि सहित पेड़ों की सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती हैं। वन एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। वन न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी है, बल्कि जंगलों से ईंधन, चारा, इमारती लकड़ी, जड़ी-बूटियां, घर निर्माण, बागवानी उत्पादों की पैकेजिंग और कृषि उपकरण जैसी जरूरतें भी पूरी हो रही हैं। ऐसे में जंगलों के बिना मानव जीवन संभव नहीं है। यही कारण है कि प्रदेश के कई स्थानों में देवता का वास समझकर पेड़ों की पूजा की जाती है।