वाह जी वाह : कोरोना ने छीनी याददाश्त को मो. रफी के एक गीत ने लौटा दी

राजकोट। गीत संगीत हमारे मनोरंजन का साधन होने के साथ ही मानसिक सेहत के लिए भी किसी टानिक से कम नहीं है। ऐसा न होता तो उदाहरण राजकोट के 60 वर्षीय तुलसीदास सोनी की याददाष्त शायद ही कभी वापसलौट पाती। तुलसीदास अब धीरे—धीरे कोरोना को हराते दिख रहे हैं।
भास्कर डॉट कॉम के अनुसार, तुलसीदास की 15 अप्रैल को कोरोना रिपोर्ट पॉजीटिव आई थी। जांच करने पर पता चला कि उनके फेफड़ों में 50% इंफेक्शन हो गया है। इलाज के दौरान वे एक बार बेहोश हो गए थे और इस दौरान उनकी याददाश्त चली गई थी। वे परिवार के किसी भी सदस्य को पहचान नहीं पा रहे थे। इसके चलते बेटी भावनाबेन ने म्यूजिक थैरेपी का सहारा लिया और उन्हें मोबाइल पर मोहम्मद रफी के गाने सुनाए। कुछ दिनों बाद भावनाबेन ने उनसे पूछा कि यह गीत आपको याद है तो तुलसीदास ने वही गाना गाते हुए अपने होंठ हिला दिए।
तुलसीदास की बेटी ने भावना बेन कहती हैं कि तुलसीदास को गाने का बहुत शौक था। उन्होंने कई सालों तक स्टेज शो किए और मो. रफी के गाने गाकर लोगों का मनोरंजन किया। वे बिल्कुल रफी की आवाज में गीत गाते थे। उन्होंने गुजरात के अलावा देश के कई शहरों में स्टेज पर रफी के गीत सुनाकर लोगों का मनोरंजन किया।
इस बारे में भावनाबेन ने बताया कि पापा को म्यूजिक से सिर्फ लगाव नहीं है, बल्कि वह तो उनकी जिंदगी है। इसी के चलते उनकी याददाश्त जाने पर मुझे म्यूजिक थैरेपी की बात याद आई। तभी ख्याल आया कि पापा मोहम्मद रफी के फैन हैं और सिर्फ उन्हीं के गीत गाया करते थे। इसलिए मैंने उन्हें कई दिनों तक रफी साहब के कई गाने सुनाए और पापा की याददाश्त वापस आ गई। वहीं, पापा कोरोना से भी अब ठीक हो रहे हैं।
भावनाबेन बताती हैं कि एक बार मेरा तीन साल का बेटा बीमार हो गया था। उसका बुखार दिमाग पर आ गया था। इसके चलते उसकी बोलने की शक्ति कमजोर होने लगी थी। तब पिताजी ने उसे भी लंबे समय तक म्यूजिक थैरेपी दी थी। अब तो मेरा बेटा भी गीत गाने लगा है। भावनाबेन खुद सूफी संगीत पर पीएचडी कर रही हैं।

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