हल्द्वानी…बच्चों का त्योहार फूलदेई हल्द्वानी में जोश से मना

जगमोहन रौतेला
हल्द्वानी।
सांस्कृतिक विविधता के मामले में उत्तराखण्ड की अपनी एक अलग पहचान है। यहां हर महीने कोई न कोई त्योहार मनाया ही जाता है, जिनमें से कई बदलती जीवन शैली के कारण अब लुप्त होने की कगार तक पहुँच गए हैं, जो एक चिंताजनक स्थिति है। उत्तराखण्ड में फूलदेई और घुघुतिया त्यार मूल रुप से बच्चों के त्योहार हैं। अगर बच्चे नहीं हैं तो इन त्योहारों का पूरा उत्साह ही खत्म हो जाता है।


फूलदेई का त्योहार चैत्र ( उत्तराखण्ड में चैत ) महीने की संक्रान्ति को मनाया जाता है। जो इस साल आज 14 मार्च 2022 को मनाया जा रहा है। संक्रान्ति के दिन छोटे बच्चे सवेरे उठकर नहा लेते हैं , उसके बाद रिंगाल की टोकरी में फूल तोड़कर लाते हैं। जिनमें बुरॉश, गेंदा, गुलाब, भिटोर ,फ्यूँली जैसे कई प्रकार के फूल होते हैं। इन फूलों को थालियों व रिंगाल की छोटी – छोटी टोकरियों में सजाया जाता है, जिनमें चावल व गुड़ भी रखा जाता है।

उसके बाद बच्चों की टोलियॉ गॉव के हर घर में ” फूलदेई छम्मा देई, दैंणी द्वार भर भकार, य देई में हो, खुशी अपार, जुतक देला, उतुक पाला, य देई कैं बारम्बार नमस्कार। ” गाते हुए हर घर की देहरी में फूल व चावल चढ़ाते हैं। इस़के बाद हर घर की बुजुर्ग महिला बच्चों को आशीष देते हुए चावल, गुड़, रुपए देती हैं। कुमाऊँ में जहॉ केवल एक दिन संक्रान्ति के दिन ही बच्चे फूलदेई होती है, वहीं गढ़वाल में चैत के पूरे महीने ही बच्चे देहरी में फूल चढ़ाते हैं। फूलदेई के दिन बच्चों की टोलियों का उत्साह देखने लायक होता है।

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पर बढ़ते शहरीकरण व पढ़ाई के जरुरत से ज्यादा बोझ के कारण बच्चे इन त्योहारों से दूर हो रहे हैं और नई पीढ़ी के ” मम्मी – पापा ” भी बच्चों को अपने त्योहार से नहीं जोड़ पा रहे हैं . यह बेबद चिंताजनक है। कथित तौर पर मॉडर्न हो चुके बच्चे भी चावल व गुड़ की थाली लेकर हर घर के द्वार पर नहीं जाना चाहते हैं। अगर माता – पिता अपने बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ कर रखें तो वे अपनी संस्कृति व तीज – त्योहारों को जान पायेंगे।

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बच्चों ने फूलदेई का त्यार हल्द्वानी व आस पास के गॉवों में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया। बच्चों की टोलियॉ सवेरे से ही “फूलदेई छम्मा देई , दैणी द्वार भर भकार ” कहते हुए घरों में फूल व अक्षत डालने निकल पड़ी।

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