राजनीति…#हल्द्वानी : हाल-ए-उक्रांद, मांझी जो नाव डुबोये उसे कौन बचाये…

गजे सिंह बिष्ट
हल्द्वानी।
न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम। यह शेर दल-बदलुओं पर फिट बैठता है। लोभ, लालच, अंहकार बुरी बला है। इन सारी चीजों को परिवार से ही ले लीजिए। यदि एक परिवार में चार भाई हैं, उनमें से एक भाई भी लोभ, लालच में आ जाता है तो परिवार का विघटन होना तय है, उसको समाज में पहले और परिवार में बाद में हेय ​दृष्टि से देखा जाता है। ऐसी ही कुछ स्थिति उत्तराखंड आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभानी वाली उत्तराखंड क्रांति दल की आज बनी हुई है। साफ सुथरी काफी की जब हम कार्बन काफी निकालते हैं तो बहुत हद तक धुधली होती है। उत्तराखंड आंदोलन में उक्रांद ने जो अपनी छवि बनायी थी, कुछ समय बाद उसके नीति नियंताओं ने खुद ही बर्बाद कर दी। कहते हैं मांझी जो नाव डुबोये उसे कौन बचाये।
कुछ नेताओं ने लोभ, लालच, मोह-माया में वशीभूत होकर अपने घर यानी पार्टी को छोड़ना ही मुनासिब समझा। यदि किसी परिवार का मुखिया ही भाग जाय। जरा, सोचो उस घर के क्या हाल होेंगे। उक्रांद में हुआ क्या कि दिवाकर भट्ट जैसा उक्रांद का बड़ा नेता मंत्री बनने के लालच में पार्टी छोड़ देता है। जो पूरी पार्टी का अभिभावक था। प्रीतम पंवार ने भी अपने लालच में पार्टी के साथ विश्वासघात किया। एक और नाम जो उन दिनों जनता में बहुत सम्मान की नजरिये से देखी जाती थी, सुशीला बलूनी। वो भी अपने हित के लिए उक्रांद छोड़कर भाजपा में चले गई। ये तो रहे बड़े नाम। उक्रांत के कई छोटे नेता भी पार्टी को छोड़कर अन्य पार्टियों का रुख करते रहे। जिन लोगों को पार्टी को खाद पानी डालकर सींचना था। वही भागकर चला जाय तो फिर अन्य लोगों से कम उम्मीद की जा सकती है। काशी सिंह ऐरी भले ही उक्रांद में ही ​टीके रहे। लेकिन, वह पार्टी को बुलंदियों पर नहीं लेने में नाकाम रहे। उन्होंने ऐसे लोगों को सदस्या दे दी जो राजनीति की एबीसीडी तक नहीं जानते थे। इनमें त्रिवेंद्र सिंह पंवार जैसे कई छुटभैये नेता हैं। उस दौर में विपिन चंद त्रिपाठी ने काफी हद तक उक्रांत को संभाले रखा। उस दौरान विधानसभा चुनाव में दो चार सीटें लेकर उक्रांद अपनी इज्जत बचाता रहा। अब उक्रांद मृतप्राय: होने की कगार पर रह गई है। युवा नेताओं में एक पुष्पेश त्रिपाठी ओजस्वी और जानकार नेता रह गया है। लेकिन, उनके साथ टीम नहीं है। वह अकेले उक्रांत को ढोह रहे हैं या उक्रांत उनको ढोह रहा है। दोनों का मतलब समान समझ लीजिए। आने वाले समय में वह भी किसी अन्य पार्टी का रुखकर सकते हैं। आज 21 साल में उक्रांद की स्थिति यह हो गई है कि भाजपा-कांग्रेस बड़ी नदियां बन गई हैं। वह साइड में बहने वाले एक छोटे गधेरे की तरह हो गई है। उत्तराखंड में क्या कभी फुल बहुमत में आ पाएगी उक्रांद? बहरहाल तो नहीं लगता है।

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