भीमताल विधानसभा…जो राह चुनी तूने : कैड़ा के लिए इतनी आसान नहीं है डगर

तेजपाल नेगी
हल्द्वानी। बहुत सी ऐसी सीटें हैं जहां के लिए दोनों बड़े राजनैतिक दलों ने अपने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। ऐसा ही एक विधान सभा क्षेत्र है भीमताल । इस विधानसभा क्षेत्र के लिए एक मिथक भी जुड़ा है। वह यह कि इस सीट के सत्तासुख नसीब नहीं है। यानी जिस पार्टी का विधायक यहां से जीतता है उसके विरोधी पार्टी की सरकार प्रदेश में काबिज होती है। लेकिन इस बार हम उम्मीद करेंगे कि यहां की जनता जिसे भी अपना वोट दे प्रदेश में उसकी की सरकार बने। हालांकि विधानसभा सीट पर छिड़ी राजनैतिक जंग में निर्वतमान विधायक रामसिंह कैड़ा के लिए भी स्थिति कांटे की टक्कर वाली हो गई है।


आपको स्मरण करा दें कि वर्ष 2012 में यहां से भाजपा के टिकट पर दान सिंह भंडारी चुनाव जीते जीते थे, लेकिन तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी। विजय बहुगुणा पहले सीएम बने लेकिन आखिरी वर्षों में उन्हें हटाकर हरीश रावत को सीएम बनाया गया। उस चुनाव में आश्चर्यजनक रूप से दूसरे स्थान पर बसपा रही थी। भाजपा के दानसिंह भंडारी 21494 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी जबकि बसपा के मोहन पाल 15051 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। तब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े राम सिंह कैड़ा को 14452 वोटों पर ही संतोष करना पड़ा था।

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पांच साल परिस्थितियां एकदम उलट हो गई दान सिंह भंडारी कांग्रेस में शामिल हो गए। और कांग्रेस के राम सिंह कैड़ा के लिए स्थिति असुविधाजनक हो गई। कांग्रेस ने पिछले विजेता दान सिंह भंडारी को टिकट दिया तो राम सिंह कैड़ा ने बगावत कर दी। बसपा से भी मोहन पाल के बजाए तारादत्त पांडे चुनाव लड़े। ऐसे में राम सिंह कैड़ा ने कांग्रेस छोड़ दी और वे निर्दलीय ही अपना भाग्य आजमाने के लिए चुनावी मैदान में कूद गए।

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कांग्रेस के खिलाफ और उनके प्रति सहानुभूति की लहर दौड़ पड़ी थी। और उस वर्ष कैड़ा ने तीसरे स्थान से मारी थी सीधी छलांग और बन बैठे थे विजेता। तब कैड़ा को 18878 वोट मिले थे। भाजपा की ओर से चुनाव लड़े पूर्व शिक्षामंत्री गोविंद सिंह बिष्ट को 15432 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था। तब निर्दलीय कैड़ा ने भाजपा के प्रत्याशी को 3446 वोटों से मात दी थी।

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बसपा के पांडे उस वर्ष 8444 वोटों के साथ्ज्ञ तीसरे स्थान पर रहे थे। सहानुभूति की सुनामी पर सवार निर्दलीय कैड़ा जीत तो गए लेकिन तब प्रदेश में सरकार बनी भाजपा की। वे पूरे पांच साल अपनी जुगाड़बाजी से ही क्षेत्र के लिए योजनाएं पास कराने के लिए मजबूर रहे। हालांकि बीच बीच में उनके अघोषित भाजपाई विधायक होनेे की चर्चाए भी चलती रहीं। जैसे ही अंतिम वर्ष शुरू हुआ भाजपा में मुख्यमंत्री बदलने का क्रम शुरू हो गया। अंतिम महीनों में कैड़ा ने निर्दलीय से भाजपा का कमल थाम लिया।

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अब स्थिति बदली हुई है। कैड़ा के प्रति सहानुभूति की कोई लहर नहीं है। भीमताल क्षेत्र की जनता अब उन्हें स्थपित नेता मानती है जिसे मदद की कोई आवश्यकता नहीं है। भाजपा की निवर्तमान सरकार के प्रति एंटी इकंबैसी की लहर चलना भी स्वाभाविक है और कुछ समय पहले ही भाजपा में शामिल होने और फिर टिकट ले आने से भाजपा के पुराने नेता भी उनसे किनारा करेंगे यह भी स्वाभाविक ही है। ऐसे में कैड़ा को अपने दमखम पर चुनाव लड़ना और जीतना होगा। अब वे कहीं आंसू बहाने की स्थिति में नहीं है। भले ही अंतिम समय में शामिल हुए हों लेकिन एक सत्ताधारी पार्टी के प्रत्याशी हैं।

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दूसरी ओर भाजपा से कांग्रेस में छलांग लगाने वाले दान सिंह भंडारी मुख्य विपक्षी पार्टी के प्रत्याशी होने के कारण सरकार की गलतियों को लोगों के सामने रखने की आजादी हासिल किए हुए हैं। उनका कद कम करके आंकना कैड़ा खेमे के लिए बचपना होगा। विकास, बेरोजगारी और महंगाई जैसे ज्वलंत विषयों पर भी जनता नेताओं से सवाल करने लगी है। इनके जवाब सत्ताधारी दल के प्रत्याशी होने के नाते कैड़ा को ही तलाशने होंगे।

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एक बात और जो सभी दलों के नेताओं पर भारी पड़ने वाली है। भीमताल नैनीताल जिले का ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां विकट भौगोलिक परिस्थितियों से पांच साल जनता को और चुनावी मौसम में प्रत्याशियों को दो चार होना ही पड़ता है। कम्युनिकेशन सेवाएं यहां काम नहीं करतीं और रैलियां व सभाएं फिलहाल चुनाव आयोग करने नहीं देगा। ऐसे में कैड़ा को अपनी बातें समझाने के लिए एक ऐसी टीम पर निर्भर रहना होगा जो उनकी अनुपस्थिति में गांव गांव में उनकी बात पहुंचा सके। यह टीम भाजपा के पास है लेकिन अधिकांश भाजपाई कैड़ा को अपना मानने को तैयार नहीं हैं। यानि कैड़ा के लिए इस बार भीमताल की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचने का सफर काफी पथरीला है।

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