हल्द्वानी… बैठक:स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं उत्तराधिकारी संगठन की बैठक में उठी कई महत्वपूर्ण मांगें, सीएम को भेजा ज्ञापन
हल्द्वानी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं उत्तराधिकारी संगठन की बैठक हल्द्वानी में शाखा कार्यालय वनांचल बैंक्विट हॉल फतेहपुर में मयंक शर्मा प्रान्तीय उपाध्यक्ष की उपस्थिति में संचालित की गई। जिसमें देहरादून में हुई मुख्य सचिव की बैठक में लिये गये निर्णयों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई।
बैठक में स्वतंत्रा संग्राम सेनानी उत्ताधिकारियों को मिलने वाली सम्मान पेंशन को बढ़ाकर 10 हजार रुपये प्रतिमाह करने तथा प्रथम पीढ़ी के समस्त उत्तराधिकारियों को समान रूप से यह सम्मान पेंशन दिये जाने की मांग की गई। जिन परिवारों में प्रथम पीढ़ी के उत्तराधिकारी जीवित नहीं हैं उन परिवारों में दूसरी पीढ़ी के उत्तराधिकारियों को पेंशन व अन्य सुविधाएं देने की मांग भी की गई। स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारियों को तत्कालीन उत्तर प्रदेश के समय में सरकारी नौकरियों में 5 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता था जिसे उत्तराखंड बनने के बाद मात्र 2 प्रतिशत कर दिया गया है।
बैठक में मांग की गई इस आरक्षण को पुन: उत्तराखंड 5 प्रतिशत किया जाये। इसके अलावा बैठक में मांग उठाई की उत्तराखंड के आवासविहीन उत्तराधिकारियों को नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायत की ओर से नि:शुल्क आवासीय भू—खंड आवंटित किये जाएं। बैठक में वक्ताओं ने कहा कि स्वतंत्रता के हीरक जयंती वर्ष में उत्तराखंड के स्वतंत्रा सेनानियों के पैतृक गांव में उनके स्मारक बनाकर उनके गांव को संड़क मार्ग से जोड़ा जाए। ये ही नहीं विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं एवं मुख्य मार्गों का नामकरण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम पर किया जाए।
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इसके अलावा मांग उठाई गई कि देहरादून में पुराने जेल परिसर में सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सदन बनाने के लिए 2 बीघा जमीन आवंटित की है लेकिन इस जमीन की कोई चाहरदीवारी नहीं हुई न ही सदन बनने का काम शुरू हो चुका है। सरकार से मांग की गई है कि एमडीडीए को सदन निर्माण के लिए बजट आवंटित करके चाहरदीवारी व सदन निर्माण का कार्य शीघ्र शुरू किया जाए।
बैठक में वक्ताओं ने कहा कि राष्ट्रीय व प्रांतीय मार्गों पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के उत्तराधिकारियों को टोल टैक्स में छूट दी जानी चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की विधवा पुत्रवधु को कुटुम्भ पेंशन तो दी जा रही है लेकिन रोडवेज की बसों में उन्हें नि:शुल्क यात्रा की सुविधा नहीं मिल पा रही है। राजकीय परिवहन निगम इस सुविधा को जल्द से जल्द शुरू कराये। इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं उत्तराधिकारी परिषद का गठन 2016 से ही लंबित पड़ा है जिसे जल्द से जल्द गठित किया जाए।
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बैठक में वक्ताओं ने कहा कि विदेश में रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के उत्तराधिकारी का भारत की बैंक में खाता नहीं खुल सकता इसलिए उसकी पेंशन को भारत में रहने वाले उत्तराधिकारियों में बराबर बांट दिया जाए। सदस्यों ने बताया कि उन्हें शिकायत मिली है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों एवं वीरांगनाओं को पेंशन की धनराशि 21 हजार से बढ़ाकर 25 हजार तो की गई लेकिन यह पेंशन उनको आज तक नहीं मिली है।
वक्ताओं ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की प्रथम पीढ़ी के अधिकांश उत्तराधिकारी 70 वर्ष की आयु से अधिक हो चुके हैं इसलिए उन्हें बसों में सफर करते समय एक सहायक का भी नि:शुल्क यात्रा करने की इजाजत दी जानी चाहिए। राजकीय चिकित्सालयों में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारियों को कैशलैस सुविधा का लाभ प्रदान किया जाए। वक्ताओं ने कहा कि देश में प्रथम स्वतंत्रता की लड़ाई हरिद्वार में रुड़की स्थित कुंजा बहादुरपुर में 3 अक्टूबर 1824 में हुई थी परंतु इतिहास में इस महत्वपूर्ण घटना का कोई उल्लेख नहीं है।
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बच्चों को पढ़ाया जाता है 10 मई 1857 को स्वतंत्रता संग्राम का पहला विगुल फूंका गया था। जबकि इससे 35 वर्ष पूर्व राजा विजय सिंह के नेतृत्व में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी गई थी इस संबंध में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मानव संसाधन मंत्री से भी मांग की गई है। इतिहास की किताबों में यह महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा जाए। इन सभी मांगों को लेकर 13 सूत्रीय ज्ञापन अपर सचिव मुख्यमंत्री के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजा गया है।
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साथ ही बैठक में जनपदीय स्तर के नये पदाधिकारियों की नियुक्ति सर्वसहमति निम्न प्रकार की गई। बैठक में मुख्य संरक्षक सुरेश चन्द्र पाण्डे, संरक्षक आनंद दुर्गापाल, जिलाध्यक्ष नवीन चन्द्र पाण्डे, उपाध्यक्ष चन्दन सिंह परिहार, कैलाश चन्द्र जोशी, बीना बेलवाल, सचिव नरेंद्र चन्द्र पंत, संयुक्त सचिव दीपा पाण्डे, शेर सिंह कोषाध्यक्ष/कार्यालय सचिव सुमन खड़ायत, कार्यकारणी सचिव हेमा पंत व शशि गुप्ता आदि उपस्थित थे। मुख्य वक्ताओं में कार्यकारणी सदस्य शोभा बिष्ट, जिलाध्यक्ष नवीन चंद्र पाण्डे, बंशीधर दुर्गापाल आदि थे। अंत में 2 मिनट का मोन रखकर एचआर बहुगुणा को श्रद्धांजलि अर्पित की।