जी आर मुसाफिर की कांग्रेस में वापसी के बाद बदल सकते हैं पच्छाद के राजनीतिक समीकरण भाजपा को हो सकता है नुकसान

राजगढ़। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं 1982 से लेकर लगातार 2012तक पच्छाद के विधायक रहे जी आर मुसाफिर के कांग्रेस में वापिस आ जाने से पच्छाद के राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। अभी वर्ष 2012 से लगातार भाजपा ने यहां तीन चुनाव जीते है। मगर अब यहां भाजपा की राहें इतनी आसान नहीं लग रही। जब गत विधानसभा चुनाव में टिकट ना मिलने के बाद प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पच्छाद से सात बार विधायक रहे जी आर मुसाफिर टिकट कटने के बाद कांग्रेस को बाय बाय बोल बतौर आजाद उम्मीदवार मैदान में कुद गये और कांग्रेस हाई कमान ने जी आर मुसाफिर को छंह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया।

बतौर आजाद उम्मीदवार चुनाव लड़ कर जी आर मुसाफिर ने लगभग 13 हजार मत हासिल किये और कांग्रेस की उम्मीदवार दयाल प्यारी को हार का सामना करना पड़ा और अब जी आर मुसाफिर का निष्कासन प्रदेश कांग्रेस हाई कमान ने रद्द कर दिया और लगभग 18 महीने के बाद जी आर मुसाफिर की घर वापसी हो गई। यहां काबिले जिक्र है कि पिछले 18 महीने से जी आर मुसाफिर व उनके समर्थकों ने ऐसी एक जुटता दिखाई कि वह कांग्रेस की सरकार बनने पूरी तरह से एक जुट रहे और उन्होंने कांग्रेस के समानांतर पच्छाद में संगठन तैयार किया और पच्छाद मंडल कांग्रेस की तरह मंडल का गठन किया। और हर महीने पच्छाद व राजगढ़ में मासिक बेठको का आयोजन किया जाता रहा। जिसका परिणाम यह हुआ की आज प्रदेश कांग्रेस हाई कमान को मुसाफिर व पार्टी में वापिस लेना पड़ा। अब इससे पच्छाद में कांग्रेस को कितना लाभ होगा यह तो लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद ही पता चल पाएगा। अगर यहां गत विधानसभा चुनाव की बात करें यहां कांग्रेस की उम्मीदवार दयाल प्यारी को 17 हजार 358 मत व जी आर मुसाफिर को 13 हजार 187 मत मिले थे उधर भाजपा की रीना कश्यप को 21 हजार 215 मत मिले थे।

राष्ट्रीय देव भुमि पार्टी के उम्मीदवार सुशील भृगू को 8 हजार 113 मत मिले थे अब अगर दयाल प्यारी व मुसाफिर के मतों को मिला दिया जाए तो 30 हजार 545 मत बनते हैं। ऐसे में अगर विधानसभा चुनाव एकजुट होकर लड़ती यानि जी आर मुसाफिर बतौर आजाद उम्मीदवार मैदान में ना उतरते तो यहां कांग्रेस का विधायक जीत हासिल करता। अब आज जो समीकरण बन रहा है। उसके हिसाब से यहां कांग्रेस ने अपना गढ़ मजबूत किया। अब इसका कितना लाभ कांग्रेस को मिल पाता है। यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। अब यहां भाजपा की राहें कुछ कठिन हो गई है। क्योंकि मुसाफिर का यहां एक बड़ा वोट बैंक है। जो उनके कांग्रेस में वापिस आने से कांग्रेस को लाभ मिलेगा। अब अगर पच्छाद के राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो पूर्व भाजपा सरकार के दौरान कार्यकर्ताओं की अनदेखी आज भी नाराजगी का बड़ा कारण बनी हुई है।और अब मुसाफिर की वापिस से पहले सुरेश कश्यप की स्थिति इस विधानसभा क्षेत्र में लगभग अच्छी बनी हुई थी। मुसाफिर की घर वापसी के बाद भाजपा में रूठे हुए को मनाना कश्यप के लिए चुनौती बनी हुई है।

मुसाफिर की घर वापसी ने भाजपा खेमे में संकट खड़ा कर दिया है। 1982 में नौकरी से इस्तीफा देने के बाद भी निर्दलीय चुनाव जीत मुसाफिर अल्पमत रही कांग्रेस सरकार के लिए सरकार बनाने में अहम साबित हुए थे। और उसके ठीक 40 साल बाद साल 2022 में मुसाफिर फिर निर्दलीय मैदान में उतर कर पच्छाद में उसी कांग्रेस के समीकरण खराब कर दिये जिसकी 1982 में सरकार बनाई थी वहीं निष्कासन के बाद उनकी वापसी कांग्रेस के लिए एक बार फिर तारणहारी साबित होने जा रही है।मुसाफिर की घर वापसी के बाद भाजपा प्रत्याशी की लोकसभा चुनाव में दिक्कतें भी बढ़ सकती है इसकी बड़ी वजह यह है। कि जिस विधानसभा क्षेत्र पच्छाद से भाजपा प्रत्याशी सुरेश कश्यप तालुक रखते हैं उसी से गंगू राम मुसाफिर भी संबंध रखते हैं।जिस समय मुसाफिर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे। उस दौरान चुनाव में कांग्रेस के पास बहुमत नहीं था। लिहाजा जीआर मुसाफिर के समर्थन से सरकार बनी थी।

मुसाफिर को उस दौरान मंत्री भी बनाया गया था। जीआर मुसाफिर 1985 से 2007 तक कांग्रेस के टिकट पर विधायक रहे हैं।मुसाफिर को सबसे पहले वन एवं उद्योग फिर शिक्षा मंत्री, सहकारिता विभाग मंत्री, परिवहन मंत्रालय और ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री भी बनाया गया। 2003 से लेकर 2008 तक मुसाफिर विधानसभा अध्यक्ष रहे। 2009 में शिमला संसदीय लोकसभा सीट पर उतर गया था। जिसमें उनकी हार हुई थी। इस सीट पर सोलन से ताल्लुक रखने वाले हिविका प्रत्याशी डॉ. धनीराम शांडिल की जीत हुई थी। दूसरी बाद डॉ. धनीराम शांडिल कांग्रेस की सीट पर संसद बने।उसके बाद वीरेंद्र कश्यप दो बार शिमला संसदीय सीट पर सांसद रहे। तीसरी बार उनकी जगह सुरेश कश्यप को टिकट दिया गया था।

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जिसमें सुरेश कश्यप की जीत हुई थी। गंगूराम मुसाफिर पूर्व मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय वीरभद्र सिंह खेमे के माने जाते हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के द्वारा हारने के बाद भी 2017 में उन्हें योजना बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाया गया था। मुसाफिर 2012,2017, 2019 के उपचुनाव में और 2022 में वह निर्दलीय लड़े थे इन सभी चुनावों में उनकी हार हुई। विधायक रहे सुरेश कश्यप के सांसद बनने के बाद पच्छाद विधानसभा क्षेत्र के लिए उप चुनाव हुआ था। इस उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप जीती थी। जबकि मुसाफिर की जगह भाजपा से कांग्रेस में आई दयाल प्यारी को मैदान में उतर गया था। मुसाफिर ने पार्टी से बगावत करते हुए बतौर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और हार गए थे।अब यदि मुसाफिर उपचुनाव में बगावत न करते तो निश्चित ही दयाल प्यारी भारी मतों से विजय होती। मुसाफिर का आज भी अपने विधानसभा क्षेत्र में बड़ा मजबूत आधार है और अच्छा वोट बैंक भी है।

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मुसाफिर की घर वापसी के बाद पूरे विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस एकजुट हो चुकी है।मुसाफिर की एंट्री से पहले सुरेश कश्यप की स्थिति इस विधानसभा क्षेत्र में लगभग अच्छी बनी हुई थी। मुसाफिर की घर वापसी के बाद भाजपा में रूठे हुए को मनाना कश्यप के लिए चुनौती भी बनेगी।वहीं कांग्रेस प्रत्याशी रही दयाल प्यारी को भी बड़ी नसीहत मिली कि बिना मुसाफिर के वह शिमला विधानसभा भवन तक नहीं पहुंच सकती।और उधर 26 अप्रैल को प्रदेश के मुख्यमंत्री राजगढ़ में एक जनसभा को संबोधित करेंगे। यह उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद पहला कार्यक्रम होगा। इसके साथ साथ यहां दयाल प्यारी व जी आर मुसाफिर के समर्थक भी पिछले लगभग डेढ़ साल से कभी एक मंच पर नहीं आये। और एक दूसरे से दूर दूर ही रहते दिखे मगर जी आर मुसाफिर की कांग्रेस में वापसी के बाद 26 अप्रैल को पहली बार जी आर मुसाफिर व दयाल प्यारी के समर्थक एक ही मंच पर होंगे।

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