नैनीताल…रैगिंग प्रकरण: रिपोर्ट में रैगिंग की पुष्टि लेकिन सबूत नहीं मिले, अब सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज से हाईकोर्ट ने मांगा एक हफ्ते में जवाब
नैनीताल। उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में रैगिंग प्रकरण में लीपापोती की बात सामने आई है। जांच कमेटी ने रैगिंग की बात तो मानी है लेकिन कमेटी आरोपियों की पहचान करने में नाकाम रही। सरकार की ओर से बुधवार को उच्चस्तरीय जांच कमेटी की रिपोर्ट कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ के समक्ष रखी गई।
रिपोर्ट में कहा गया कि मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्रों के साथ रैगिंग की बात तो सामने आई है लेकिन जांच कमेटी के समक्ष कोई सुबूत पेश करने को तैयार नहीं है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि मेडिकल प्रशासन की ओर से भी लापरवाही का मामला सामने आया है। कॉलेज परिसर में रैगिंग रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए गए हैं।
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जो कैमरे लगे हैं वे काम नहीं कर रहे हैं। इसके बावजूद जांच कमेटी की ओर से अज्ञात आरोपियों के खिलाफ अभियोग पंजीकृत कर दिया गया है। इसके बाद पीठ ने नैनीताल के जिलाधिकारी डीएस गर्ब्याल को कॉलेज परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश दिए। साथ ही अदालत ने कॉलेज प्रशासन से इस मामले में बुधवार तक जवाब पेश करने को कहा है।
अदालत के रुख से साफ है कि रैगिंग के आरोपी से आसानी से छूटने वाले नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि मार्च महीने की शुरुआत में सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में तालिबानी शैली में रैगिंग का मामला सामने आया था। लगभग 30 छात्र सिर मुंडवा कर सिर झुका कर चलने को मजबूर हैं। वीडियो में उनके पीछे सुरक्षा गार्ड भी है।
रैगिंग का यह वीडियो सोशल मीडिया में तेजी से प्रसारित हुआ तो कॉलेज में हड़कंप मच गया। याचिकाकर्ता सचिदानंद डबराल की ओर से विगत 9 मार्च को इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की।
अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कुमाऊं मंडल के आयुक्त दीपक रावत और पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) डॉ. नीलेश आनंद भरणे को इस प्रकरण की जांच कर 10 दिन में रिपोर्ट प्रस्तुत करने और आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने के निर्देश दे दिए हैं।