बागेश्वर… #पनौती : दस दिन, दो हादसे, दस मौतें और पनौती बने पांच ताबूत
बागेश्वर। कुछ चीजें कभी—कभी आसानी से पीछा नहीं छोड़ती हैं। ऐसे ही हैं पांच ताबूत जो पिछले कुछ दिनों से बागेश्वर जिला प्रशासन के गले की हड्डी बन गए। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि पांच ताबूत कुछ ताबूत निपटने का नाम ही नहीं ले रहे है। उधर बागेश्वर में एक के बाद एक हादसे हो रहे हैं और सभी में पांच लोगों की ही मौत भी हो रही है। अभी तक ऐसे दो हादसे हो चुके हैं जिनमें पश्चिम बंगाल के दस लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन ट्रेकर हादसे के मृतकों के शव भेजने के लिए बनाए गए ताबूत आज भी बागेश्वर में ही रह गए।
इससे दबी जुबान से प्रशासनिक अधिकारी भी इन ताबूतों को अपशकुनी मान रहे हैं। आज शाम इन ताबूतों को सफाई कर्मियों को सौंप दिया गया। जिन्हें वे अपने घर ले गए। यह भी इतिहास में संभवत: पहली बार ही हुआ होगा कि जीवित व्यक्ति ताबूत को अपने घरों में रखने के लिए ले गए होंगे।
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पनौती माने जा रहे ताबूत प्रशासन के ऐसे गले पड़े कि उनका निपटारा मुश्किल हो गया। कपकोट के सुदंरढुंगा हादसे में मारे गए ट्रेकरों के शवों के लिए बनाए गए पांचों ताबूत घूमते फिरते बागेश्वर पहुंच गए। अफसरों को लगा कि शामा हादसे में मारे गए पांच पश्चिम बंगाली पर्यटकों के शवों को इन ताबूतों में रखकर भेजा जा सकेगा लेकिन ऐन वक्त पर पता चला कि ताबूत की लंबाई चौड़ाई इतनी है कि इन पांच शवों को ले जाने के लिए पांच एंबुलैंसों की व्यवस्था करनी होगी।
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जो कि मुश्किल भरा काम था। आखिर में शवों को ताबूत में न रखकर सामान्य ढंग से पैक करके एंबुलैंस से हल्द्वानी के लिए रवाना किया गया। शव रवाना होते ही अधिकारियों को पनौती बन चुके इन ताबूतों को ठिकाने लगाने की जल्दी दिखाई पड़ी। कुछ लोगों ने राय दी कि ताबूतों को आग के हवाले कर दिया जाए। किसी ने कहा कि इन्हें तोड़कर सरयू में बहा दिया जाए। भारतीय समाज में कफन और ताबूत किसी घर के भीतर नहीं रखे जाते।
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ऐसे में सामने आए जिला चिकित्सालय के सफाई कर्मचारी। जिन्होंने ताबूतों के उन्हें सौंपने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और पांचों ताबूतों को वे अपने घर लेकर चले गए। तब कहीं जाकर प्रशासनिक अधिकारियों ने राहत की सांस ली।
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स्मरणीय है कि गत दिनों पश्चिम बंगाल के पांच ट्रेकरों की सुंदरढुंगा ग्लेशियर ट्रैक पर हुए आदसे में पश्चिम बंगाल के पांच ट्रेकर्स की मौत हो गई थी। एक हफ्ते की कड़ी मेहनत के बाद उनके शव निकाले जा सके। शव निकालने के बाद शवों को कपकोट लाया गया। यहां से इन्हें इनके घर पश्चिम बंगाल जाना था। प्रशासन द्वारा शवों को सुरक्षित भेजने के लिये ताबूत बनवाये गये। लेकिन यहां एक चूक हो गईं पांचों ताबूत एम्बुलेंस और हवाई जहाज से ले जाने के हिसाब से कुछ बढ़े बन गये। प्रशासन द्वारा तत्काल इन्हें बदल कर दूसरे ताबूतों का इंतजाम किया और पांचों ताबूतों को सुरक्षित रख दिया गया।
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अभी इन ट्रैकर्स के शव उनके घर भी नहीं पहुंचे थे कि बुधवार को फिर पश्चिम बंगाल के पर्यटकों की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया, जिसमें पांच पर्यटकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। आज पोस्टमार्टम के बाद उनके शव भी पश्चिम बंगाल जाने थे। प्रशासन की ओर से ट्रैकर्स वाले ताबूत बागेश्वर लाये गये। फिर वही परेशानी। शव पहले एम्बुलेंस से हल्द्वानी जाने थे उसके बाद हवाई जहाज से पर्यटकों के घर पहुंचने हैं। अगर ताबूत से शव जाते तो उसके लिये दो की जगह ज्यादा एम्बुलेंस भेजनी पड़ती और हवाई जहाज से शव ले जाने में भी परिजनों को असुविधा होती।
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जिस पर परिजनों व अधिकारियों ने बगैर ताबूत के शव ले जाने तय किये। फिर ताबूत एक बार पश्चिम बंगाल पहुंचने की जगह यहीं रह गये। तभी एक अधिकारी अपना दर्द बयां कर बैठे “इन अपसगुनी ताबूतों को तत्काल जला देना चाहिए”। तभी वहां खड़े सफाई कर्मी बोले साहब इनको जलाइये मत हम इनको बक्से का काम लेंगे और घर का कुछ सामान रख लेंगे। इस पर वहां खड़े अधिकारियों ने उन्हें ताबूत ले जाने का इशारा दे दिया।
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ज़ब सफाई कर्मी उन तबूतों को घर की ओर ले जाने लगें तब वहां खड़ी भीड़ में ज्यादातर लोगों के चेहरे की घबराहट साफ देखी जा सकती थी। वहीं ताबूत घर ले जा रहे सफाई कर्मियों की आंखों में एक चमक थी जो अधिकारियों का आभार प्रकट कर रहीं थी। जो भी हो अधिकारियों को पनौती बन चुके ताबूतों से फिलहाल तो मुक्ति मिल गई है।