काम की खबर…कल होगी मतगणना, इन शब्दों का अर्थ समझ लें ताकि कल जमकर राजनीति करें

हल्द्वानी। कल ठीक इसी वक्त उत्तराखंड समेत पांच राज्यों की सरकार का भाग्य लिखना शुरू होगा। यानी मतगणना शुरू होगी। मतगणना निपटते ही कुछ ऐसे शब्द हैं जो सामान्य राजनैतिक चर्चाओं और समाचार माध्यमों में बहुधा उपयोग किए जाने लगेंगे। हममें से अधिकांश लोगों को उन शब्दों के अर्थों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। यहां हम आपके लिए लाए हैं। ऐसे ही दस शब्द जिनके बारे में आपको जानकारी होनी आवश्यक है। तब ही आप आने वाले दिनों में खुलकर अपने प्रदेश की आने वाली सरकार पर चर्चा कर सकेंगे।

जमानत राशि, और जमानत जब्त होना
उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए नामांकन यानी पर्चा भरते हुए एक तय रकम जमा करानी होती है। इसे जमानत राशि कहते हैं। पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक, हर चुनाव की जमानत राशि अलग होती है।चुनाव आयोग समय-समय पर इसे तय करता है। चुनाव परिणाम आते ही एक शब्द से सबसे पहले पाला पड़ता है। वह है जमानत, हम जानना चाहते हैं कि फलां प्रत्याशी जमानत बचाने में सफल हुआ कि नहीं।
जब किसी उम्मीदवार को अपने निर्वाचन क्षेत्र में पड़े कुल वोटों के 1/6 से कम वोट मिलते हैं तो उसकी जमानत राशि को चुनाव आयोग वापस नहीं करता है। 1952 में हुए पहले आम चुनाव में 40% उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी तो 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 86% हो गया।
अगर उम्मीदवार को उसके निर्वाचन क्षेत्र में पड़े कुल वोटों के 1/6 से ज्यादा वोट मिल जाएं। भले ही वो चुनाव हार जाए। किसी उम्मीदवार को 1/6 से कम वोट मिले हों, लेकिन वह चुनाव जीत गया हो। वोटिंग शुरू होने से पहले ही उम्मीदवार की मौत होती है तो उसके कानूनी वारिस को जमानत राशि लौटा दी जाती है। उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने या उम्मीदवार की ओर से तय समय के भीतर नाम वापस लेने या फिर उम्मीदवार को कुल वोटों के 1/6 के ठीक बराबर भी वोट मिलने पर भी जमानत राशि जब्त कर ली जाती है।
त्रिशंकु सरकार
एक अन्य शब्द है। जिसका कल सुबह से ही बोलबाला शुरू हो जाएगा। वह है हंग एसंबली यानी त्रिशंकु सरकार। जब किसी एक पार्टी या गठबंधन को किसी चुनाव में बहुमत के आंकड़े के बराबर या उससे ज्यादा सीटें नहीं मिलती हैं तो ऐसे हालात को अंग्रेजी में Hung Assembly और हिंदी में त्रिशंकु विधानसभा कहते हैं। ऐसे में सबसे बड़ी पार्टी के नेता मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर सदन में विश्वास मत हासिल करने के लिए प्रस्ताव रखेंगे। इसे ही विश्वास प्रस्ताव कहते हैं। मान लेते हैं कि विश्वास मत वाले दिन सभी विधायक सदन में मौजूद रहते हैं और वोटिंग में हिस्सा लेते हैं।
ऐसे में 50%+1 के फार्मूले के हिसाब विधायकों का बहुमत हासिल करने के लिए राज्यपाल द्वारा कहा जाता है।
विश्वास प्रस्ताव
सरकार सदन में विश्वास मत के जरिए यह साबित करती है कि उसके पास सत्ता में रहने के लिए मौजूद आधे से ज्यादा सांसद या विधायक हैं। वहीं, अविश्वास मत के जरिए विपक्षी पार्टी यह साबित करने की कोशिश करती है कि सरकार के पास जरूरी बहुमत नहीं है। यानी विश्वास मत सरकार लाती है और अविश्वास मत विपक्षी पार्टियां।
1963 में आया था देश का पहला अविश्वास प्रस्ताव। 1963 में जेबी कृपलानी ने तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा था। जिसके पक्ष में 62 और विरोध में 347 वोट पड़े। देश का पहला अविश्वास प्रस्ताव पास नहीं हुआ था।
प्रोटेम स्पीकर
प्रोटेम (Pro-tem) लैटिन शब्‍द प्रो टैम्‍पोर (Pro Tempore) से बना है। इसका मतलब- ‘कुछ समय के लिए’ होता है। प्रोटेम स्‍पीकर की नियुक्ति गवर्नर करता है। ऐसी नियुक्ति तब तक के लिए होती है जब तक विधानसभा अपना स्‍थायी अध्‍यक्ष नहीं चुन लेती। प्रोटेम स्पीकर ही नए विधायकों (MLA) को शपथ दिलाता है। आमतौर पर सदन के सबसे सीनियर सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। हालांकि संविधान में प्रोटेम स्पीकर की शक्ति, उसके काम और जिम्मेदारियों को लेकर साफतौर पर कुछ नहीं कहा गया है।

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