नालागढ़ न्यूज : तो क्या सॉलिड वेस्ट प्रबंधन उद्योग की वजह से जहरीला हो रहा गांव के कुएं का पानी, सीएम को भेजी शिकायत

नालागढ़। औद्योगिक क्षेत्र नालागढ़ के तहत माजरा गांव में एक गरीब परिवार के कुएं का पानी खराब हो गया है। परिवार का दावा है कि कुछ महीने पहले उनके कुएं से भी साफ पानी निकलता था लेकिन अब उनके कुएं का पानी बिल्कुल ही दूषित हो चुका है। जिसके कारण बीते दिनों उनके एक दुधारु भैंस की भी मौत हो चुकी है। परिवार के लोगों का कहना है कि लगभग बीस वर्ष पहले उन्होंने गांव से बाहर अपना मकान बनवाया था तो यहां पर एक पीने के पानी के लिए कुआं भी खुदवाया था। उनका कहना है कि लगातार 20 वर्षों से वह इसी कुएं का पानी पी रहे हैं, जिससे उन्हेँ किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं हो रही थी, लेकिन अब कुछ महीनों से कुएं का पानी जहरीला हो चुका है। जिसके कारण उनके पूरे परिवार में बीमारियां फैलने का खतरा बना हुआ है। यहां तक कि पिछले दिनों कुएं में डाली गई मछलियों के कंकाल भी अब पानी के साथ बाहर आ रहे हैं।


पीड़ित परिवार के लोगों ने कुएँ के पानी को दूषित होने का आरोप गांव में ही एक बने ठोस कचरा प्रबंधन प्लांट पर लगाया है। पीड़ितों का कहना है कि सॉलिड वेस्ट प्लांट में ठोस कचरा पूरे हिमाचल से आता है और यहां पर उस कचरे को सही ढंग से ट्रीट नहीं किया जाता। जिसके कारण इस कचरे से निकलने वाला केमिकल युक्त जहरीला वेस्ट जमीन के अंदर पूरी तरह से समा चुका है और अब उसकी वजह से उनके कुएं का पानी जहरीला हो चुका है ।


अब इस कुएं का पानी पीने लायक नहीं बचा है, उन्होंने कहा कि हर महीने सॉलिड वेस्ड प्लांट से लोग उनके कुएं के सैंपल लेते थे लेकिन कभी भी उन्हें लिए गए सैम्पलों की रिपोर्ट तक नहीं दी गई। पीड़ितों का कहना है कि सॉलिड वेस्ट प्लांट के लोगों द्वारा इस ठोस कचरे को सही ढंग से ट्रीट ना करके ऐसे ही लीपापोती करके जमीन के अंदर दफना दिया जाता है और जिसके कारण अब आसपास की जमीन का पानी दूषित होना शुरू हो चुका है।

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पीड़ित परिवार ने साफ तौर पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनके परिवार के एक व्यक्ति द्वारा भी इस कंपनी में करीबन 5 साल तक काम किया है और उन्हें पता है कि इस सॉलिड वेस्ट प्लांट के अंदर किस तरह से काम होता है। उन्होंने यहां तक भी आरोप लगाया कि कई बार केमिकल को अपने आप ही आग लग जाती है और जिस हिसाब से ठोस कचरे को वेस्ट करना होता है वह अंदर नहीं किया जाता। जिसकी वजह से अब यह केमिकल जमीन के भीतर पूरी तरह से घुस चुके हैं और यहां का पानी दूषित होना शुरू हो चुका है। पीड़ित परिवार द्वारा सरकार व प्रशासन और सीएम जयराम ठाकुर से इस सॉलिड वेस्ट प्लांट को बंद करवाने की मांग उठाई गई है।

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साथ ही पीड़ितों ने सरकार व पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों को चेतावनी देकर कहा है कि अगर जल्द ही इस सॉलिड वेस्ट प्लांट के ऊपर कार्रवाई नहीं की गई तो वह आने वाले दिनों में धरना प्रदर्शन करने को भी मजबूर होंगे जिसकी जिम्मेवारी सरकार व प्रशासन की होगी।

इस बारे में जब हमने शिवालिक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के सीईओ अशोक शर्मा से बात की तो उन्होंने कहा कि उनके प्लांट के अंदर से 1% भी वेस्ट पानी बाहर नहीं जाता है। उन्होंने कहा कि उनके प्लांट के अंदर अगर वेस्ट ठोस कचरे को नष्ट करने के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है तो उसकी भी समय समय पर सैम्पलिंग कर जांच की जाती है। उन्होंने कहा कि अगर किसी कुएं का पानी खराब हुआ है तो इसको लेकर वह भी प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से एवं प्रशासन से एक कुएं की नहीं बल्कि आसपास के जितने भी कुएं है उनकी सैंपलिंग करके जांच की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सालों से यहां पर उनका प्लांट चल रहा है और ऐसी कभी भी कोई शिकायत सामने नहीं आई है।


शर्मा का कहना है कि एक प्रतिशत पानी भी उनका बाहर नहीं जाता है अब यह तो पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की जांच के बाद ही साफ हो पाएगा कि आखिर इस कुएं का अगर पानी खराब हुआ है तो क्यों खराब हुआ है और कौन किसका इस पानी को दूषित करने में योगदान है और क्या अगर जांच में किसी का नाम सामने आता है तो उसके ऊपर क्या कार्रवाई की जाती है।

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जानकार सूत्रों की माने तो उनका कहना है कि माजरा गांव में एकमात्र सॉलिड वेस्ट प्लांट ही लगा हुआ है और गांव में और किसी भी प्रकार का कोई उद्योग नहीं स्थापित हुआ है सूत्रों का मानना है कि सॉलि़ड वेस्ट में पूरे हिमाचल से ठोस कचरा ट्रीट करने को लेकर लाया जाता है और यहां पर उसे नष्ट करने की बात कही जाती है।

सूत्रों का मानना है कि यहां पर जिस हिसाब से ठोस कचरे को ट्रीट किया जाना होता है वह नहीं किया जाता और हैरान करने की बात तो यह सामने आ रही है कि जब गांव के आसपास कोई और उद्योग नहीं है तो क्या आसमान से टपकने वाले पानी के कारण ही कुएं के पानी का रंग काला हो चुका है या फिर यह कुआं जहरीला हो चुका है। ऐसे कई सवाल पीड़ित परिवारों एवं स्थानीय ग्रामीणों द्वारा उठाए जा रहे हैं।

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