तैयार हो जाएं, वर्ष के पहले पूर्ण चंद्रग्रहण न सही सुपर मून के साक्षी तो बनेंगे ही आप

नई दिल्ली। आज की रात आपके लिए कुछ नई है। आज इस वर्ष का साल का दूसरा और पहला पूर्ण चंद्रग्रहण आज राहत ही है । हालांकि यह चंद्रगृहण उत्तरी भारत में नहीं दिखेगा,लेकिन एक चांद से जुड़ी घटना के आप साक्षी बन सकते हैं। और वह है सुपरमून। छह साल में पहली बार सुपरमून और चंद्रग्रहण का संयोग बन रहा है। यानी आसमान में चांद आम रातों के मुकाबले ज्यादा बड़ा और चमकीला दिखाई देगा। असकी वजह है कि आज चांद धरती के सबसे नजदीक होगा।
पूर्णिमा पर चांद जब पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है तो हमें वह बड़ा और चमकीला नजर आता है। इसे ही सुपरमून कहते हैं। इस दौरान सामान्य चंद्रग्रहण के मुकाबले चांद 30% तक ज्यादा बड़ा और 14% तक ज्यादा चमकदार दिखाई देता है। सुपरमून की 2 शर्तें हैं, पहली चांद पृथ्वी के सबसे नजदीक हो और दूसरी उस दिन पूर्णिमा भी हो।
वैसे तो चांद का न आकार बदलता है और न ही चमक, पर धरती के पास होने से हमें ऐसा आभास होता है। दरअसल चांद, पृथ्वी के आसपास अंडाकार रेखा में चक्कर लगाता है। इस वजह से कई बार यह पृथ्वी के काफी नजदीक आ जाता है। इससे हमें उसका आकार सामान्य से बड़ा दिखता है।
नासा के मुताबिक सुपरमून तब होता है जब चांद की कक्षा पृथ्वी के सबसे नजदीक होती है और पूर्णिमा हो। नासा के मुताबिक 1979 में एस्ट्रोलॉजर रिचर्ड नोल ने पहली बार सुपरमून शब्द का इस्तेमाल किया था। एक सामान्य वर्ष में दो से चार सुपरमून हो सकते हैं। पिछली पूर्णिमा के मुकाबले इस महीने पृथ्वी और चांद करीब 0.04% नजदीक रहने वाले हैं।
कुछ इस तरह दिखाई देगा आज का ब्लड मून। नासा के साइंटिफिक विजुअलाइजेशन स्टूडियो ने 2021 के पूर्ण चंद्रग्रहण का टेलिस्कोपिक विजुअलाइजेशन किया है।

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हर 27 दिन में चांद पृथ्वी का एक चक्कर पूरा कर लेता है। 29.5 दिन में एक बार पूर्णिमा भी आती है। हर पूर्णिमा को सुपरमून नहीं होता, पर हर सुपरमून पूर्णिमा को ही होता है। चांद पृथ्वी के आसपास अंडाकार रेखा में चक्कर लगाता है, इसलिए पृथ्वी और चांद के बीच की दूरी हर दिन बदलती रहती है। जब चांद पृथ्वी से सबसे ज्यादा दूर होता है, उसे एपोजी (Apogee) कहते हैं और जब सबसे नजदीक होता है तो उसे पेरिजी (Perigee)। पेरिजी के समय पृथ्वी से चांद की दूरी होती है करीब 3.60 लाख किमी, जबकि एपोजी के समय करीब 4.05 लाख किमी।आपने बचपन में रोशनी के सात रंगों के बारे में पढ़ा होगा। प्रिज्म के साथ प्रयोग भी किया होगा कि जब रोशनी की किरण प्रिज्म से गुजरती है तो वह सात रंगों में टूट जाती है। इसे हमने VIBGYOR यानी वॉयलेट (V), इंडिगो (I), ब्लू (B), ग्रीन (G), यलो (Y), ऑरेंज (O) और रेड के तौर पर याद भी किया होगा।
इससे पृथ्वी के वायुमंडल से रोशनी फिल्टर होगी और तब हमारे ग्रह की छाया चांद पर पड़ रही होगी। वॉयलेट (बैंगनी) की वेवलेंग्थ सबसे कम होती है और लाल की सबसे ज्यादा। चंद्रग्रहण के दौरान सूरज और चांद के बीच पृथ्वी आ जाती है। तब सूर्य की रोशनी को चांद तक पहुंचने से पृथ्वी रोक देगी। सबसे अधिक वेवलेंग्थ वाला लाल रंग प्रभावी होगा। इससे चांद पर लाल रंग की चमक दिखेगी, जिसकी वजह से इसे ब्लड मून भी कहते हैं।
नहीं। देश के अधिकतर लोग चंद्रग्रहण नहीं देख सकेंगे क्योंकि ग्रहण के समय भारत के अधिकांश हिस्सों में चांद पूर्वी क्षितिज से नीचे होगा। जब चंद्रोदय हो रहा होगा, तब पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों के लोग चंद्रग्रहण का आखिरी हिस्सा देख सकेंगे।
भारतीय समयानुसार अपराह्न चार बजे पृथ्वी सूर्य और चांद के ठीक बीच में होगी। दुनियाभर के ऑब्जर्वर आसमान साफ होने पर सुपरमून को देख सकेंगे। पर भारत, नेपाल, पश्चिमी चीन, मंगोलिया और पूर्वी रूस के कुछ हिस्सों में आंशिक ग्रहण ही दिखेगा। इस दौरान चांद, पृथ्वी की छाया से बाहर निकल रहा होगा।

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