हल्द्वानी… #एक्सक्लूसिव : कोरोना की दो लहरों में जान की बाजी लगाने वाले 108 कर्मी अनदेखी की वजह से हताश, ‘नोटा’ पर कर रहे विचार

हल्द्वानी। प्रदेश में कोरोना की दो लहरों में जान की बाजी लगाकर प्रदेशवासियों की सेवा में जुटे रहे आपातकालीन 108 सेवा के कर्मचारियों को उनकी सेवा व परिश्रम का हक नहीं मिल पा रहार है। आर्थिक लाभ तो छोड़़िये सरकार ने उनके लिए सम्मान व आभार के दो शब्द भी नहीं बोले। कारण सिर्फ यही कि वे एक निजी कंपनी के कर्मचारी हैं।


सरकार की कोई ऐसी योजना या सेवाओं में आपातकालीन 108 ही एक ऐसी सेवा है जिससे प्रदेश का बच्चा —बच्चा वाकिफ है। यह सेवा अन्य प्रदेशों में भी काम कर रही है। बताया गया है कि उत्तर प्रदेश में 108 सेवा के कर्मचारियों को 21 हजार का मासिक वेतन दिया जाता है। लेकिन उत्तराखंड में स्थिति इसके उलट है। यहां इन कर्मचारियों को 9800 रूपये का वेतन दिया जाता है।

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एक वाहन पर एक पायलट और एक फार्मासिस्ट तैनात किया गया है। इस तरह से प्रदेश में लगभग 1700 कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हादसे हो या नागरिकों को बीमारियां, महामारी हो या प्राकृति आपदा हर मुश्किल घड़ी में 108 सेवा प्रदेशवासियों के लिए ‘मैं हू न’ वाली स्टाइल में तत्पर दिखाई पड़ी है। कोरोना काल में तो 108 सेवा प्रदेशवासियों के लिए वरदान साबित हुई।

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सरकार ने स्वस्थ्य कर्मी, आंगनबाड़ी—आशा, सुरक्षा, स्वच्छता आदि सुवाएं देने वाले हर व्यक्ति को सम्मानित भी किया। उनके लिए अलग—अलग योजनाएं बनाकर उनकी आर्थिकी भी मजबूत की लेकिन इस कठिन वक्त में प्रदेशवासियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे 108 कर्मियों को सरकार तो भूली ही वो संगठन भी भूल गए जो प्रमाणपत्र बांट बांट कर कोरोना योद्धाओं के टैग बांट रहे थे। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया।

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कोरोना काल में अलग—अलग स्थानों पर डटे 108 सेवा कर्मी कोरोना का शिकार भी हुए। महाकुंभ में जहां कोरोना विष्फोट हो रहे थे ऐसे में 108 सेवा ही थी जो बिना डरे मरीजों को इधर से उधर ढो रही थी। हालांकि 108 में कोरोना संक्रमित नहीं बिठाए गए लेकिन कई ऐसे रोगी भी थे जो घर से चिकित्सालय तो किसी अन्य बीमारी की वजह से पहुंचे लेकिन जांच में कोरोना संक्रमित पाए गए ऐसे में 108 सेवा कर्मी कोरोना से अछूते कैसे रहते है।

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अब जब कोरोना की तीसरी लहर प्रदेश में दस्तक दे रही है। 108 सेवाकर्मियों को समझ नहीं आ रहा है कि इस मुसीबत से बिना हौसले के वे कैसे लड़ेंगे। उनके हैसले सरकार व समाज की छोटी सी अनदेखी की वजह से रसातल में जा बैठा है। सरकार की ओर से इन लगभग 1700 लोगों के भविश्य के बारे में कोई विचार ही नहीं किया जा रहा है जबकि वे इसी प्रदेश के नागरिक हैं। 9800 रूपये के वेतन में अपने परिवारों को पाल रहे 108 कर्मी अब विधानसभा चुनाव में नोटा के बटन के विकल्प पर भी सोच रहे हैं।

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